नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बावरा मन
विधा#कविता।
**************
बन परिन्दा उडता है नील गगन।
ख्वाबो को बुनता है बावरा मन।।
चंचल चित पल पल में उडता।
ढूढे कही बसेरा,ठाँव अपनापन।।
सुन्दर स्वप्न पिरोये भटक रहा है
मंजिल की चाहत में खटक रहा।
सुख चैन का नींद किया हराम।
खुद गैरो की मंजिल झाँक रहा।।
कुछ सहमा सहमा सा रह कर।
अपना सर्बस्व लुटाना ओ चाहे।
पर पागल दिल मान सका ना
मन बावरा सोच जाल बिछाने।।
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बावरा मन
विधा#कविता।
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बन परिन्दा उडता है नील गगन।
ख्वाबो को बुनता है बावरा मन।।
चंचल चित पल पल में उडता।
ढूढे कही बसेरा,ठाँव अपनापन।।
सुन्दर स्वप्न पिरोये भटक रहा है
मंजिल की चाहत में खटक रहा।
सुख चैन का नींद किया हराम।
खुद गैरो की मंजिल झाँक रहा।।
कुछ सहमा सहमा सा रह कर।
अपना सर्बस्व लुटाना ओ चाहे।
पर पागल दिल मान सका ना
मन बावरा सोच जाल बिछाने।।
ओम प्रकाश आस
बौठा बरही गोरखपुर
यह रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
(ब्लॉग हेतू)
बौठा बरही गोरखपुर
यह रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
(ब्लॉग हेतू)
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