अन्याय
लघुकथा
टी के पांडेय
दिल्ली
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बहुत मुश्किल से दिन भर कमाने के बाद रात की रोटी जुटा पाता था राजेश। अपनी गृहस्थ आश्रम में शांति और खुशी से चार बच्चों को ऊँची शिक्षा देने के ख्याल से शहर आया था परंतु भाग्य ने यहाँ भी उस बार बार छला। कहते हैं न कहाँ जाते हो नेपाल, साथ जाएगा कपाल। पत्नी माया के असहनीय पीड़ा ने उसे अंदर से झकझोर दिया जब डॉक्टर ने ओवरी में सिस्ट बताया और तत्काल ऑपरेशन की बात कही। धरा के धरा रह गया सारा प्लान और घर में बची खुची जमींन बेचने आ गया। हाय रे विपत्ति उसके सगे चाचा ने उसके द्वारा जमीं बेचने पर कोर्ट में स्टे ऑर्डर इसलिए रोक लगबा दी ताकि उसके हिस्से को "अन्याय "करके ही सही मालिकाना हक प्राप्त कर सके। सच में कहा _
सच में विपत्ति जब आती है, कायर का जी दहलाती है
सुरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते।
अन्याय के खिलाफ राजेश ने कमर कस कर सामने तन कर मुकाबला करने को सोचा। यह भी सत्य है जैसे ही आप तन कर खड़े,,,,,,,,
भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन के साथ संवाद के कुछ अंश की प्रस्तुति। आज के समय को समर्पित ये तत्व।
संवाद
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पंचम सर्ग
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योग्य कर्म है वही, जहां पर, फल की कोई चाह नहीं।
त्यागी ,प्रिय अर्जुन वही जिन्हें तन की है परवाह नहीं
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आंधी तूफ़ानों में जो जन , अपमान,सुधा सम पीता हो।
मेरे में अर्पित कर कुछ दिन का भाव लिए ही जीता हो।
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एकांत किसी भी प्रांत शांत हो अर्जुन मेरा ध्यान करो।
छोड़ हालाहाल को अब तो तू सुधा कलश का पान करो ।
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मन अगर भ्रमण में जाता है, जानो दो प्रिय सुनसान जहां।
फिर लौट तुझी में आएगा, रहता है तेरा ध्यान जहां।
*******५*********
योगी जन का नास नहीं, जीवन मन पर ही निर्भर है।
जीवन मृत्यु से कहीं दूर समझो अर्जुन वह ऊपर है।
टी के पांडेय
दिल्ली
१०/०९/२१
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