नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-24-9-2021
विषय अभिलाषा
विद्या पद्य
मेरी परम अभिलाषा है।
मैं परिवर्तन कर जाऊं
मिलजुल कर सब से रह पाऊं
जोत प्रेम की मैं जगाऊं।
कर्तव्य पथ पर अडिग रहजाऊ
भय मुक्तजीवन चाहती हूं।
यही अभिलाषा गाती हूं।
नफरत दुनिया से मिट जाए।
धर्म-कर्म का दीप जलाएं।
नैतिकता का पाठ पढ़ू पढ़ाऊं।
बिखरे हुए समाज को फिर से।
एकता के पथ पर चलाऊं।।
मेरी यही अभिलाषा है।
दीन दुखियों की सेवा करके ।
जीवन अपना बिताऊ में।
सब से मिलना चाहती हूं।
मरने से पहले इस जीवन में।
कुछ अच्छा मैं कर जाऊं।
इस समाज मैं कुछ ऐसा।
अमिट कार्य करके मैं जाऊं ।
जाना तो एक दिन सबको है।
मैं आसमान को छू जाऊं ।
समाज परिवार के प्रति
अपना कर्तव्य निभाऊं।
कर्मवान बन देश के काम आऊं।।
मर मिट जाना एक दिन सबको।
गांव गली मोहल्ले पहचान बनाऊं।
जाने पहले साहित्य में कुछ।
मैं अच्छा सृजन कर जाऊं।
स्वरचित मौलिक
संगीता चमोली
देहरादून उत्तराखंड
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 15
*********''****
नमन मंच
24-9-2021
विषय- अभिलाषा
शुक्रवार
अभिलाषा है मेरी की बेटियों की रक्षा हो ,
सदाचार का आदर करें दुर्भावना न हो ।
स्थिरता हो स्थिर, संशय गतिहीनता न हो,
राजनीति भी साफ सुथरी,भीरुता न हो ।
बच्चे-विद्यार्थी मेधा युक्त,मलिनता न हो ,
जोश-अथक का सम्बल,पथभृष्टा न हो।
प्रगति-उन्नति का गम्भीर भाव-एकता हो,
राष्ट्रोत्थान की दिशा का पथ मंगलमय हो।
ज्ञान-विज्ञान का हो मानवोत्कर्ष में सदा ,
सदियां की प्रेरणा का सार्थक मनोबल हो।
स्वरचित
डॉ पूनम सिंह
लखनऊ
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर -16
************
नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३९
विषय. अभिलाषा
विधा कविता
दिनाँक२४/९/२०२१
दिन शुक्रवार
संचालक आप औऱ हम
मेरे मन की अभिलाषा पूरी करना मैय्या।
सुख शान्ति से रहें सब आपस में हो प्रेम भाव।
सब के जीवन में आए सुख का नया सबेरा।
मेरे मन की है अभिलाषा मैय्या।
मेरे मन की है यही अभिलाषा कामयाबी की
बुलन्दी तक पहुंच माँ बाप का करूं नाम रोशन।
सैनिक बन दुश्मन से लड़ने जाऊँ।
बुजुर्ग माँ बाप की करूं सेवा।
मेरे मन की यह अभिलाषा
दीन दुखियों के कुछ काम आऊँ।
असहाय हैं जो उनकी करूं मदद ।
मेरे मन की यह अभिलाषा,
छोटा साआशियां हो अपना।
बिटिया की किलकारी गूँजे घर में,
मेरे आँगन में भी बजे शहनाई।
बिटिया की मैं भी करूं विदाई।
मेरे मन की अभिलाषा, करना पूरी मैय्या।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना। ब्लाग में अपलोड करने की पूर्ण अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर -17
**********'**
जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 339
दिनांक - 24/09/2021
#दिन : शुक्रवार
#विषय - अभिलाषा
#विधा - कविता
#समीक्षा के लिए
---------------------------
**********************************
मेरे मन की यह अभिलाषा,
बचपन मेरा लौट आए
माँ पिता का प्यार मिले
दादा दादी दुलार लुटाए
मेरे मन की यह अभिलाषा,
मां आंचल में भरकर सुलाए
दादा दादी नाना नानी आकर
पारियों की कहानी सुना जाए
मेरे मन की यह अभिलाषा,
उम्र अपनी राह भटक जाए
पग उल्टा दिखलाकर उसको
बचपन मेंरा वापस लौटा लाए
मेरे मन की यह अभिलाषा,
बचपन वापिस मिल जाए
मिले कागज की कश्ती वहीं
जहां हम छोड़कर आए
मेरे मन की यह अभिलाषा,
अभिलाषा बनकर रह गई
चील कौए उड़ाते थे बचपन में
हम बचपन अपना उड़ा लाए
मेरे मन की यह अभिलाषा,
कोई बचपने मुझको लौटाए
तरुणाई की भटकी चाह में
बचपन अपना कहां लुटा आए
मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
रचना नंबर - 18
*************'
कलम बोलती है साहित्य समूह
नमन मंच
दिनांक - २४/०९/२०२१
विधा -- कविता
विषय -- # अभिलाषा #
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मै तेरे द्वार
तेरा दर्शन करूँ मैं माता
कर दो माता मेरा उद्धार
सोच रहा है ये मन मेरा
कैसे तेरे दर जाऊं मै
मै तुच्छ हूं पाप घनेरा
मन ही मन पछताऊं मै
तुम तो हो पारस मणि माता
कर लो तुम मुझको स्वीकार
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मै तेरे द्वार
अब यही है मेरी लालसा
प्रबल प्रखर है अभिलाषा
तेरी भक्ति में मगन रहूँ
तेरा रूप निहारूँ हर पल
तेरा ही बस गुणगान करूँ
तेरी शरण में आया माता
कर दो मैरा बेडा़ पार
