#"कलम बोलती है" साहित्य समूह
# दैनिक_विषय_ क्रमांक_३३१
# आज का विषय # वो लम्हे
#विधा_ स्वैच्छिक
# प्रस्तुतकर्ता: ओमप्रकाश गुप्ता, बैलाडीला, दन्तेवाड़ा, छत्तीसगढ़
#दिनांक: 06:09:2021
हमारे गाँव के ओर जाती हुई पगडंडियाँ,
क्यों तू तब्दील हुई अब पक्की सडकों में ।
खेतों में चलने वाले वो हमारे बैलों के हल,
चोला छोड बदल गये पावर टीलर यंत्रो में ।
ईंटों के ये घर , फिर मिट्टी के बन जाओ न,
सुकून के वो लम्हे! हो सके लौट आओ न ।।1।।
खोई सोंधी दीवारें,गलियों के स्कूलों में ,
सन्नाटा फैला दरख्त में बैठी बुलबुलों में,
गुरुओं के वो ओज, समाते थे शिष्यों में,
सलोने सपने बुनते,पुरखों के किस्सो में,
आ गये टी वी में,अब बहारों में छाओ न,
मेरी अल्हडता ! बन सके लौट आओ न।।2।।
खोये सोहर ललना के,बदले वे बर्थ डे में,
विवाह के लोकगीत खोये यूँ रिसेप्शन में,
नूपुर की रुनझुन खोई बाबू के अंगना में,
झूले संग कजली चुप,हाथों के कंगना में,
सब गुमसुम है,छम छमकर किलकारों न,
http://antrashabdshakti.com/2020/12/19/साहित्य-साधक-सम्मान-2020-ओमप्/
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आ. ओम प्रकाश गुप्ता जी की E-book
https://antrashabdshakti.com/2021/11/09/
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Super
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता सर जी
जवाब देंहटाएंBahut sunder sir ji
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