नमन कलम बोलती है समुह
#दिनांक- 09/09/21
$विषय क्रमांक- 332
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#वार- बुधवार , गुरुवार
#विषय- अन्याय
#विधा- लघुकथा
#शीर्षक-अन्याय
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!! लघुकथा !!
!! अन्याय !!
गौरव एक गांव मे गरीब किसान है। वह गरीब होने के कारण अपने बच्चे को गांव की ही एक सरकारी स्कूल में पढाने को मजबूर है। सिद्धान्त पढने में होशियार था। पिता को अपने होनहार बेटा सिद्धान्त पर बहुत ही गर्व था। वह इस उम्र में किसी अन्याय के विरुद्ध अवाज उठाने की हिम्मत थी।
इस वजह से कई बार स्कूल में अपने शिक्षक से पिट चुका था। पर वह लडका पिता से शिकायत नहीं करता था।
एक दिन की बात है, हर सरकारी स्कूल मे सरकार द्वारा पोषाहार योजना के अन्तर्गत सरकारी मेनू के हिसाब से पोषणयुक्त खाना देने का प्रावधान निश्चित किया गया है। एक दिन सेब और अनार का वितरण-छात्र छात्राओं बीच किया जा रहा था। सेब और अनार काफी छोटा और घटिया किस्म का था। कई बार खिचडी की थाली में तिलचट्टे और कीड़े होने की खिलाब आवाज उठानेवाले सिद्धांत आज अपने हाथों में वह सडे सेब और अनार ले कर अपने प्रधान अध्यापक के पास गया और बोला- "सर क्या आपके स्कूल का यही घटिया पोषाहार है। इसे खा कर विद्यार्थीयो को पोषण तो नहीं मिल सकता लेकिन वह बीमार जरूर हो जाएगा। आप अपने विद्यार्थियों को चंद पैसों की लालच में , सेहत के साध खिलवाड़ क्यों कर रहें है।"
इतनी सी बात सुनते ही प्रधान अध्यापक आग बबूला हो गया। पास मे पडी छडी उठा कर यह बोलते हुऐ पिटने लगा , " चल भाग यहाँ से ! आज-कल नेता बनने लगा है"। सिध्दान्त रोते हुए ,पीठ सहलाते हुए प्रधान अध्यापक के कमरे से बाहर भागा।
सारे बच्चे स्तब्ध हो सिद्धांत का मुंह देख रहा धा।
यह कैसा अन्याय है , जिस सरकारी शिक्षक को 50 हजार से लाखों तक की तनख्वाह मिलती है , फिर भी उन्हें संतोष नहीं। पोषाहार में धांधली कर विद्यार्थीयो के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं।
ऐसे शिक्षक, शिक्षक कम राक्षस ज्यादा होते है।
शिक्षक को हमेशा कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए न कि लालची।
यह अन्याय नहीं महा अन्याय है।
इति
उपर्युक्त रचना (लघुकथा)
स्वरचित , मौलिक और
अप्रकाशित है।
✍घूरण राय गौतम
बेलौंजा मधुबनी बिहार
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