#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
#दिनांक-08/09/2021
#दिन- शुक्रवार
#विषय- अन्याय
#विधा- लघुकथा
नंदिता की शादी को 4 माह हुए हैं। नंदिता के ससुराल वाले नंदिता को हमेशा प्रताड़ित करते हैं। नंदिता अपने मायके से ससुराल में कुछ अरमान लेकर आई है। लेकिन नंदिता की सारे अरमान धूल में मिल गई। नंदिता हमेशा रोती रहती है। जीवन को कोसती रहती है। ओह!!! भगवान मुझे किस नर्क में तूने डाल दिया। नंदिता का पति लापरवाह है। नंदिता के भावनाओं को नही समझता है। नंदिता मायके की सुख को अनुभूति कर हमेशा अपने आप को कोसती रहती है। उसकी दिल हमेशा कचोटते रहता है।
समय बीतता गया। समय कुछ ऐसा करवट लेता है। जब नंदिता अपने ससुराल में इतना ज्यादा प्रताड़ित हो गई। ये अन्याय उसके सहन शक्ति से परे हो गया। उसने सोचा कि मुझे अब इस घर में नहीं रहना है। नंदिता हमेशा अकेलापन महसूस करती है। नंदिता चुपचाप जाकर बेडरूम में सिसकियां,,, लेती रहती है। उसके इस स्वभाव को देखकर उसके ससुराल वाले अनबन बनाने लगे। नंदिता और परिवार वालों की रिश्ते में खटास आने लगा। नंदिता सारी व्यथा अपने घरवालों को बताई। नंदिता घर वाले बोले कुछ दिन और रहो। बेटी,,,, लेकिन नंदिता बोली----अब मैं आत्म ग्लानि की घूंट नहीं पी सकती हूं। ससुराल और मायके वालों के बीच इतना ज्यादा अनबन हो गया कि जो पूर्व में मधुर संबंध था। वह टूट कर बिखर गया।
ससुराल मायके वालों के बीच अनबन की खाई इतना गहरा हो गया कि उस खाई को पाटना बड़ा मुश्किल हो गया। नंदिता के स्वभाव को जाने बिना प्रताड़ना दोनो रिश्तों के बीच दरार डाल दिया।
रचना
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चन्द्रवंशी मौन
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
#दिनांक-21/09/2021
#दिन- मंगलवार
#विषय -कोशिश
#विधा -छंद मुक्त कविता
कुछ नूतन करने का मन में आस कर,
नव सृजन का अटल विश्वास कर।
सोई हुई प्रतिभा को जागृत करने का,
स्वयं का एक सार्थक प्रयास कर॥
विगत हर पल को आत्मसात कर,
वर्तमान के कर्म को अवलोकित कर।
भविष्य के प्रति उन्मुख होकर,
कुछ अच्छा करने का कोशिश कर॥
भाव भंगिमाओं को साज संवार कर,
झुकी कटि को फिर खडा कर।
जिंदगी के विवशता को त्याग कर,
पर्वत सादृश्य मनोबल बड़ा कर॥
गर गिर चुके हैं पगडंडियों में,
यह जमाना स्तब्ध देख रहा है।
यदि रुक गये नाकामयाबी के गर्त में,
हृदय की व्याकुलता कोस रहा है॥
शनैः - शैनः कदम आगे बढ़ाते रहो,
एक दिन सफलता शोर मचा देगा।
पग चुंबन होगा पर अधरों से,
खुशियों से जीवन की डोर सजेगा॥
हिम्मत न हारें नभ का तारें गिनना है,
पग से नापना है धरती आसमां को।
एक तुच्छ प्रयास क्यों ना हो?
हमें दिखला देना है असमय को॥
यदि भूल हुआ है पुनः सुधार कर,
नए सिरे से नव आगाज कर।
सब त्रुटियों को प्रयश्चित कर,
जीवन में सफलता का बरसात कर॥
स्वरचित
मनोज कुमार चंद्रवंशी
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर (म0 प्र0)
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