कलम बोलती है।
विषय..वो लम्हें
विधा.. कविता
वो लम्हे कितने हसीन थे
जब हम तेरी पनाह मे थे।
वो लम्हे याद आते है हमे।
गुजारी राते हमनशी संग तेरे।
लम्हो की गुजारिश है तुमसे।
पास आओ लौट के हमारे।
कैसे गुजारे ये वक्त के धारे।
जो बिताये थे संग मैने तुम्हारे।
स्वरचित..
रीतूगुलाटी. ऋतंभरा..ब्लाग पर डाले
कलम बोलती है।
विषय..अन्याय
विधा..लघुकथा
#दिनांक..8-9-21
सांध्यकालीन वय मे स्वयं को जागरूक प्राणी समझ दम्पति ने विचार किया और सिविल अस्पताल मे जाकर कोरोना से बचने के लिये वैक्सीन लगवा ली..।।कोई बुखार वगैरा भी नही आया..अब पूरी तरह वो आश्वस्त थे.कि वो बाहर कही भी जा सकते हैं...मगर एक सप्ताह बाद...वो दोनो लंच कर सुस्ताने हुए लेट गये तभी एकाएक रानी को ठंड लगने लगी..और उसने पतिदेव को पंखा बंद करने को कहा..और मोटी चादर लेकर सो गयी।पतिदेव ने शाम की चाय खुद बनायी और रानी को भी दी।तभी उसने रानी को छुआ..
--अरे तुम्हें तो बुखार है..कहकर थर्मामीटर लगाया..।बुखार ज्यादा तेज तो न था,हाँ 100पर था।
--अरे छोडो ना,हो जायेगा ठीक..ले लूँगी पेरासिटामोल..।
--नही नही..लापरवाही ठीक नही..अभी चलो पास के डाक्टर को ही दिखा लेते हैं।
दोनो डाक्टर के पास गये..।रानी पढ़ी लिखी थी..
कोरोना को जान रही थी..तभी डाक्टर से पूछ ही लिया...डाक्टर साहाब..क्या हुआ है मुझे..??
--आपको वायरल बुखार है,मै दवा दे रहा हूँ..ठीक हो जाओगी।.मगर बुखार नही उतरा..और खाँसी बढ गयी..साँस फूलने लगी थी।चूकिं रानी को ब्लडप्रेशर कम ज्यादा रहता था अतः उसने सीरियसली नही लिया। फिर भी रानी ने डाक्टर को साफ कह दिया।
--डाक्टर साहाब न तो मेरा बुखार उतरा और खाँसी के कारण मैं सो भी न पायी रात भर। डाक्टर ने आश्वासन दिया...मगर..अगले ही दिन जब पतिदेव को भी 100 पर बुखार देखा तो रानी का माथा ठनका..। उसे अब कुछ शक हुआ..दोनो
ने कोरोना टैस्ट करवाया और वो दोनो ही पाँजिटिव हो गये।आनन फानन मे कोरोना का इलाज शुरू करवाया और दोनो ने फोन पर ही स्पेशली कोरोना डाक्टर का परामर्श लिया व बाहर से खाना मंगवाना शुरू किया।घर पर ही अपना इलाज लिया।आक्सीमेटर से आक्सीजन चेक करते रहे और आक्सीजन लेबल 87 होने पर घर पर ही सिलेंडर रखवा लिया। 14 दिन बाद बुखार उतर गया। कुदरत के हुऐ इस अन्याय पर समझदारी से दम्पति ने मृत्यु पर जंग जीत ली थी।
स्वरचित
रीतूगुलाटी. ऋतंभरा
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