कलम बोलती है
विषय हिंदी
क्रमांक 383
विधा लघुकथा
सखियां
दो सहेलियां शहर में घूमने निकली। एक स्थान में कई बुध्दजीवियों का जमावड़ा था, वही वो जाकर आराम करने लगीं।
पहली सखी बहुत खुश हुई, कवि गोष्ठी चल रही थी, खूब तालियां बज रही थी। दूसरी वहां गुमसुम बैठी थी, उसके कुछ पल्ले नही पड़ रहा था।
वहां से निकली तो दोनो सहेलियां एक जन्मदिन पार्टी में पहुँच गयी, वहां हर उम्र के लोग जश्न मना रहे थे।
वहां छोटे से बड़े लोगो की गिटपिट सुनकर दूसरी सखी आनंदित थी, पहली सखी खामोश थी और चिंतन कर रही थी, कि छोटे बच्चों को दूसरे देश की भाषा मे कविताये, गाने सुनकर लोग कितना खुश हो रहे है, दूसरी उसे अपना अंगूठा दिखा रही थी।
पहली सखी के माथे पर बिंदी थी, पहले बड़े घमंड में रहती थी, देखो मेरे नाम पर देश मे एक दिन मनाया जाता है काश सबलोग मेरी महत्ता पहचाने। आप दोनो सहेलियों के नाम बता सकते हैं।
स्वरचित
बैंगलोर
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