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मंगलवार, 7 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. कल्पना सिन्हा जी 🏆🏅🏆

नमन मंच  
कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय:-वो लम्हें
विधा:-कविता (स्वैच्छिक)
दिनांक-6/9/2021

                कभी जब मन बिखरने लगता
                परिरंभण  स्मृतियों का तब होता
                धूमिल होते यादों से चुनकर
                कुछ अनमोल वो लम्हें लाता
        गुजरे पल अक्सर याद आते 
        मन सिन्धु के तटों से टकराते 
        लहरों से जब अन्तर्मन विह्वल होते  
        पैठ अन्तस में चंद मोती चुन लाते 
               कुछ  पाने से न हुआ हर्षित 
               न कुछ खोने से हुआ विचलित 
               इम्तिहानों का सिलसिला यूँ चलता रहा
               हर उन लम्हों में मन तटस्थ रहा 
      हाँ कुछ लम्हें ऐसे होते
      विसराये जो न कभी जाते
      अन्तर को स्पन्दित करते रहते
      यही निज जीवन को परिभाषित करते।।

कल्पना सिन्हा
स्वरचितव मौलिक 
 मुम्बई ।
              
                

  
   अनुरोध है कि हमारी रचना को ब्लाॅग पर पोस्ट की जाये।

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