कलम बोलती हैं साहित्यिक समूह
नमन मंच
दैनिक विषय क्रमांक- 331
विषय- वो लम्हे
विधा- स्वैच्छिक
दिनांक- 6,09,2021
दिन- सोमवार
आयोजन संचालक- आदरणीय उमा वैष्णवी जी। 🔥
🔥 जिंदगी के अमूल्य लम्हे 🔥
वो लम्हे ना भूली मैं आज तक, जब अचानक पता चला मेरी पढ़ाई छुड़ाकर मेरी शादी का कार्यक्रम शुरू होने वाला है और बड़े जोर शोर से मेरे लिए वर तलाश होने लगा। कई लड़के देखे गए कई छोड़े गए। और मुझसे पूछे बगैर घर में मेरी शादी की तरह तरह की बातें कुछ मेरे सामने होती कुछ पीठ पीछे। मुझे देखते ही सब चुप हो जाते हैं। मैं पूछती की आप लोग चुप क्यों हो गए क्या बात कर रहे थे तो लोग कहते तुम्हें क्या मतलब। तुम घर गृहस्थी के काम में मन लगाओ ज्यादा लोगों की बातें सुनने में रुचि ना लो। फिर एकाएक मेरी ताऊ जी की बहू मेरी भाभी लगी उन्होंने मुझे बताया कि गुरुवार को लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं। मैं सुनकर सन्न रह गई। फिर ईश्वर से मनाती रही कि हे प्रभु कुछ ऐसा करना कि लड़के वाले मुझे देखकर नापसंद कर दे। और मैं गुरुवार का इंतजार करने लगी और दुख से भरी हुई आंखों में आंसू लिए किसी से कुछ कह भी नहीं पा रही थी। मुझे सबके सामने उपस्थित होने की मां ने आज्ञा दी। और भाभी ने बताया कि लड़के का नाम शुभेंद्र है। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हैं। मैं सब सुनती रही और कठपुतली की तरह सबके सामने उपस्थित हुई। मेरी नजरें भी झुकी हुई थी और शुभेंद्र की नजरें भी झुकी हुई थी। मन ही मन हम एक दूसरे के प्रति अनभिज्ञता में सोच रहे थे कैसे मना किया जाए। फिर भाभी ने कहा कि तुम लोग बात कर लो और वो लोग कमरे से बाहर निकल गए। वो लम्हा मुझे अब तक याद है कि शुभेंद्र और और मैं एक दूसरे को देखकर चकित थे क्योंकि शुभेंद्र और मैं प्राइमरी स्कूल में साथ साथ पढ़ें थे। हम लोग बहुत खुश हुए और शुभेंद्र ने कहा कि समय नहीं है मैं अभी शादी करना नहीं चाहता हूं मैं आगे की पढ़ाई करना चाहता हूं और शायद तुम्हारी भी यही इच्छा होगी। हम दोनों ने एक दूसरे को नापसंद करने की शपथ ली और अपने -अपने घर वालों से अपनी नापसंद बता दी। इस तरह हमारी शादी कैंसिल हुई और हमें आगे पढ़ने की अनुमति मिल गई। उस लम्हे की खुशी का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। 🔥
स्वरचित मौलिक
डॉ उषा मिश्रा
कानपुर उत्तर प्रदेश। 🔥
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