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गुरुवार, 16 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. साधना तिवारी "रीवा" जी 🏆🏅🏆

नमन मंच🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय बावरा मन
विधा  स्वैच्छिक

बावरा सा मन ये मेरा
जाने किस ओर है चला
कुछ सोचे और ना समझे
न देखे अपना भला और बुरा
बावरा सा....।

चंचलता है इसमें भरी
नई उमंगों के साथ चला
खुशियों को समेटे हुए
बिन पंखो के है उडा।
बावरा सा .....।

पल दो पल का ये जीवन
इसको जी लो अब तुम जरा
राह मुश्किल से मिलती है प्यार की,
उसी राह पर है यह चला।
बावरा सा.....।

कहते हैं शांत और सीधा है ये
पर दिल को यही भटकाये 
जैसे नदिया में कोई भवर उठता जाये।
 अनकहे रिश्तो को यह पास बुलाए,
बावरा मन ...।

सुख-दुख का अहसास कराए
करे शिकायतें खुद से, और खुद ही समझाए,
बावरा मन मेरा खुद में ही उलझता जाए।
बावरा मन ....।

स्वरचित एवं मौलिक
साधना तिवारी रीवा
 मध्य प्रदेश

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