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बुधवार, 8 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. शिव सन्याल जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है समूह
विषय - - - अन्याय
विधा - - - लघु कथा
दिनांक - - 8/9/2021

ज्यूँ ही बस स्टॉप आया। सभी सावारियां थक्का मुक्की करती हुई बस में जा चढ़ी। कुछ बच्चों वाली औरते बच्चा सँभाले सीट को तलाश रहीं थी। कुछ बुजुर्ग बेबस सीट की ओर निहार रहे थे। एक महाशय सीट पर रूमाल रख कर बड़े इत्मिनान से  सिगरेट पीने के लिए बस से नीचे उतरे तो एक बुजुर्ग तपाक से सीट पर बैठ गये। खचाखच बस सवारियों से भरी चल पड़ी। रूमाल वाले महाशय सीट पर बुजुर्ग को बैठा देख कर आपा खो बैठे। गाली गलौज कर के बुजुर्ग को खींच कर उठा दिया---"रे तेरे बाप की सीट है पता नहीं मैंने रूमाल रख कर रिज़र्व की हुई थी।" बुजुर्ग कांप रहा था टुकुर टुकुर उस महाशय की ओर देख रहा था।
तभी एक सज्जन उस महाशय से उलझ पड़े।
बड़ा बदतमीज़ है-" देखता नहीं बाप की उम्र का है। शर्म आनी चाहिए, यह अन्याय है कोई रूमाल सीट पर रख कर मालिक थोड़ा बन जाता।अरे- बुजुर्ग आदमी बैठ गया तो कौन सी आफत आ गई। " जबरदस्ती उस महाशय को उठा कर बुजुर्ग को सीट पर बिठा दिया। 
ग्लानी भरा वो महाशय खड़ा खड़ा अगल बगल मुँह छुपाए उस सज्जन को तिरस्कृत निगाहों से देख रहा था।

# ब्लॉग के लिए
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रचना मौलिक स्वरचित है। 
शिव सन्याल
ज्वाली कांगड़ा हि. प्र
नमन मंच कलम बोलती है
क्रमांक - - 335
विषय - - मन बावरा
विधा - - काव्य
दिनांक - - - 15/9/2021

मन बावरा रे लगा के पंख उड़ जाए।
जग की भूल-भुलैया में घुमड़ जाए। 

डाल डाल पर बैठ रहा अपने पंख पसारे। 
दो मन के बीच फंसा मन ही मन को मारे। 
सब कुछ चाहता मुट्ठी में दुनिया के नजारे। 
काम क्रोध लोभ के बस सब को हंकारे। 
पल पल मन का सब्र है टूटता जाए।
मन बावरा रे लगा के पंख उड़ जाए।
जग की भूल-भुलैया में घुमड़ जाए। 

कई आ रहे कई जा रहे जन्म मरण के फंदे। 
कुछ नहीं जग में अपना करे काम क्यों मंदे। 
खाली आया खाली जाएगा छोड़ मंदे धंधे। 
इतना भी तू सीख सका न लानत है रे बंदे। 
किस्मत में जितना लिखा उतना ही खाए।
मन बावरा रे लगा के पंख उड़ जाए।
जग की भूल-भुलैया में घुमड़ जाए। 

झूठी प्रीत लगा कर क्यों मन को लुभाता। 
सच्चा रिश्ता प्यार का यहाँ कौन निभाता। 
लाख पुकार मुसीबत में कोई नहीं है आता। 
एक वो ही साथी जो इस जग का है दाता। 
फिर क्यों नहीं तू उस के भजन गाए।
मन बावरा रे लगा के पंख उड़ जाए।
जग की भूल-भुलैया में घुमड़ जाए।

ब्लॉग के लिए
रचना मौलिक स्वरचित है। 
शिव सन्याल
ज्वाली कांगड़ा हि. प्र

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