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मैं तेरै द्वार
हे माता पर्वत वासनी
तूं ही है जगदाधार
सिंह वाहनी,पाप नाशनी
तूं ही है जग पालन हार
मेरी लालसा पूरन कर दे
कर दे माँ भव सागर पार
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मैं तेरे द्वार
रचनाकार -- सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना नंबर - 19
**************
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
दो दिवसीय आयोजन
#दिन :शुक्रवार
#विषय क्रमांक no.:339
#दिनांक :24/09/2021
#विषय :अभिलाषा
#विधा :कविता
*अभिलाषा*
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
कि फूल बन तेरे
गजरे की शोभा बनूँ
और तुझ प्यारी को लालचाउँ
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
कि फूल बनकर
त्रिलोकी नाथ के
गले का हार बनूँ
और मंदिर मे पूजा जाऊं
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
जिस रास्ते जाये
देश की रक्षा के लिए
सरहद पर वीर अनेक
उनके चरणों मे
अपना शीश झुकाऊं
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
कि कांटो संग
रहकर भी प्यार का
दुनिया को संदेश देता जाऊं
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
कि शादी मे
वर-बधू के गले
की शोभा बढ़ाऊं
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
कि अर्थी पर चढ़कर
अंतिम निवास तक साथ निभाउं
मेरे मन की
यह अभिलाषा है
कि जिस धरती पर
ऊगू पूरी दुनिया को
खुश्बू से महकऊं
शिवशंकर लोध राजपूत
दिल्ली
व्हाट्सप्प no.7217618716
रचना स्वरचित व मौलिक है !
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 20
***'******'*****
दिनांक : 24/07/21
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय :"अभिलाषा"
डॉ. महेश मुनका "मुदित"
अभिलाषा है पुष्प तेरे चरणों मेंअर्पित मैं करूं सदा,
अभिलाषा है हरदम अग्रसारित रहूं प्रगति पथ पर मैं सदा। अभिलाषा है सपने मेरे जीवन में कभी अधूरे ना रहें,
अभिलाषा है थमे न पग मेरे अविचल बस बढ़ते ही रहे। अभिलाषा है किसी की टूटती सांसों को मैं संबल दे सकूं, अभिलाषा है किसी मासूम की आशा की ज्योत चला सकूँ। अभिलाषा है जन्म ले जिस भाषा को मातृभाषा मैंने जाना, अभिलाषा है उस भाषा को विश्व ने सशक्त भाषा माना।
अभिलाषा है राष्ट्र हित में मैं सदा कर्म करता रहूं,
अभिलाषा है इस राष्ट्र की तन मन धन से सेवा करता रहूं।
कहे मुदित जनहित राष्ट्रहित में सदा कर्तव्य रत रहो तुम,
चाहे कितना भी कष्ट हो हंसते-हंसते सहते रहो तुम।
-डॉ महेश मुनका 'मुदित'
******
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 21
*'************
जय माँ शारदे🙏
नमन मंच
विषय क्रमांक-339
विषय -अभिलाषा
अभिलाषा
अभिलाषा मेरी यही हैं
दुनिया न ऐसे होती
नफरतो से परे होती
धर्मो से परे होती
कर्मो मे बहस न होती
मंदिर सुकूँ देते
मस्ज़िद भी सुकूँ देते
दुश्मन भी सभी हमको
दोस्तों सा आकर मिलते
भूल चुके है जो रिश्तो को
वो भी हमें मिल जाए
बांहे फैला फैला कर
स्वार्थ से परे सब होते
दुख -सुख में साथ होते
आडम्बरता से हो दूर
दिल के वो पास होते
जीवन में आस होती
कोई न भूखा सोता
अभिलाषा मेरी यही हैं
बेटियाँ अब सभी की
निर्भया ,प्रिंयका जैसे
यूँ शर्मसार न होती
घर बाहर सुरक्षित होती
मानवता यूँ न डिगती
अभिलाषा मेरी यही हैं
दुनिया न ऐसी होगी
नफरतों से परे ये होगी
रजनी कपूर
जम्मू
रचना नंबर - 22
***************
नमन मंच
दिनाँक:24/09/2021
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय: अभिलाषा
#विधा:पद्य
+++++++++++++++++++++++++++++
मेरे मन की यह अभिलाषा
+++++++++++++++++++++++++++++
ये अधर हमारे शांत रहे, अरु नैन समझ जाए भाषा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।
कभी अमा की नहीं अंधेरी, जीवन में काली रातें हों।
जिन बातों में न जिक्र हो तेरा, न हृदय में ऐसी बातें हों।
हम दोनों ही रहें हमेशा, बन इक दूजे की परिभाषा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।
मृगांक कभी न चमके पूरा, जिस रजनी में तुम साथ नहीं।
कट जाएं वो हाथ हमारे, जिन हाथों में ये हाथ नहीं।
तुम जीवन का हो उजियाला, है तुम बिन हर ओर कुहासा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।
तुम हो सुगन्ध चंदन जैसी, तुम पावस की बूँदा-बाँदी।
केश तुम्हारे घने सुनहरे, ये देह लगे तेरी चाँदी।
