सादर नमन
कलम बोलती है साहित्यिक मंच
मंगलवार,07.09.2021
विषय क्र.--331
विषय---"वो लम्हे'
विधा--- गीत
--------------------------------------------------------------------
*वो लम्हें*
~~~~~~~
बहुत चाहा है चाहते हैं अब तक तुम्हें।
बीत गए वो सुहाने पल और#वे_लम्हें।
चटख पड़ीं होंठों की कलियाँ,
जब मधुमास बनी थीं।
प्यासे मन की सारी गलियाँ ,
मंजिल आभास बनी थीं।
अटक भटक हो चार निगाहें,
जब इक सौगात बनी थीं।
लहर लहर कर केश घटाएँ,
जब काली रात बनी थीं।
कितने बहुत सुहाने थे नेह भाव जो बहे।
वो शुचि मंगल रातें थी,वो हसीन लम्हें।।बीत.....
जब कहार हिचकोले खाती,
डोली लेकर आए थे।
तुमने अपने चंपई सपने
नयनों बीच सजाए थे।
हमने तेरे हिरनी जैसे जब
नयन लजाए पाए थे,
रतनारी चूनर में भी तेरी,
चंदा तारे टकवाए थे।
गूँज उठे थे जब अधरों से कहकहे।
याद हमें आते हैं वो पल वो लम्हें।बीत....
मन की कोयल भी तो तब
रूठ रूठ जाती थी।
शायद मनुहारों के खतिर
शहनाई नहीं बजाती थी।
वह रात याद है तुमको जब,
हमें नींद न आई थी।
माहुर ने गीत गाए थे तब,
मेंहदी ने लोरी गाई थी।
कसक उठ रही अब शब्द हुए अनकहे।
वो तुम सँग बीते मेरे बो पल वे लम्हें।।बीत......
विनोद शर्मा
पिपरिया (म.प्र.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें