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मंगलवार, 7 सितंबर 2021

#रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह "वत्स" जी 🏆🏅🏆

नमन-कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक------------------331
विषय-------------------------लम्हें
तिथि---------------07/09/2021
वार-----------------------मंगलवार
विधा--------------------------गीत
मात्राभार-------------------16,14

                             #लम्हें

घायल  करते  फिर  वो लम्हें,उर को बहुत सताते हैं।
बचपन  बीता  था  संकट  में,मन से आज बताते हैं।।

सच्ची  बात  बताना जग को,धरती ये परमारथ की।
भूल  गये  सब परमारथ को,जीत हुई है स्वारथ की।।
अन्तर्मन  में  राक्षस  बसते,जिनके  कर्म  रुलाते  हैं।
घायल  करते  फिर वो लम्हें,उर को बहुत सताते हैं।।

तन  पर  बीता है जो सुनिये,मन ये दुखड़ा गाता है।
सुबह  शाम  अरु दिन रैना ही,यादों में आ जाता है।।
समय  पुराने  याद  अभी तक,गहरे घाव जलाते हैं।
घायल  करते फिर वो लम्हें,उर को बहुत सताते हैं।।

मन - मन्दिर  में टीस उभरती,जौ की रोटी खाते थे।
नहीं  समय  पर  भोजन  पाते,भूखे ही सो जाते थे।।
वतन  लूटना  अंग्रेजों का,आज समझ हम पाते हैं।
घायल  करते फिर वो लम्हें,उर को बहुत सताते है।।

सोना  चाँदी  और  जवाहर ,गोरे  घर  पहुँचाते  थे।
लाज न आई थी गोरों को,क्षिति पर लहू बहाते थे।।
धरती  तड़पी  आजादी बिन,घाव सदा तड़पाते हैं।
घायल करते फिर वो लम्हें,उर को बहुत सताते है।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

1 टिप्पणी:

  1. इतने बेहतरीन गीत के लिए आपको बहुत बहुत बधाई हो।इस गीत का एक एक शब्द अपने आप में एक कहानी कहता है। सादर प्रणाम आपको��

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