तुम हो पहली तुम्हीं आखिरी, तुम कुदरत का नूर तराशा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।
मन के अंदर बस तुम बसते, जैसे हो पुष्प परागों का।
बोल तुम्हारे खण्ड राग के, तुम रोशन दान चिरागों का।
तुम सरिता की शीतल धारा, मैं सदा मेघ सम हूँ प्यासा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।
+++++++++++++++++++++++++++++
(स्वरचित एवं मौलिक)
-आई जे सिंह
दिल्ली
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 23
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'जय माँ शारद
विषय- अभिलाषा
दिनांक-24-09-2021
शुक्रवार
समीक्षा हेतु सादर प्रेषित-
अभिलाषा
---------तुम मुझे को ऐसे समा लो अपने
रोम मेंजैसे
तुम दिया और मैं बाती बन जाऊं
साज तुम और मैं राग बन जाऊं
इस दिल की धड़कन की
आवाज में बन जाऊं
कृष्ण की बांसुरी की तरह तुम्हारे
अधरों की प्यास मैं बन जाऊं
तुम्हारी बोली में तुम्हारे कंठ की
आवाज में बन जाऊं
तुम्हारी कल्पना का आधार में बन जाऊं
जिस राह पर तुम्हारे कदम पड़े
उस राह की धूल में बन जाओ
मैं तुम्हें ऐसे समा जाऊं
तुम शरीर में तुम्हारी परछाई बन जाऊं
तुम्हारे साथ चलते चलते तुम मेरा
आधा अंग और मैं तुम्हारी
अर्धांगिनी बन जाऊं
तुम्हारे इस जीवन में मैं तुम्हारे
जीने की वजह बन जाऊं
पूजा भारद्वाज---
रचना नंबर - 24
**************
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य
विषय क्रमांक 339
विषय अभिलाषा
मेरे मन की यह अभिलाषा
16,15 वज्न गजल
मेरे मन की यह अभिलाषा, पूरा करना हे भगवान।
भ्रष्टाचार खत्म हो जाए,ऐसा मिल जाए वरदान ।
रोजगार सबको मिल जाए, हों सब की मुट्ठी में दाम,
दामन भर खुशियां मिल जाए, पहन सकें हम नव परिधान।
सर्दी गर्मी बरसा मौसम, झेले हैं बहुतेरे कष्ट, झोंपड़-पट्टी मे दिन काटे, मेरा भी बन जाए मकान।
भारत करे विकास निरंतर , प्रगति के खुल जाएं द्वार,
वैज्ञानिक खोजों हों पूरी, सफल रहेंगे अनुसंधान ।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चतुर्दिक फैले सद्भाव,
भाईचारा हिंदू- मुस्लिम,रहे देश की यह पहचान।
अंग्रेजी से मोहभंग हो, रहे स्वदेशी ही आधार,
अपनी भाषा अपना गौरव, हिंदी का हो अब सम्मान।
स्वरचित
केशरी सिंह रघुवंशी हंस
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 25
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय- अभिलाषा
विधा-कविता
दिनांक-24/09/21
" अभिलाषा"
अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।
बरसों पुरानी अनुभूतियों में ढल जाने की।।
लफ्जों में भी कुछ कह जाने की नहीं।
धीरे-धीरे दिल में तरसीब हो जाने की।।
हल्की-हल्की बूंदों के पड़ने से भी नहीं।
प्रीत के समंदर में भली-भांति डूब जाने की।।
बांहों में खोकर हसरतें भी मिटाने से नहीं।
अब तो सीधे मनोभावों में उतर जाने की।।
तुझे जी भर के देख लेने से भी नहीं।
दिल की लहरों में डूब जाने की।।
नजदीकियों या दूरियों का गम नहीं।
सांसों से तेरी रूह में उतर जाने की।।
तेरा अक्स देखने से चैन मिलता नहीं।
दिल के वादों को ताउम्र निभाने की।
अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।।
डॉ मीनाक्षी कुमारी
मधुबनी (बिहार)
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रचना नंबर - 26
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कलम बोलती है
साहित्य समूह
क्रमांक:------ 339
दिनाँक:--24.09.21
विषय-- अभिलाषा
मां भारती की सेवा करूँ सतत
हे शारदे ! हस्त उठा दे हमें वरद
रहूं शरण में अहर्निश समर्पित
कृपा करती रहे मां शारदेचतुर्दिश
कलम अभिलाषा सदा रचती रहे देशभक्तिकी कथा आख्यान
वीरों के त्याग बलिदान की
वीणापाणि मातृ दे वरदान
गीत गाऊं शौर्यकेअमर बलिदान
सांस अंतिम तक रहूं नत सदा
माटी वन्देमातरम की शान में
वीर भोग्या वसुंधरा है अमर
कलम लिखे पावन चरित भगवान के
अभिलाषा यही फूले फले
आशीष वरसे पूर्वजों के सम्मान के
स्वरचित
डॉ अर्चना नगाइच
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रचना नंबर - 27
********'******'**
#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय क्रमांक-339
#दिनांक-24/09/2021
#दिन- शुक्रवार
#विषय- अभिलाषा
मेरे द्वारा किसी का ना अनहित हो,
जीवन में औरों का हित साधक बनूँ
दीन दुखी पीड़ित जनों का उपकार हो,
किसी के मार्ग का ना बाधक बनूँ॥
मेरे लिए पथ में कोई कंटक बिछाये,
