रचना नंबर -1
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नमन कलम बोलती है समूह
विषय ..बेटी की अवहेलना
लघु कथा
08-09-21.बुधवार
आज में एक ऐसी सशक्त सुदृढ़ विचार वाली नारी के बारे में बताना चाहती हूँ जो जीवन के संघर्षों से विचलित न होकर उनके समाधान का रास्ता सोचती है , केवल सपने ही ना देखकर उसे साकार करने की भी भरसक कोशिश करती है .....क्योकि उसके साथ जो अन्याय किया गय़ा वो असहनीय व निंदनीय था ।
कल्पना अपने नये घऱ को देखकर फूली नहीं समा रही थी कभी ऊपर, कभी नीचे , कभी छत्त पर कभी दरवाजे पर दस्तक देती जा रही थी ..मजदूरों को सलाह..... ये काम ऐसे, ये पुताई ऐसे , ऐसी लाईट , ऐसा बाथरूम , ऐसी रसोई कुछ न कुछ बोलती जा रही थी ।
" अब चुप भी हो जाओ ये सब मिस्त्री कारीगर सब होश्यार हैं, थोड़ा आराम करलो, सुबह से जागती हो अकेली मेहनत कर रही हो बीमार हो गयीं तो क्या होगा ? " एक ही सांस में पतिदेव बोल गये । कल्पना समझ ही नहीं पायी कि ये नाराज हैं या मेरी चिंता कर रहे हैं ! ! ! खैर वो एकबार बैठ गयी पर शांति नहीं मिली उसे । उसका तो दिमाग का ब्रह्मांड ही घूम गया ......कैसे हैं ये ? कितना भोलापन है ? कितनी सादगी व सरलता से इन्होने मुझे बैठा दिया पर मेरी धड़कन नहीं रूक रही लग रहा है़ जैसे रक्तचाप बढ़ता ही जा रहा हो ,
हुआ यों कि कल्पना के मात्र तीन बेटियां ही थीं , भरा पूरा ससुराल मायका था लेकिन एक कांटा हमेशा ही सब चुभा देते थे ......लड़का ...बहनों के भाई तो है ही नहीं तो घऱ की क्या जरूरत है ? लड़की ससुराल चली जायेंगी और इन दोनो में से जो भी एक बचेगा उसके लिए हम परिवारीजन हैं तो ...
ये सोचकर कल्पना और उसके पति को घऱ से वेदखल कर दिया गया अब कल्पना को रातों की नीद व चैन नहीं था वह अपना एक मकान बनाना चाहती थी जिसे वो अपना घऱ कह सके जिसमे वो अपना निजी ताला लगा सके , सजा सके, संवार सके और अपने अतिथियों को जिन्हें वो बुलाने को तरसती थी बुला सके और आज 20 सालों तक इधर उधर भटकने के उपरांत आज उसका अपना ....सिर्फ अपना मकान बन रहा है ...जिसमें उसके पति के साथ उन्हीं बेटियों की भागीदारी है जिनके कारण उसे बेदखल कर दिया गया था ।
इतने सालों में आज उसे वो मेहनत का फल मिल रहा था जिसका वो स्वप्न में भी स्वप्न देखती थी .....आज उसकी वो उम्मीद पूरी होने जा रही थी जिसकी परिवारीजनों को कभी उम्मीद ना थी ....और ये कहते हैँ कि बैठ जाओ ! ! ! नहीं मैं नहीँ बैठूंगी ! और एक झटके से कल्पना उठी ...मुस्कुराइ हँसी और गरमागर्म चाय बनाकर पीकर फिर वही करने लगी जिस काम क़ो डांट खायी थी ।
(ब्लाग के लिये अनुमति )
स्वरचित।सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
रचना नंबर - 2
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नमन मंच
कलम बोलती है
विषय ...श्राद्ध पक्ष
22-09-21
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष कहते हैं ,
पितृ पक्ष के स्वागत के ये सोलह दिन होते हैं।
अपनी तिथि पर हर पूर्वज अपने घर को आते हैं ,
स्वादिष्ट भोजन वंशज उनको ब्राह्मण रूप में करवाते हैं।
सर्वप्रथम हम अपने इष्ट का सब भोजन भोग लगाते हैं,
उसके बाद संकल्प बोलें और गऊ का ग्रास सजाते हैं ।
दूसरा ग्रास कौए का होता उसको खीर खिलाते हैं ,
कहते हैं उनके खाने से पूर्वज खुश हों जाते हैं ।
पीपल बरगद वृक्ष हमारे श्रद्धा लाभ के होते हैं ,
इनके उगने के बीज कौए की वींट में होते हैं ।
इसीलिए कौओं की संख्या कभी नहीं घटनी चाहिये,
इन दिनों मादा अंडे देती उनको पौष्टिक भोजन चाहिये।
जल से हैं तर्पण करते वो जल पूर्वज को मिलता है,
वंश हमारी याद है करता उनको अनुभव ये होता है।
फिर ब्राह्मण को उनके नाम पर पूरा भोजन करवाते हैं,
वस्त्र दक्षिणा देकर के हम उनको विदा कराते हैं ।
इसी बहाने हर पूर्वज की यादें ही हम करते हैं ,
आने वाली पीढ़ी कों उनका इतिहास बताते हैं ।
श्राद्ध नाम श्रद्धा का है अमावस्या को विदा कराते हैं ,
दरवाजे पर दीप जला कर नतमस्तक हो जाते हैं ।
आप मेरी रचना ब्लॉग पर ले सकती हो मौलिक और अप्रकाशित है 👏
स्वरचित .सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
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