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शनिवार, 11 सितंबर 2021

आ. रकमिश सुल्तानपुरी जी 🏆🏅🏅🏆

ग़ज़ल

वक़्त   लगता   पुरानी  सदी  की  तरह ।
आदमी  न   रहा   आदमी   की    तरह ।

हाव  से  ,भाव  से , बात   व्यवहार   से,
लोग  लगने  लगे  अजनबी  की  तरह । 

किससे  लेता  भला  मशविरा  यार  मैं,
हर कोई चुप यहाँ  ख़ामुसी  की  तरह ।

हर कोई है यहाँ सच से वाकिफ़  मगर, 
झूठ   फैला  हुआ   चाँदनी  की  तरह ।

इश्क़  का  दर्द   दुनिया में  मशहूर  है ।
दर्द   कोई  नही  आशिक़ी  की  तरह ।

मयकशी  में  यहाँ  इश्क़  का ज़ीस्त से ,
रब्त  बनता   नही   शायरी  की  तरह ।

उम्रभर  का तज़ुर्बा  है "रकमिश" मेरा ,
आईना  है  कहाँ  ज़िन्दगी   की  तरह ।

               रकमिश सुल्तानपुरी

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