मैं उनके लिए नित फूल बिछाऊँ,
मेरे द्वारा किसी का ना उपहास हो,
निज जीवन में यही प्रयास हो॥
मेरे हृदय पटल पर ना अभिमान हो,
मेरे अंतस में सदा स्वाभिमान हो।
मन में ना अहं, ईर्ष्या, दंभ, द्वेष हो,
पर पीड़ा में निज ह्रदय में क्लेश हो॥
मेरे मन, वचन, कर्म से ना हिंसा हो,
मेरे हृदय में सत्य और अहिंसा हो।
मेरे द्वारा वंचितों का उपकार हो,
मेरे परमार्थ के सपने साकार हो॥
मै देश के लिए कुछ अच्छा करूँ,
मैं निज वतन सेवार्थ में मिट मरुँ।
मातृभूमि के लिए श्रम साधना करुँ,
माँ भारती की सदा आराधना करुँ॥
रचना
नितांत मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
मोबाइल नंबर-9399920459
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 28
****'**************
*डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली*
नमन मंच -
शुक्रवार - 24/09/2021
*अभिलाषा*
*कविता*
नहीं रखना कोई अभिलाषा
ये होती हैं अनन्त , रह जाती
हैं कुछ अधूरी अपूर्ण
होने नहीं देना बलवती
क्यूँ कि बलवती होने पर होती
इन्सान पर हावी
बनाती लेती हैं गुलाम हमेशा
के लिए और
हो जाता है मज़बूर इन्सान
पड़ जाता है कमजो़र
महसूस करता है थकान
मध्यम होने लगती हैं साँसे
क्षीण होता शरीर
फिर ऐसी अभिलाषा हमारे
किस काम की
हमें जितनी ज़रूरत हो
क्यूँ न हम उतनी ही अभिलाषा रखें
जिसकी हमें ज़रूरत हो।
क्षण भंगुर जीवन कलिका है
फिर इतनी हाय - हाय क्यूँ
इन नश्वर इच्छाओं के पीछे
भागने की बजाय
उन पर लगाम लगा कर लो
थोड़ा सत्कर्म
बाँटो औरों को खुशी
होगा तुम्हारा जीवन धन्य
हो जाएँगी पूरी तुम्हारी
सभी अभिलाषाएँ।
और हो जाओगे
सुख पूर्वक इस भवसागर से
हो जाओगे पार।
बड़ी अभिलाषाएँ फँसा कर
मकड़ जाल में उलझाती हैं।
बचाती नहीं ।
🌹🌹🌹🌹🌹
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 29
*****************
कलम बोलती है
विषय क्रमांक-339
जयजय श्रीरामरामजी
24/9/2021/शुक्रवार
*अभिलाषा/कामना/इच्छा/मनोरथ*
काव्य
कामना यही मां होंसला देना।
लड़ें करोना से होंसला देना।
अभिलाषा मात् पूरी करें आप,
हमें आपदा में होंसला देना।
होंसला तो सभी उड़ान भर सकें।
हम यहां मनोरथ पूर्ण कर सकें।
लालसा कात्यायनी मातु एक है,
करोना युद्ध में एकजुट रह सकें।
जीवन की बागडोर मां हाथ है।
करें इच्छा पूर्ति मां हाथ है।
साहस होंसला अब देना हमें,
विनती करें हम सभी मां साथ है।
होंसला रख करोना से लड़ेंगे।
शुभकामनाओं से सभी भिड़ेंगे।
मात वरदायिनी साहस दें हमें,
करोना मिटाने घर में रहेंगे।
स्वरचित,
शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*कामना,हसरत, अभिलाषा, लालसा, होंसला*
काव्य
24/9/2021/शुक्रवार
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 30
******************
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-24-09-2021
बिषय:- अभिलाषा
विधा:- कुंडलियाँ, दोहा
क्रमांक:- 339
अभिलाषा मन में लिए, जीता आज मनुष्य|
खोज रहा है राह वह, पहुँजे पास भविष्य||
पहुँचे पास भविष्य, बुन रहा ताना- बाना|
फिर भी लगता व्यक्ति, भाग्य से भी अनजाना|
कहें' मधुर' कविराय, समय की समझो भाषा|
नहीं तो जानो व्यर्थ, हो रही है अभिलाषा||
दोहा:-
अभिलाषा ही मनुज को, जीवित रखता नित्य|
यदि यह मन में शुद्ध है, तो भरती लालित्य||
स्वरचित/ मौलिक
ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश
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रचना नंबर - 31
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नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-24*09*21
विषय क्रमांक-339
विषय-अभिलाषा
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#अभिलाषा
रहे सदा अपनी मंजिल याद,
परिभाषा,अभिलाषा,संवाद।
अभिलाषा है जीवन में सबका साथ मिले,
एक दुसरे के भावों को हम समझ सके।
ज्यादा और कुछ न चाहूं,
आशीष मुझे बस इतना देना।
मेरे हृदय में बसकर प्रभु,
मानवता का रस भर देना।
चलती रहूँ सच्ची डगर पे,
बन सकूँ किसी का जीवन धार।
श्रमिक वंचित विकलांग बालकों और,
क्षुधित को भरपेट खिलाऊं।
यही मेरी #अभिलाषा है।
धर्म, जाति के भेद से ऊपर,
देश प्रेम तुम भर देना।
मुझमें हो सामर्थ्य इतना,
कर सकूँ किसी का उपकार।
काश!मिटा पाती मैं भ्रष्टाचार,
कर देती उसका तार तार।
कर सकूँ प्रसारित संदेश,
रहे हमारा मिलकर देश।
हमसबका रहे एक वेश,
भिन्नता रहे न शेष।।
