देखिए
युव हुंकार
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यह समाज जिस रूप में ढालोगे, ढलेगी, जैसे चलोगे, चलेगी।
एक के होने से अनेक होते हैं बढ़ना जरूरी है। अब समय आपका इंतजार नहीं कर सकता देख रहे हैं कहाँ से कहाँ आ गए क्या थे क्या हो गए फिर भी। अचेत निश्तेज अबाक हतप्रभ विचार शून्य अलग थलग बैठे हैं। नहीं आओगे क्या।
देखिये इन्हीं तत्वों का समावेश किया गया है आपके इस प्रसंग में।
युव हुंकार
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मन कहता है, घर घर जा कर कहूँ, उठो, युग के युवराज।
जिससे, बदल सकूँ दुनियाँ में, बिघटित मानवता का राज।
कहूँ युवा से तेरी शक्ति बदलेगी, काला कानून।
व उबाल आयेगी युग में खौलेगी, युवकों में खून।
जिस समाज में चोर, उचक्के जमा लिया हो गंदा पाँव।
चलो, देश के युवा बदलने रूढ़ वादी वाला,हर गाँव।
आज बदलने को आतुर हम, दुनियाँ भर के बदले भाव।
युग को दिखा, युवा में शक्ति, स्वामी जी का प्रखर प्रभाव।
आज विश्व को पुनः चाहिए, वही तेज स्वामी जी की।
आज बदलने को आतुर हम, रहा शेष खामी जो भी।
नारायण, किस असमंजस में पड़े, खड़े हो मेरे तात।
बढ़ो, बढ़ाओ, आओ, बैठो तभी बनेगी, बिगड़ी बात।
टी के
दिल्ली
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