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गुरुवार, 16 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. जगदीश गोकलानी "जग ग्वालियरी"जी

जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 333
दिनांक - 11/09/2021
#दिन : शनिवार
#विषय - आराधना
#विधा - भजन
#समीक्षा के लिए
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आओं मिलकर करें प्यारे गणपति की अर्चना 
सब कुछ जग में रची हुई उसकी ही तो रचना
मनचाहा फल सभी को देते आप ही तो बप्पा
देते नहीं कभी किसी को गणपति आप वेदना

रिद्धि सिद्धि के दाता भक्तों के भाग्य विधाता
शंकर के लाल गणराजा पार्वती आपकी माता
ऊंचे आसन तुम बैठे कभी न भक्तों से रूठे
मुकुट सिर कानन कुंडल, आपको बहुत भाता

फूल चढ़े और चढ़े और आप पर चढ़े मेवा
मनचाहा फल देते सबको आप गणेश देवा
हे गणेश आप शिव के गणों के अधिपति
माता आपकी पार्वती और पिता महादेवा

मूशे की करते हो सवारी पहनते भगवा वेश
नैया मंझधार पड़ती जब आप लाते शुभ संदेश
रुके हुए सब कार्य आप ही आकर पूर्ण करते
नैया पार कराते हो गजानंद गौरी पुत्र गणेश

प्रथम प्रणाम आपको काटते सकल क्लेश
बुद्धि देकर मिटाते हो अंदर का सारा द्वेष
गिरिजा के नंदन काटते भक्तों के बंधन
विनती आपसे यही बनी रहे कृपा विध्नेश

देवों के आप देव हो आपसे बढ़कर न दूजा
शुभ कार्यों में प्रथम होती  आपकी पूजा
बाधाएं विध्न सब टारे रखते हो आप ही
देवताओं में सबसे ऊंचा आपका ही दर्जा

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 337
दिनांक - 20/09/2021
#दिन : सोमवार
#विषय - कोशिश 
#विधा - गीत
#समीक्षा के लिए
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जिंदगी तुझे मनाने की टूटी हर आस
कोशिश करी हमारे दिल ने अनायास
                                      (मु०)

जिंदगी हमारी शुरू से ही हारी है
हमने तो बस पैबंदों में गुजारी है
जितना मनाए उतना रूठती जाती
इसे मनाने की जंग हमारी जारी है
साथ न हो कोई तो क्या जिंदगी है
होता जाने क्या जा रहा है मुझ को
कोशिश करी....(1)

कैसे भूले जिंदगी तुझे चाहने की बेबसी
निकलती नहीं है अब इन होंठो से हंसी
जान मेरी ये जाने कहां जाकर के फंसी
रास नहीं आई तुझे हमारी ये मुफलिसी
हो नहीं पाएगी क्या जिंदगी तेरी वापिसी
दे न पाए हम मुहब्बत का सिला तुझको
कोशिश करी....(2)

दिल के अफसाने बस दिल में दबते रहे
तीर बनकर ये अंदर ही अंदर चुभते रहे
जज़्बात हमारे जाने कब से सुलगते रहे
ठोकरों से हम तो हमेशा ही दहलते रहे
दर्दे-दिल के नाम भर से हम बचते रहे
देंगे जवाब हम, बताओ किस किसको
कोशिश करी....(3)

मौलिक एवं स्वरचित
जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी”
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
ब्लॉग के लिए सहमति।


जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 338
दिनांक - 22/09/2021
#दिन : बुधवार
#विषय - श्राद्ध - पक्ष
#विधा - कविता
#समीक्षा के लिए
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करें नमन उन्हें जिन्होंने जीवन का हर बार पाठ पढ़ाया।
करें नमन उन्हें जिन्होंने जीवन पथ पर चलना सिखाया।।
श्राद्ध पक्ष में करें उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।
जिन्होंने कभी हमें वात्सल्य में भीगकर गले था लगाया।।

पितरों को करे श्रद्धा अर्पित, कभी रहा था उनका साया।
श्राद्ध पक्ष में करें समर्पित, फूल उन्होंने जो था कभी खिलाया।।
पीढ़ियों का जो बना किला, उसको याद करें सम्मान करें।
नाम दिया धन दान दिया, हर बार गिरने से हमें उठाया।।

विधा का उन्होंने विधान रचा, देकर हमको एक नई काया।
फूल अपनी बगिया में खिलाकर, संसार में हमको था लाया।।
मिला है मौका उनको याद करने का प्रायश्चित करने का।।
अपना सब कुछ समर्पण कर, गुण ज्ञान से था चमकाया।।

शत शत उनको नमन करने का, आज वह दिन आया।
सदा बनी रहती थी जिनकी, हमारे ऊपर छत्रछाया।।
श्रद्धा पितरों के प्रति ही है, सबसे बड़ा और सच्चा श्राद्ध।
भारतीय परंपरा ने पूर्वजों के गुणों को धारण करना सिखाया।।

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
ब्लॉग पर प्रस्तुत करने की सहमति।

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