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ममता झा
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 32
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नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
दिनांक-२४/९/२०२१
दिन-शुक्रवार
विषय-अभिलाषा
विधा-कविता
विषय प्रदाता एवं प्रवर्तन- आदरणीय राजेंद्र कुमार रत्नेश जी
मेरे मन की अभिलाषा,
पूर्ण हो सब के मन की इच्छा ।
कोई ना हो अनाथ,
सबको मिले अपनों का साथ ।
वृद्धाश्रम ना जाना पड़े माता-पिता को,
बुढ़ापे में आये नहीं अश्रू , चैन मिले नैन को ।
विश्वास कायम हो रिश्तों के बीच में,
झगड़े ना हो कभी आपस में ।
गौमाता को सुरक्षा,जीवनदान मिले,
मूक प्राणी यों पर दया की भावना बढ़े ।
चारों तरफ हो खुशहाली ही खुशहाली,
हर परिवार में बढ़े मान-सम्मान बड़े बुजुर्गो की ।
कोई बिमारी ना फैले फिर से विश्व में,
विश्व में शांति ही शांति छा जाये ।
कोई भूखा ना सोये ,
भरपेट सबको खाना मिले ।
सत्य युग का हो पुनः आगमन,
एक-दूसरे में प्यार का खिले चमन ।
यही मेरे मन की अभिलाषा,
पूर्ण हो जायें सब के मन की इच्छा ।।
स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित मेरी रचना ।
ज्योति विपुल जैन
वलसाड ( गुजरात)
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 33
*****************
सादर नमन मंच
कलम बोलती है
क्रमांक। 339
दिनांक। 24/09/2021
विषय। अभिलाषा
विधा। कविता
*************
जीवन पथ पर स्नेह के पुष्प खिलाती चलूं ।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।
प्रेम स्नेह की बौछारों से मनवा हर्षित होता है,
सहानुभूति के शब्दों से दर्द लुप्त त्वरित होता है।
स्वयं भी हंसू और दूसरों को भी हंसाती चलूं ।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।
संबंधों में स्नेह की मीठी मिश्री घोलूं,
शब्दों को मुख से तोल तोल कर बोलूं,
रिश्तों में प्रेम स्नेह की दरिया बहाती चलूं।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।
जग में खाली हाथ आए खाली हाथ जाएंगे,
दुआओं के अलावा सब यही धरे रह जाएंगे।
दया और प्रेम की दरिया सब पर लुटाती चलूं।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।
संगीता चौबे पंखुड़ी,
इंदौर मध्यप्रदेश
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 34
*******************
नमनमंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
दिनांक-24.09.2021
विषय-अभिलाषा
विधा-कविता
*************
मेरे मन की यह अभिलाषा
पूरी हो जन जन की आषा,
मिटे गरीबी और निराशा
संस्कार बन जाये परिभाषा।
सबको शिक्षा, इलाज मिले
अमीर गरीब का भाव हटे,
बेटा बेटी का अब भेद मिटे
मेरे मन की यह अभिलाषा।
गंदी राजनीति न हो
वादे सारे ही पूरे हो
जिम्मेदारी भी तय हो
अपनी भी जिम्मेदारी हो।
स्वच्छ रहें सब नदियां नाले
कहीं तनिक न प्रदूषण हो,
अतिक्रमण का नाम न हो
कानून व्यवस्था का राज हो।
त्वरित न्याय मिले सबको
मन में भेद तनिक न हो,
किसी बात का खौफ न हो
जग में खुशियाँ अपार हो।
मरने मारने का भाव न हो
सीमा पर भी न तनाव हो,
भाई चारा सारे संसार में हो
सबके मन में प्रेमभाव हो।
मँहगाई का वार न हो
प्रकृति मार कभी न हो,
चिंता की कोई बात न हो
मन मेंं कपट विचार न हो।
सामप्रदायिक दंगे न हों
जाति धर्म की बात न हो,
सब चाहें सबका हित हो
खुशियों का भंडार भरा हो।
सामाजिक कुरीति न हो
बहन बेटियों में न डर हो,
नशे का अब व्यापार न हो
मेरे मन की यह अभिलाषा।
✍ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
© मौलिक, स्वरचित
रचना नंबर - 35
**********'******'
कलम बोलती है साहित्य समूह,
🙏 जय मां शारदे,
दैनिक विषय क्रमांक 339
दिनांक 24 सितंबर 2021
विषय :- "अभिलाषा"
*****कविता*****
*******
*आरज़ू*
============
हवा के संग हौसलों के संग,
कब आसमान छू आऊँ मैं|
चिड़िया सी उड़कर दूर गगन,
कब क्षितिज पार हो आऊँ मैं |
मीठा झरना बहती नदी,
कब सुंदर गगरी बन जाऊँ मैं |
इस जगत की प्यास बुझाने को,
कब मीठी बूँद बन जाऊँ मैं |
नन्हें की आँख सपने देने,
कब मीठी लोरी बन जाऊँ मैं |
किसी हाथ की लाठी बनकर के,
कब सड़क पार ले जाऊँ मैं |
किसी भूखे को रोटी देकर,
कब सुख की सौगात दे आऊँ मैं|
एक आस भरे दीपक की
कब विश्वास की लौ बन जाऊँ मैं |
बस यही अभिलाषा है मेरी!
ये सब कुछ ही कर जाऊँ मैं,
ये साॅंस टूटने के पहले!
