कलमकार कुंभ
विषय .....हिंदी
विधा .....कविता
10-01-22
गौरव हमारी हिन्दी है ,
अभिमान हिन्दुस्तान का ।
अनेक भाषा महके पुष्प हैं ,
पर हार सूत्र हिन्दी मात का ।
कहीं विश्व में निज निवास हो ,
प्रवास कहीं किसी स्थान का ।
जीवन आधार हिन्दी मात है,
मेरी पहचान हिन्दीभाषिका।
भाल पर उज्ज्वल बिन्दी सजी ,
फिर क्यों सिसकती हिन्दी माँ ?
एकता सूत्र को साधे खड़ी रही,
मायूस सी क्यों है हिन्दी माँ ?
क्यों असहाय खड़ी है हिन्दी माँ ,
क्यों पीर अश्रु की धार बही ।
जो राष्ट्र की भाषा कहलाये ,
क्यों नारों की मोहताज हुई ।
हिन्दी में शिक्षा ग्रहण करो ,
ये समान भाव है दिखलाती ।
ना वर्ण है लघु और दीर्घ कोई ,
अर्द्धवर्ण की संबल बन जाती।
साहित्यों की आधार शिला ,
विस्तृत परचम फैलाये हैं ।
कभी वीर बनी श्रंगार सजी ,
कभी भक्ति के गीत सुनाये हैं ।
प्रेमचन्द कहानी हैं सर्वोत्तम ,
भारतेंदु ने निबन्ध सजाये हैं ।
पंचतंत्र के शिक्षावद किस्से ,
सब हिन्दी से रच पाये हैं ।
हिन्दी में ही संवाद हों सब ,
हिन्दी लिपि ही दफ्तर में हो।
हिन्दी का मान बढ़े नभ सम ,
हिन्दी ही प्रिय राष्ट्र धरोहर हो ।
स्वरचित अप्रकाशित रचना
सुधा चतुर्वेदी
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