सुनता हूं कानों से मैं आज भी,
मेरी दहलीज पर गूंजती आहट तेरी,
मेरी धड़कनों का आवारा होकर बिखरना ,
और खुद पर इतराती मुस्कुराहटे तेरी ,
होता है कहां भला रात भर,
मेरी तन्हाईयों में अंधेरा सनम,
दिल की खूंटी पर टंगी लालटेन में ,
जला करती है शब भर यादें तेरी ,
मुकम्मल तौर पर तुम खुद से ,
मुझे कहां छोड़ पाए हो,
तुम्हारे ख्यालों से हुआ करती है ,
चारों पहर बातें मेरी!
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