थोड़ा जी भर जी जाऊं मैं।
✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 36
*****************
#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह
#दो_ दिवसीय_ लेखन
#विषय_ क्रमांक : 339
#विषय : अभिलाषा
#विधा : कविता
#दिनांक : 24 सितंबर 2021 शुक्रवार
समीक्षा के लिए
_____________________________
छूलूँ नील गगन की ऊँचाई
पाऊँ मैं सागर सी गहराई
धरा सदृश हो सहनशीलता
त्याग, धैर्य और हो तरलाई।
निर्झर के जल सी निर्मलता
सरिता के जल सी चंचलता
मलय पवन सी कोमलता
चंदन सी सुगंधि ,शीतलता।
राग द्वेष ,भेदभाव मिटाकर
धरा को स्वर्ग समान बना दूँ
अभिलाषा है ये मेरे मन की
समता,मानवता जग भर दूँ।
पंख लगाकर मैंउड़ूँ गगन में
ध्रुव तारे सी अटल हो चमकूँ
रवि की किरणों से तेज चुरा
जग को मैं आभामय कर दूँ।
जीवन की उलझन सुलझाओ
उपवन को हरियाली से भर दो
मेरीअभिलाषा पूर्ण करो प्रभु
मेरे भारत को स्वर्ग बना दो।
स्वरचित मौलिक रचना
सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड
रचना नंबर - 37
*****************
पटल को नमन🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह
दैनिक विषय क्रमांक 339
विषय -अभिलाषा,कविता
स्वरचित,
🌹अभिलाषा 🌹
है अभिलाषा रहती,
ऊंची उड़ान भरलूं।
अपने मन की सारी,
इच्छा पूरी करनी है।
अभिलाषा अच्छी होती,
यदि हो नेक विचार।
महत्वाकांक्षा हो बड़ी,
बनना नहीं लाचार है।
उतना पैर पसारिये,
जितनी बड़ी है चादर।
फिर न पछताइये,
वर्ना होता अनादर है।
आशा पूरी होती नहीं,
यह तो तू सब जान,
होती अभिलाषा पूरी,
बढ़ जाता तेरा मान है।
🌹 सुनीता परसाई🌹
जबलपुर, मप्र
🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼
रचना नंबर - 38
******************
नमन मंच
दिनाँक-24-9-2021
विषय-अभिलाषा
विधा-मुक्तक
भली-बुरी अभिलाषाओं से भभरा हुआ है सबका जीवन।
कभी सुखों की स्वर्ण रश्मियाँ, कभी दुखों के भी काले धन।
सुख-दुख पाने पर जल्दी ही,जो भी बिचलित हो जाते हैं।
मान नहीं उनका रखता है,कभी। समय का भी कोई क्षण।।
2-
मन में सद अभिलाषा हो तो रिश्ते बहुत सहज हो जाते।
रखते जो दुर्भाव अगर तो,अपने भी दुश्मन हो जाते।।
निश्छलता से मन निर्मल हो,जहाँ प्रेम की गंगा बहती।
सहज प्रेम से हम जीवन में,सभी कलुषता को धो जाते।।
रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 39
*********'*******
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक 24/09/2021
विषय अभिलाषा
विधा कविता
आखिर मै क्या बनूँ?
माँ की मर्जी बनूँ मैं डाक्टर
करूँ दुखियों की सेवा ।
पापा कहे करो खूब मेहनत
पाओ प्रशासनिक सेवा॥
दादाजी, की इच्छा सुनकर
मैं भौचका रह जाऊँ।
झूठे तर्क-वितर्क करूँ
और एडवोकेट बन जाऊँ॥
दादीजी की है यह इच्छा
बने इंजीनीयर पोता।
सोच सोच परेशान रहूँ
कई रातों को नही सोता॥
दोस्त कहे मेरे मानो तो
तुम नेता बन जाओ।
संसद मे हुडदंग करो
परदेश मे मौज मनाओ॥
कोई नही कहता वैज्ञानिक
या जवान बन जाओ।
करो निज मिट्टी की सेवा
तुम किसान बन जाओ॥
बिजय बहादुर तिवारी
सर्वाधिकार सुरक्षित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 40
****************
नमनमंच
कलम बोलती है साहित्य समूह । दिनांक -24/09/2021
विषय -अभिलाषा ( बेटी की )
विधा- कविता
न सोने में सजाकर के,
पिता मुझ को विदा कीजे।
न धन दौलत न आभूषण,
पिता मुझको भी ना दीजे।।
ना परिधान मंहगे हों,
न ऐसा मन में लालच है।
मिटे बस भेद बेटी का,
जरा सी ये इबादत है ।।
जमाने भर की बंदिशें ,
निगाहें मुझ पे रहती हैं ,
हजारों #वेदना हर रोज,
मेरे हृदय में रहती हैं।।
मिले मुझको नहीं मौके,
बेटों को ही ज्यादा हैं।
अगर दे दो मुझे अफसर,
नभ छूं लूं ये वादा है।।
स्वरचित-
बेलीराम कनस्वाल
घनसाली,टिहरी गढ़वाल,उतराखण्ड।
रचना नम्बर - 41
*****************
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्यिक समूह
विषय अभिलाषा
विधा ग़ज़ल
गज़ल 2222 2222
प्यास भरी इक आशा हूँ मैं
लोग कहे अभिलाषा हूँ मैं
जो मुझसे ताल्लुक रखता है
उस दिल की परिभाषा हूँ मैं
हैं तेरी ख़्वाहिश गुलिस्तां की
कुसमित सुरभि सुवासा हूँ मैं
अब ना खत्म हो राहे जिंदगी
सूरज किरण रक्कासा हूँ मैं
जो रच देता इतिहासो मे
हर्फ़ की स्वर्ण पीपासा हूँ मैं
स्वरचित संगीता सिंघलविभु
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 42
**************
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय- अभिलाषा
विधा-कविता
दिनांक-24/09/21
