नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमाँक. 332
विषय. अन्याय
विधा. लघुकथा
दिनाँक 9/9/2021
दिन. गुरुवार
संचालक आप औऱ हम
शशि एक सभ्य परिवार की बेटी जिसे उच्च संस्कार मिले थे। किन्तु पति अन्यत्र स्थान में कार्यरत था।
औऱ बहुत ही कम घर आता था। शशि अपने ससुर के साथ रहती। सिलाई का काम करती साथ में देवर भी रह्ता था। जो कपड़े बेचने का काम करता। खाने पीने से उसे कोई परेशानी नहीं थी।
पर ससुर की नशे की बुरी लत से वह परेशान थी। शाम को शराब पीकर आता औऱ गाली गलौज करता कई बार तो उसे मार भी देता।
ठण्ड के दिन करीब आठ बजे रात के समय उसकी गन्दी गन्दी गालियों की आवाज औऱ बहू के क्रंदन की आवाज सुन मुझसे रहा नहीं गया। मैं घर गया वह मुझे ही गाली देने लगा। मैंने उसे प्यार से समझाया पर वह नहीं माना। तब मुझे भी गुस्सा आ गया औऱ मैंने उसकी पिटाई कर दी। पड़ोस के सभी लोग एकत्रित हो गए।
सबों ने कहा अच्छा किया तुमने।उस दिन से ससुर जी की गाली की आवाज बन्द हो गई। रक्षाबंधन के दिन शशि ने मुझे अपना भाई बनाकर रक्षाबंधन बाँधा।
शशि का तलाक हो गया।शशि अपने मायके चली गई।
हर वर्ष शशि की राखी आती है औऱ सबसे पहले वही राखी मेरी कलाई में बंधती है। एक दो बार शशि सतना से राखी बाँधने घर आई है।
आज भी किसी पर अन्याय होते हुए मुझे देख कर सहन नहीं होता औऱ मैं अन्याय के प्रति आवाज उठाता हूँ।
स्वलिखित अप्रकाशित मौलिक सत्य लघु कथा।
ब्लाग में सम्मिलित।करने की पूर्ण अनुमति है
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
9893578040
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमाँक 333
विषय श्री गणेश जी की आराधना
विधा कविता
दिनाँक 10/9/2021
दिन शुक्रवार
संचालक आप औऱ हम
जय हो गणेश तेरी जय हो गणेश।
चार भुजा धारी हे मूषक तेरी सवारी है।
तू विघ्नविनाषक है गौरी पुत्र गणेश।
नाम तेरे अनेक हैं लम्बोदर, गजानन।
प्रथम पूज्य है तू तेरी आराधना करें सब
ब्रम्हा विष्णु महेश।
पापियों का तू नाश कर दे,
विघ्नहर्ता है तू विघ्न हर ले।
है गजबदन विनायक गौरी पुत्र गणेश।
तू ज्ञान दाता है ज्ञान हमें दे दे,
अज्ञान तम दूर कर दे।
मोदक लड्डू तुझे पसन्द हैं,
भक्तों की पूजा से खुश होकर,
दूर करता क्लेश।
हे गौरी पुत्र गणेश।
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नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
रचना नंबर 2
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नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३५
विषय बावरा मन
विधा कविता
दिनाँक१६/९/२०२१
दिन गुरुवार
संचालक. आप औऱ हम
तेरी प्रीत ममें सांवरे बावरा हुआ रे मन।
सुध बुध भुला बैठा रे मेरा बावरा मन।
ढूंढ़ता फिरे तुझे हरदम य़े बावरा मन।
पूछता फिरे हर कुंज बाग में,
पूँछें हर कली फूलों से ये बावरा मन।
प्रीत लगाकर कहां चले गए हो तुम।
नजर क्यूं नहीं आते पूछ रहा है ये,
बावरा मन।
अब तो सबसे कहता है ये बावरा मन।
कोई किसी से प्रीत न करेप्रीत में हो
जाता है बावरा मन।
बहारों का आए मौसम तो ,
खुश हो जाता बावरा मन।
कहीं तो मिलेंगे सनम।
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नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
रचना नंबर 3
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३६
विषय प्रेम की गागर
विधा कविता
दिनाँक१७./९/२०२१
दिन शुक्रवार
संचालक आप औऱ हम
प्रेम की गागर अमृतमयि होती है।
जीवन में करती नया संचार।
पूरित हो प्रेम से प्रेम की गागर।
जिन्दगी हँस के गुजर जाती है।
अपने प्रेम की गागर से हर
दीन दुखी को तुम दो प्यार।
गम से घबराया हो जो तुम उससे
प्यार के दो मीठे बोलों से हर लो दुख।
अपने प्रेम की गागर से जो दोगे प्रेम जल।
तो जीवन सफल हो जाएगा तुम्हारा।
प्रेम की गागर से प्रेम कम कभी न होने देना।
प्रेम से चलता सारा संसार।
प्रेम ही है जीवन का सार।
प्रेम बिना सूना सब संसार।
प्रेम की गागर में रखो प्रेम अपार।
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नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
रचना नम्बर 4
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३७
विषय कोशिश
विधा कविता
दिनाँक२०/९/२०२१
दिन सोमवार
संचालक आप औऱ हम
समस्या कितनी भी बड़ी हो नहीं घबराना चाहिये।
समस्या को हल करने की कोशिश करना चाहिये।
कोशिश करने से सबकाम सफल ही जाते हैं।
नन्हा बालक सीखता है चलना ।
बार बार गिरता है फिर करता कोशिश।
कोशिश करने से चलना सीख जाता है।
कोई भीनया काम हो देख कर लगता है।
हम यह नहीं कर पाएंगे ।
पर बार बार कोशिश करने से ,
सीख जाते हैं वो काम।
कोशिश ही सफलता की सीढ़ी है।
कभी किसी काम के लिये हार
नहीं माननी चाहिये।
बस कोशिश करते जाना चाहिये।
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नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म.प्र.
रचना नंबर 5
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नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३८
विषय श्राद्ध पक्ष
विधा कविता
दिनाँक.२३/९/२०२१
दिन गुरुवार
संचालक आप औऱ हम
अश्विनी मास की कृष्ण पक्षप्रतिपदा सेशुरू होता श्राद्ध पक्ष।
श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की आत्मा हमें आशीष देने
को आती। हम जल तिल अक्षत करते तर्पण।
किया हमारे लिये जो पूर्वजों ने उऋण होने के लिये
करते हम तर्पण।
पितृ रुप काग औऱ विप्र द्वार हमारे आते
देते हम उनको भोजन मिष्ठान ।
करते हम हैं दान।
पूरे पक्ष रहते पृथ्वी लोक में फिर स्वर्ग
वापिस हैं जाते।
चली आ रही प्रथा वर्षो से।
ये भी क्या हुई प्रथा हमारी
जीते जी तो कुछ न दिया माँ बाप को।
हरदम उनको दिया है दुख।
मरने के बाद करते हम पूर्वजों कोn तर्पण।
अब तो श्राद्ध पक्ष में गाय औऱ काग मिलना भी हो गया मुश्किल।
फिर भी हम श्राद्ध पक्ष मनाते।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना।ब्लाग में अपलोड करने की अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म.प्र.
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