ग़ज़ल
वक़्त लगता पुरानी सदी की तरह ।
आदमी न रहा आदमी की तरह ।
हाव से ,भाव से , बात व्यवहार से,
लोग लगने लगे अजनबी की तरह ।
किससे लेता भला मशविरा यार मैं,
हर कोई चुप यहाँ ख़ामुसी की तरह ।
हर कोई है यहाँ सच से वाकिफ़ मगर,
झूठ फैला हुआ चाँदनी की तरह ।
इश्क़ का दर्द दुनिया में मशहूर है ।
दर्द कोई नही आशिक़ी की तरह ।
मयकशी में यहाँ इश्क़ का ज़ीस्त से ,
रब्त बनता नही शायरी की तरह ।
उम्रभर का तज़ुर्बा है "रकमिश" मेरा ,
आईना है कहाँ ज़िन्दगी की तरह ।
रकमिश सुल्तानपुरी
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