विषय-हिंदी
विधा कविता
दिनांक-10-1-22
""""""""""""अनुरागी हैं हम हिंदी के""'''""""""""""
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अनुरागी हैं हम हिंदी के, निज गौरव पर अभिमान करें।
विश्व में संभ्रांत वाणी की,उत्कर्णता का व्याख्यान करें।
स्वर-व्यंजन हुई सुसज्जित, शुचि संस्कृति की शान है।
तेरा हर आश्व मधु सम, कोकिला रसीका व्याख्यान है।
यह देव-ग्रंथों की वाणी है, मेरे भारत का स्वाभिमान है।
पुनरावृति देती मृत्युंजय,उत्कण्ठित प्रवरता विद्यमान है।
आदिकाल सुशोभित थी, 'गौरख-हठयोग'आधार रही।
स्वयंभू की परमचरिउ में, देवसेन के 'श्रावकाचार'रही।
रोड़ा की 'राउलवेली'में, नखशिख- वर्णन- श्रृंगार बही।
विद्यापति लसित हुए जब,'कीर्तिलेता- कंठहार' बही।
आलावर संतों से होकर, तेरा संप्रदायों में वास लिखा।
रामानंद ने 'देववाणी' में ,भक्ति पर ही 'भास्य'लिखा।
कबीरदास की बनी खिचड़ी,तेरा दुनिया ने स्वाद चखा।
आदि ग्रंथ के 'महला'में, गुरु नानक ने'रहीरास'लिखा।
भारतेंदु से द्विवेदी-प्रेमचंद, दिनकर और निराला गुप्त।
देवनागरी यशस्वी संताने, प्रभूत उतुंग न होगी सुप्त।
वर्णमाला में है वैज्ञानिकता ,फैली कीर्ति न होगी लुप्त।
वर्ण-शब्द-वाक्य-वर्तनी, हैं यति- गति-रस- छंद मस्त ।
रहे 'हिंदी'हिंद की प्राण-पवन ,ऐसा कृत अनुष्ठान करें।
विश्व में संभ्रांत वाणी की,उत्कर्णता का व्याख्यान करें।
सतीश कुमार नारनौंद
जिला हिसार हरियाणा
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