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मंगलवार, 7 सितंबर 2021

रचनाकार :-आ. तरुण रस्तोगी कलमकार जी 🏆🏅🏆

🙏नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_
साहित्य_समूह 
#आयोजन संख्या ३३१
#विषय वो लम्हे
#विधा स्वैच्छिक
#दिनांक ०६/०९/२१
#दिन मंगलवार

आज के इस दौर में मुश्किल है समझ पाना।
कौन अपना है यहांँ ओर कौन बेगाना।
आजकल  बहुत बुरा वक्त चल रहा।
कोरोऩा बीमारी का नाम सारे रिश्ते निगल रहा।
जान पहचान व खून का रिश्ता भी,
बीमारी का नाम सुनते ही कहीं गुम हो जाता।
तब बेगाने लोगों का हमारे जीवन में प्रवेश हो जाता।
यहां सारे अपनो ने साथ छोड़ दिया।
तब बैगानो ने इक रिश्ता जोड़ लिया।
तब वो खूबसूरत लम्हें मैंने कैमरे में कैद करके सहेजकर रख लिए।
जब कभी मन उदास होता है।
उन लम्हों को देखते ही
मन खुश हो लेता है।

तरुण रस्तोगी कलमकार
मेरठ स्वरचित
ब्लाग पर डाल सकते है।
मेरी स्वीकृति है
🙏🌹🙏

🙏नमन मंच 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय अन्याय
#विधा लघुकथा
#दिनांक ०९/०९/२१
#दिन गुरुवार

आज का दौर कैसा हो गया एक दूसरे पर विश्वास करना मुश्किल हो गया।
गैरो से हम क्या गिला शिकवा करें, जब सगा भाई दगा दे गया।
बात उन दिनों की है जब मेरे माता-पिता एक ही दिन में कुछ मिनटों के अंतराल में परमधाम को प्राप्त हो गये थे ।
उसके कुछ दिनों बाद ही हम भाइयों में बंटवारे को लेकर बात हुई ,
उन्होंने मेरे सीधे स्वभाव का फायदा उठाकर मेरे और मेरे बच्चों के साथ अन्याय किया मुझे अपनी बातों में उलझाकर मुझसे कागज पर सिग्नेचर करा लिए , मेरा छोटा भाई कह रहा था कि मैं नौकरी छोड़ कर पापा की दूकान पर बैठा करुंगा मैं बहुत भावुक किस्म का इंसान हूँ, मैंने भावना में आकर जैसा उन्होंने कहा कर दिया। उन्होंने मुझे 50 हजार रुपए दिए और कहा यह मकान का और दुकान का तुम्हारा हिस्सा।
लेकिन मुझे कुछ दिनों बाद पता कि उन्होंने पाया की दुकान को साढेतीन लाख रुपए में बेच दिया और मुझे धोखे में रखा।

तरुण रस्तोगी कलमकार
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

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