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हम परिंदों की तरह ऊंची उड़ान भरने लगते काव्य पथ पर हम संस्कारों, संस्कृति सभ्यता परम्पराओं को काव्यपरिन्दों की तरह ऊंची उड़ान भरने लगते हैं।
हम अपनी परिस्थितियों कल्पना रूपी हर सार्थक पहलू को समझकर आस्था प्रतिक ईश्वरीय शक्ति वटवृक्ष जो ज्ञान गंगा का प्रतीक है सांसारिक धरातल काव्यात्मक अभिव्यक्ति कर परिंदों की तरह ऊंची उड़ान भरने लगते हैं।
जीवन हमारा बहुमूल्य है जीवन चक्र ईश्वर ने सभी का अपने अधिन रख संयमित आहार-विहार एवं प्रलोभन से मुक्त रखा है मगर जिज्ञासा रूपी पहलू ने आदमी को भटका दिया है ।
जहां जीवन नहीं वहां की परिकल्पना कर अपनों को धोखा गगन देकर अपने मार्ग से भटक गया है ।
काल्पनिक उड़ान से कहीं अधिक उड़ान भरने लगा हैं ,हम संस्कारों के काव्यपरिन्दें होकर भी, जीवन धरा पर हैं ये बात भूलते जा रहें है ।
गगन खरे क्षितिज
कोदरिया मंहू इन्दौर मध्यप्रदेश
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