" अभिलाषा"
अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।
बरसों पुरानी अनुभूतियों में ढल जाने की।।
लफ्जों में भी कुछ कह जाने की नहीं।
धीरे-धीरे दिल में तरसीब हो जाने की।।
हल्की-हल्की बूंदों के पड़ने से भी नहीं।
प्रीत के समंदर में भली-भांति डूब जाने की।।
बांहों में खोकर हसरतें भी मिटाने से नहीं।
अब तो सीधे मनोभावों में उतर जाने की।।
तुझे जी भर के देख लेने से भी नहीं।
दिल की लहरों में डूब जाने की।।
नजदीकियों या दूरियों का गम नहीं।
सांसों से तेरी रूह में उतर जाने की।।
तेरा अक्स देखने से चैन मिलता नहीं।
दिल के वादों को ताउम्र निभाने की।
अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।।
डॉ मीनाक्षी कुमारी
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 43
**************
नमन मंच-कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-339
विषय-अभिलाषा
विधा-कविता
दिनांक- 24-09-21
""""""""""""अभिलाषा""""""""""""
***"""""""""***
मेरी उर- आंगन अभिलाष यही,
सब,वतन-धरा पर अर्पण कर दूं।
नित स्वेंद-श्रम से दीप जला कर,
सबके दामन में खुशियां भर दूं।
ले रश्मि पुरुषार्थ के दिनकर से,
सब गहन अंधेरे रोशन कर दूं।
कौमुदी शीत -पुंज ले चंद्रमा से,
हृदय गागर में शीतलता भर दूं।
मैं निरक्षरता का दुर्ग तोड़कर,
शिक्षा की लौ घर- घर भर दूं।
एकलव्य सा अभ्यास रचाकर,
लक्ष्य पथ में कुशलता भर दूं।
सब भेदभाव उत्कोच मिटाकर,
घट सत्यनिष्ठा का अमृत भर दूं।
समता का अधिकार दिला कर,
सबको प्रगति -पथ प्रवृत कर दूं।
अबलाओं में विश्वास जगा कर,
सम्यक-न्याय का संबल भर दूं।
गरीबों को अधिकार दिला कर,
सबके घट खुशियों से भर दूं।
सतीश कुमार नारनौंद
जिला हिसार हरियाणा
स्वरचित और मौलिक
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌼
रचना नंबर - 44
**************
जय शारदे माँ 🙏🙏
नमन मंच-- कलम बोलती है तिथि-- 24/09/2021
विषय - अभिलाषा।
अभिलाषा
*********
भगवान ने देकर अभिलाषा क्या खेल रचाया
आशा निराशा के झूले में हम सब को झूलाया.
अभिलाषा तो है उड़ू उन्मुक्त गगन में बनकर पंछी
जकड़ी न जाऊँ बेड़ियों में रहूं न बनकर मैं बंदी.
काश होते मेरे भी पंख तो उड़ती विस्तृत गगन में
मैं भी स्वच्छंद विचरण करती रहती मन मगन में.
बनकर रंग बिरंगी तितली फूल फूल पर बैठती
बन कोयल मतवाली वन में कुहू कुहू का राग सुनाती.
अभिलाषा तो है मेरी बहुत चांद सितारों को छू लूं
इन चमकीले सितारों को अपने अलकों में भर लूं.
मेरे मन की अभिलाषा है क्षितिज के पार हो आशियां अपना
जहां ना हो नफरत की दीवारें पूरे हो अपना सपना.
मेरी अभिलाषा की कोई थाह नहीं है ना है कोई और छोड़ मन तो सदा यही कहता रहता कि मिले मुझे मोर मोर्
स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर, झारखंड
रचना नंबर - 45
**************
नमन मंच- कलम बोलती है
विषय क्रमांक- 339
दिनांक-25/09/21
दिवस- शनिवार
विषय- अभिलाषा
विधा-स्वैच्छिक (गीत)
~~~~~~~~~~~~~~~
■■अभिलाषा■■
अब न हो सीता की अपहरण द्रोपदी का न हो अब चीर-हरण
शकुनि चले न अनीति का पाशा
यही हमारी मन की अभिलाषा
न हो अपहरण हत्या बलात्कार
सब धारण करे स्वदेशी संस्कार जाने धर्म संस्कृति की परिभाषा यही हमारी मन की अभिलाषा
नकल करे क्यों पश्चिमी सभ्यता
देखो अपनी संस्कार की भव्यता
अपनी मिट्टी पानी हो निज भाषा
यही हमारी मन की अभिलाषा
फिर से बनें हमारा राष्ट्र विश्व गूरु
घर -घर बजे घंटी शंख डमरू
हर बार जनम यहीं हो जिज्ञासा
यही हमारी मन की अभिलाषा
घूरण राय "गौतम"
मधुबनी बिहार
*उपरोक्त रचना स्वरचित
मौलिक और स्वरचित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 46
**************
. 25 सितंबर , शनिवार
शब्द : #आकांक्षा
शब्द प्रदाता : आदरणीय सुश्री उमा वैष्णवी जी
🏵🌹#कुंडलिनी🌹🏵
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🏵#रचना नंबर- 1
@@@@@@@@🌹@@@@@@@@
पूरी #आकांक्षा हुई , किए बहुत व्रत , कर्म.
किंतु तृप्ति अब तक नहीं ,सदा निभाया धर्म.
सदा निभाया धर्म , बढ़ी रिश्तों की दूरी.
तार - तार हो गए , हो गई हमसे दूरी.
🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏵🙏🌹🌹🌹🌹🌹
. 🌹🙏#मुक्तक🌹🙏
==== शब्द : #आकांक्षा====
🏵#रचना नंबर- 2
@@@@@@@@🌹@@@@@@@@
देवसरित - सी #अभिलाषा हो पावन जिसकी.
सर्व हिताय भावना रहती निर्मल उसकी.
दुर्लभ क्या है उसे जगत में सोचो तुम ही?
होती है अनुभूति उसे हर पल षट रस की.
