क्रमांक —३८३
विषय — हिन्दी दिवस
विधा — संस्मरण
बात मेरे बचपन की है । मैं पांचवी कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद गर्ल्स स्कूल में नामांकन करवाई ।
वहां की प्रधानाचार्या काफी सख्त थीं।उनसे सिर्फ छात्राएं ही नहीं , अभिभावक भी डरते थे।
मेरा पहला दिन था और मैं छोटे से मिडिल स्कूल से आई थी । सो काफी सहमी हुई थी , प्रार्थना के बाद जब कक्षा में आई तो मुझसे किसी ने कुछ नहीं पूछा ।तभी हिन्दी की अध्यापिका का प्रवेश हुआ , मेरे पीछे बैठी ट्विंकल ने कहा,आज मंडे टेस्ट है मैम।
मैम ने मुझसे मेरा नाम ,और स्कूल पूछा और प्यार से बोली ,में प्रश्न दे रही हूं ,सभी अपनी — अपनी किताबें बंद कर लो । अब मैं सहज हो गई थी,उन्होंने पूरे 25 नंबर के प्रश्न दिए । मैं मन ही मन प्रसन्न थी ।
सभी के पेपर जमा हो गए , सारी कक्षाएं बहुत अच्छी रहीं।
आखिरकार अंतिम पीरियड में चपरासी भैया ने सभीके पेपर वापस किए । मॉनिटर का चेहरा उतरा हुआ था ,क्योंकि मुझे 24 सबसे अधिक अंक आए थे ।
अगले दिन कक्षा में हिन्दी की शिक्षिका ने मेरी काफी प्रशंसा की ,उन्होंने कहा ,सिम्मी तुम्हारी अशुद्धियां नहीं थीं,तुम हिन्दी साहित्य को अपना विषय अवश्य रखना । बस क्या था ,उनके आशीर्वाद से मैं बहुत मेहनत करती , उनसे ही प्रेरणा पाकर मैं लिखने लगी।
मुझे हिन्दी की प्यारी लगती बिंदी,
सजावट है माथे की, मां भारती की हिन्दी।
सिम्मी नाथ
राँची,झारखंड
मौलिक ,स्वरचित।
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