कलम बोलती है साहित्य मंच
क्रमांक ३३१
विषय वो लम्हे
विधा संस्मरण
याद आते हैं वह लम्हे, पिता की अकाल मृत्यु, कुछ ही समय बाद मां की भी मृत्यु। तीन भाई एक बहन, भरा पूरा परिवार था।
ना जाने किसकी नजर लगी, हम भाई बहनों के सर से मां बाप का साया उठ गया।
हम लोगों की पढ़ाई क्रमशः दसवीं आठवीं छठी और तीसरी जो सबसे छोटी बहन थी।
क्या सोचा था? क्या हो गया?
काश! हम लोग माउंट आबू ना जाते, नौका विहार ना करते।
मां बाप ना बिछड़ते।
विधि को कुछ और ही मंजूर था।
रिश्तेदारों संग सारी रस्में अदा हुई, मगर आगे क्या करें?
जमाबंदी की चिंता, बैंक में पैसा बिना दस्तखत निकासी ना हो सके। उलझन में फंस गए।
मगर हिम्मत ना हारी।
भाइयों को संभालना, बहन को संभालना, चुनौती भरा कदम था।
जैसे तैसे दस्तावेज तैयार करवाएं, कुछ कमीशन देने के बाद।
समस्या बहन की परवरिश की थी।
किसके भरोसे छोड़ें? आखिर रास्ता मिल गया कॉलोनी में हमारा फ्लैट था।
बड़ा बेटा होने के नाते प्राइवेट परीक्षा देकर घर में पढ़ाई करता, धंधा भी करता।
धीरे धीरे कॉलोनी वालों का साथ मिला, धंधा चमक गया। पढ़ाई छूट गई, समय अंतराल बाद छोटी बहन क शादी हुई।
धूमधाम से विदा किया। पिता भाई माँ तीनों का फर्ज निभाया, सुकून मिला। वह लम्हे, वह लम्हे भुलाए ना भूले।
अनिल मोदी, चेन्नई
कलम बोलती है साहित्य मंच
तिथि १७ - ०९ - २०२१
विषय प्रेम की गागर
विधा
भरें प्रेम की गागर ह्रदय में,
हर जीवन से प्यार हो।
छोटा हो या बड़ा हो,
ऊंच-नीच का ना भेद हो।
सब को जीने का अधिकार।
ना होवे वैमनस्य और तकरार।
जियो और जीने दो का है संदेशा।
भगवान महावीर पथ है प्यारा।
सुलभ मार्ग अहिंसा का है यार।
क्षमा जीवन में आत्मसात करले यार।
मानव जीवन ना मिले बार-बार।
निस्वार्थ सेवा में हीरा सदा चमकता है यार।
अनिल मोदी, चेन्नई३
( ब्लॉग )
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