#विषय क्रमांक - 383
विषय-हिंदी
विधा-गद्य कविता
दिनांक - 11/01/22
हिन्दी - - हमारी भाषा
राजीव रावत
जिसकी न हो
अपनी धरती, न हो कोई भाषा -
किसी राष्ट्र की कोई कैसे,सम्पूर्ण करे परिभाषा -
नारी के सौंदर्य को
जैसे प्रदीप्त करे है बिन्दी -
वैसी उज्जवल किरण बिखेरे अपनी भाषा हिन्दी -
अपने आंगन
पली बढ़ी, यौवन भर पायी हिन्दी -
कुछ दुशासन खींच रहे हैं, उसके तन की चिंदी-
मां ने हमें
जन्म दिया और भाषा ने हमको शब्द दिये-
दोनों ने ही तो मिल कर हमारे जीवन के प्रारब्ध लिखे-
फिर हम
अपनी मां और भाषा से दूर भले क्यों होते हैं-
धुंधली आंखों के सपने और भींगे शब्द भी रोते हैं-
जिनको अपनी
मातृभूमि के गौरव का अभिमान नहीं-
अपनी भाषा के शब्दों पर,होता है स्वाभिमान नहीं -
राष्ट्रप्रेम की
भावनाओं का, जिनको होता नहीं है अर्थ-
उन नरों का जीवन भी क्या है, सम्पूर्ण रुप से व्यर्थ-
कृष्ण बनो
तुम कोई दुशासन, हर न पाये चिंदी-
युगयुगांतर तक गूंजे,बस चहू दिशा में हिन्दी -
जिनको अपना राष्ट्,
राष्ट्रभाषा है स्वीकार नहीं-
उनको इस पावन धरा पर, रहने का अधिकार नहीं-
युग उनको
नहीं छमा करेगा, जिन्हें घेरे रहे हताशा -
किसी राष्ट्र की कोई कैसे, सम्पूर्ण करे परिभाषा -
(यह कविता मेरी मौलिक रचना है)
राजीव रावत
भोपाल (म0प्र0)
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