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शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी 🏅🏆🏅

#विश्व_हिन्दी_दिवस

आज आप सूचित हो कि विश्व हिन्दी दिवस है। 
संसार के सभ्यता की जननी हिन्दी इसकी भाषा है। 
इसकी मिट्टी में सूर,मीरा,कबीर, जायसी जैसे रत्न है। 
यह रस छंद अलंकारों लय ताल तुक से श्रृंगारित है। 
पर्वतराज हिमालय इससे वार्तालाप करता निशिदिन है। 
सागर उस माँ भारती का चरण पखारते हुए अभिनंदित है। 
हवाओं में उस माँ भारती के गीत चहूँओर गुंजित है। 
वर्षा भी रिमझिम रिमझिम माँ भारती का गायन है। 
आर्यभट,पाणिनि,बारामिहिर,चार्वाक की माँ भारती है। 
इसमें प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी जी की आरती है। 
भारतेन्दु बाबू ने जिसका श्रेष्ठ चारण गान गाया था। 
विश्वकवि रवींद्रनाथ ने भी अपना श्रद्धा सुमन दान किया था। 
शुक्लजी, हजारीप्रसाद ने भी समीक्षा कर पक्का बनाया था।
आज सारा विश्व हिन्दी भाषा की राह पर चला जा रहा है। 
कैलोफोर्निया, कनाडा तक इसे अपनाया जा रहा है। 
आइए हमसब भी विश्वभारती माता हिन्दी को अपनाते है। 
इसके चरणों में बैठ कर, आशीष पाकर इसके बन जाते है। 
समस्त विश्व को बसुधैव कुटुबंकम् की अवधारणा बताते हैं। 
और सब में सर्वधर्म समभाव को जगाते है, अपनाते है। 
सब मिलकर आज माँ विश्वभारती के गुण को गाते है। 
आज के दिवस को पवित्र, सनातन और मंगलकारी बनाते हैं। 

स्वरचित मौलिक कविता
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत

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