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बुधवार, 8 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"जी 🏆🏅🏆

जयशारदे माँ 🙏🙏
नमनमंच संचालक।
✍️कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - अन्याय।
विधा - लघुकथा।
स्वरचित।

प्रेमनाथ जी आफिस में क्लर्क थे।किराये के दो कमरों में गुजर-बसर हो रही थी।परिवार में पत्नी और तीन बेटे थे।बड़े बेटे की क्लर्क की नौकरी लग गयी। 
सरकारी कर्मचारी केकोटे से लाटरी में दो छोटे-छोटे प्लाट बाप-बेटे के नाम अलाट हो गये और धीरे-धीरे किस्तें पूरी होतीं रहीं।एक बेटा बाहर नौकरी करने लगा
कुछ समय बाद बड़े बेटे शादी हो गयी।रिटायर होने पर प्रेमनाथ जी ने एक प्लाट पर दो कमरों का मकान बनवा दिया।
बड़े बेटे की एक-एक कर 3 बच्चे हो गए उसी दो कमरे के किराए के मकान में।मकान बनने के बावजूद उन्हीं दो कमरों में सात लोग निवास कर रहे थे।जब भी कोई आ जाता तो बड़ी मुश्किल होती। 
    एक बार जब छोटा बेटा आया तो यह सब देख कर उसने कहा कि जब हमारा मकान बन गया है तो वहां क्यों नहीं शिफ्ट हो जाते। प्रेमनाथ जी को लगा कि वह मकान भी कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है तो बड़े बेटे को वहां शिफ्ट कर देते हैं परिवार के साथ.. आगे उसके बच्चे बड़े होंगे पढेंगे तो उसे ज्यादा जरूरत है।
दूसरे प्लाट में आगे जब सुविधा होगी अपने लिए घर बना लेंगे। इस तरह बड़ा बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नए मकान में शिफ्ट हो गया और प्रेम नाथ जी उसी किराए के मकान में रह गये। 
   एक दिन बड़ा बेटा मां बाप के पास आया हुआ था और मैं भी वहां बैठी हुई थी।चलती बात में बेटा कहने लगा देखिए ना मां बाप ने मेरे साथ कितना अन्याय किया,मेरे को घर से अलग कर दिया। 
मैं उसकी इस अन्याय की परिभाषा पर सोच रही थी कि अन्य वास्तव में किसके साथ हुआ था..? 
जिसको अपना घर मिला रहने को वह जिनका सारा जीवन किराए के मकान में गुजर रहा है..? 

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
08/09/2021


जय शारदे मां 🙏🙏
नमनमंच संचालक।
कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - बाबरा मन।
विधा - कविता।
स्वरचित ।(ब्लाग पर दे सकतीं हैं उमाजी) 

मन बाबरा होता है, 
जब लगन लग जाती है।
दुनियां की फिकर छूट जाती है,
जब प्रभु से लौ लग जाती है।।
***
मीरा हुई बाबरी कृष्ण प्रेम में 
औ दुनियां हुई बाबरी पैसे के खेल में। 
मां हुई बाबरी वात्सल्य प्रेम में
औ सन्तान हुई बाबरी कैरियर के खेल में।। 

हर कोई यहां बाबरा
किसी ना किसी खेल में 
मैं हुई बाबरी प्रतिलिपि लेखन में।। 
****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
15/09/2021

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही गंभीर बातें छिपी हुई है इस लघुकथा में ।
    मुझे लगता है त्याग की भी एक सीमा होनी चाहिए,
    यहां त्याग का मतलब कोई नहीं समझता।
    बहुत ही सुन्दर और प्रेरक प्रसंग 💐💐🙏🙏

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