नमन मंच
विधा कविता
विषय मजदूर
मजदूर नहीं मैं
जो दिन रात खटती रहूं
कभी बर्तन
तो कभी कपड़े रगड़ती रहूं
बनाकर तो लाए थे तुम महारानी
और बना दी मुझे नौकरानी
बिना पगार के मिल गई
तुम्हें एक नौकरानी
और तो और
सर्विस पर भी जाती
पगार लाकर भी देती
और बदले में पाना चाहती हूं
सिर्फ थोड़ा सा प्यार
औ स्नेह की बौछार
पर शायद
तुम वो भी नहीं दे पाते
क्योंकि तुम तो मुझे
मजदूर समझते हो
पगार लाने वाला मजदूर
दिन भर काम करने वाला मजदूर
तुम्हारे घर को सलीके से
रखने वाला मजदूर
पर मजदूर नहीं हूं मैं
मजबूर भी नहीं
पर तुम्हारे प्यार ने
बांध रखा है मुझे
बस इतना ध्यान रखना
मुझे मजदूर समझने की
गलती ना करना !
नन्दिनी रस्तोगी नेहा'
मेरठ
स्वरचित
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