नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय:-वो लम्हें
विधा:-कविता (स्वैच्छिक)
दिनांक-6/9/2021
कभी जब मन बिखरने लगता
परिरंभण स्मृतियों का तब होता
धूमिल होते यादों से चुनकर
कुछ अनमोल वो लम्हें लाता
गुजरे पल अक्सर याद आते
मन सिन्धु के तटों से टकराते
लहरों से जब अन्तर्मन विह्वल होते
पैठ अन्तस में चंद मोती चुन लाते
कुछ पाने से न हुआ हर्षित
न कुछ खोने से हुआ विचलित
इम्तिहानों का सिलसिला यूँ चलता रहा
हर उन लम्हों में मन तटस्थ रहा
हाँ कुछ लम्हें ऐसे होते
विसराये जो न कभी जाते
अन्तर को स्पन्दित करते रहते
यही निज जीवन को परिभाषित करते।।
कल्पना सिन्हा
स्वरचितव मौलिक
मुम्बई ।
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