नमन मंच कलम बोलती है 🙏🏻
विषय-वो लम्हे
विधा-स्वैच्छिक
दिनांक-7/09/21
दिवस-मंगलवार
सादर अभिवादन 🙏🏻
जी लो हर पल को
इससे पहले कि ये निकल जाएं,
मुट्ठी में पकड़ी रेत की तरह
तेज़ी से फिसल जाएं,
ये पल...ये लम्हे
दोबारा नहीं आने वाले,
लौटकर गुज़रे ज़माने नहीं आने वाले।
बच्चे थे तो मौज थी
हरदम संग दोस्तों की फौज थी,
बड़े हुए तो हाथ छूट गए
संगी साथियों के साथ भी छूट गए।
वो भी एक दौर था
यह भी एक दौर है,
चारों और खामोशी
मगर दिल में कितना शोर है।
बचपन में सब अपने थे
छोटे छोटे जिनके सपने थे,
ना कहीं के राजा थे
ना ही कोई राजपाट था,
लेकिन अपना रुतबा
रजवाड़ों से ज़रा भी ना घाट था।
आज धन दौलत ऐशो आराम
सब कुछ पास है,
फिर भी बचपन के उन लम्हों की हमें
आज भी तलाश है,
खुशकिस्मत होते हैं वो
जिन्हें फिर मिल जाएं,
वो साथी...वो लम्हे जाने वाले....
इसलिए जी लो हर पल को
ये पल... ये लम्हे
दोबारा नहीं आने वाले...
लौटकर गुज़रे ज़माने नहीं आने वाले...💕
अल्का मीणा
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक रचना
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