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माता, मातृभाषा, मातृभूमि को सदैव नमन !
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के,
मिटन न हिय के सूल।
--- भारतेन्दु हरिश्चंद्र।
हिंदी हमारी मातृभाषा है, अस्मिता है, पहचान है, अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। यह देश को जोड़ने वाली कड़ी है। हमें स्वभाविक रूप से आनी चाहिए, उत्साह-पूर्वक सीखनी चाहिए।
आज भारत ही नहीं, पूरे विश्व में, जहां भी भारतीय मूल के लोग हैं, हिंदी बोली-समझी जाती है। विदेश में, अनेक विश्वविद्यालयों में, हिंदी पढ़ाई जाती है।
यह हमारी संस्कृति-संस्कारों से जुड़ी है। सामाजिक-सुधारों, स्वतंत्रता-आंदोलनों, देश की एकता, अखंडता में इसका योगदान है।
आज अधिकांश सरकारी कार्य हिंदी में हो रहे हैं। शिक्षा एवं प्रतियोगिता-परीक्षाओं में इसका, विषय अथवा विकल्प-रूप में प्रावधान है।
यह हमारी शिक्षा, व्यवसाय, प्रगति में बाधक नहीं, सहायक है, आत्म-विश्वास का परिचायक है।
इसका विपुल शब्द-भंडार है, वैज्ञानिक शब्दावली एवं समृद्ध साहित्य है।
इसकी अज्ञानता हमारे लिए हास्यास्पद है, उपेक्षा शोचनीय।
हिंदी के प्रचार का मुख्य दायित्व, हम हिंदी- भाषियों का है। हम दैनिक जीवन में इसे पूरे जोश एवं कर्तव्य-भावना से अपनाएं। स्वयं भी पढ़ें-लिखें-बोलें, बच्चों को भी प्रेरित करें।
जहां हम हिंदी के सरल शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, वहां अनावश्यक रूप से, दूसरी भाषाओं के शब्दों से बचें।
जहाँ जाएं-रहें, वहाँ की बोली-भाषा सीखें और वहाँ हिंदी सिखाएं। इसका निश्चित ही अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
--- गोपाल सिन्हा,
बंगलुरू,
११-१-२०२२
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