नमन मंच
कलम बोलती है
विषय वो लम्हे
विधा गजल
ख्वाब में आकर वो छोड़ जाते हैं
दर्दे गम में तासीर है हमे मुस्कुराने की।।
बहुत सताया तुम ने मुझे मेरे हमनवा
नहीं कोई हसरत बाकी तिरे पास आने की।।
है जरूरत हमे सीने से घाव हटाने की
अब तो आदत हो गई हमे हार जाने की।।
यूं पल भर में लूट लेते हैं प्यार वाले
भला फिर क्यों कोशिश दूर जाने की।।
जो हासिल करना चाहा हमे वो मिला
हमारी कोशिश है नई दुनिया बसाने की।।
फलक में चांद सितारे जमी पर दर्द भुलाने
हर दर्द की दवा है यार महज मिटाने की।।
नफरत नहीं दिखाती कभी अपना हुनर यूं
आनंद हम कोशिश करेंगे नफरत भगाने की।।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान
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