🌹🏵🙏
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 47
**************
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 339
दिनांक - 24/09/2021
#दिन : शुक्रवार
#विषय – अभिलाषा
#विधा - कविता
तू आन बान शान है, मेरी जीवन की पहचान है।
मेरे मन की तू आशा है, मेरे जीवन की अभिलाषा है।
तुझको बोलूं तुझको पढूं, तुझे ही गाने की इच्छा है।
तेरे होने से सब दुनिया है नहीं तो ना जीने की इच्छा है।
प्यार है तकरार है मेरे जीवन का आधार है।
रूठना मनाना मन्ना और माने जाना यही हम सबका प्यार है।
तेरे सुख में मैं सुख मानू, तेरा दुख मुझे रुलाता है।
तुझे क्या कहूं तेरा दूर रहना मुझे कितना सताता है।
तू आस है उम्मीद है मेरे जीवन की उजली किरण है ।
तेरे बिन मैं कुछ भी नहीं, तू ही मेरा जीवन है।
आशा की अभिलाषा की नदी में बहते जाना है।
सुख-दुख के सागर में बैठकर गीत प्यार के गाना है।
तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना बहार है।
तू ही सूरज की पहली किरण बारिश की पहली फुहार है।
तेरे आने से मेरी दुनिया रोशन है।
तेरा स्पर्श पाकर खिल उठता मेरा मन है।
तू ही मेरे जीवन की आस मेरी अभिलाषा है।
तू है तो यह जीवन है तू ही मेरी अंतिम आशा है।
तुझसे प्यार है तकरार है तू कहानी की बहार है।
तुझसे रोशन मेरी दुनिया तो जिसे मेरा करार है। Suneeta Choudhry ✍️
स्वरचित व मौलिक रचना
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 48
**************
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 339
दिनांक - 24/09/2021
#दिन : शुक्रवार
#विषय – अभिलाषा
#विधा - कविता
चाहा मैंने छू लूँ नील गगन को
बनके पंछी पार करूँ अंबर को,
इंद्रधनुषी इस दुनिया से लेकर
जीवन में भर लूँ प्यार के रंग को|
पंछी बन जाने की अभिलाषा है
विचरण करूँ स्वच्छंद गगन में,
न कोई डर फिर न कोई इच्छा
उड़ जाऊँ दूर नील गगन में|
मन चाहता है मैं बादल बनके
प्रेम सुधा बरसा दूँ धरा पे,
कोई न फिर कभी प्यासा हो
न कोई किसी के प्यार को तरसे|
बन जाऊँ चाँद है यह अभिलाषा
सबको राहत, हो चाँदनी की भाषा,
सुखी जीवन हो शीतल चाँदनी में
जग कल्याण की बनूँ परिभाषा|
डरता हूँ कहीं मैं खो न जाऊँ
इस चाहत को लिए सो न जाऊँ,
आशा निराशा के बीच भटकते
अपनी अभिलाषा को भूल न जाऊँ|
#घोषणा : - मैं, संजीव कुमार भटनागर घोषणा करता हूँ कि यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है। ब्लॉग पर प्रकाशन कि अनुमति है|
रचना नंबर - 49
************'
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय - अभिलाषा
एक बार तुम मेरे सिर पर हाथ रख दो माँ
रोज तुम्हारे दर पर मैं दौड़ी चली आऊँगी।
ध्वजा,नारियल,फूल, माँ तुमको अर्पित करूँ
हलुआ, चने का भोग, रूपया भेट चढ़ाऊँगी।
धन-सम्पत्ति ना चाहूँ, न महलों की बात करूँ
आशीर्वाद मिले हमें चरणों में शीश नवाऊँगी।
निराशा का भाव न हो कभी, माँ तेरे दरबार में
मंदिर में शीश नवाऊँ परिक्रमा रोज लगाऊँगी।
ह्रदय में रहे उजियाला तम का कभी न वास हो
मनोकामना पूरी हो माँ, तेरी शरण में आऊँगी।
मन्नत मेरी पूरी करदे माँ ये मेरी अभिलाषा है
आशा-भाव लिए दर से झोली भर के जाऊँगी।
आये तेरे शरण हम घर खुशियों से भर दो माँ
नवरात्रि में मैया देवी जागरण भी करवाऊँगी।
सुमन अग्रवाल “सागरिका”
आगरा
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 50
*************''
नमन मंच, विषय-अभिलाषा "अभिलाषा"
बीसवी और इक्कीसवीं सदी में,
सम्मानित सामंजस्य करूं,
भारतीय संस्कृति जीवन शैली हो,
पर दुनिया के साथ मिला कर कदम चलूं,
थक कर जब घर अपने आऊं,
पति के साथ गरम चाय का प्याला पाऊं,
जीवन के दायित्व कर्म से
कभी नहीं मै जी चुराऊं,
बेटी-पत्नी और मां-बहना का
भलीभांति कर्तव्य निभाऊं।
निज आजादी के साथ-साथ
रिश्ते-नातों का फर्ज निभाऊं,
पर जीवन का सम्मन रहे,
अपने ढंग से खुद जीऊं,
आज तलक इतिहास लिखा गया
पर अब खुद मैं इतिहास बनूं.
पशुवत जीवन से घृणा रही हैं,
चाह यही इंसान रहूं,
मानवता का मार्ग पकड़ कर,
नई सदी में कदम धरूं।
कली फूल सा सुरभित जीवन,
सुगंध जहां में बिखराऊं
प्रकृति सुंदरी की गोदी में
सम्मानित होकर सो जाऊं। मंजू लोढ़ा, स्वरचित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 51
***********'**
नमन
कलम बोलती है
विषय ....अभिलाषा
विधा .......कविता
24-09-21 शुक्रवार
सब संसार में प्रेम हो सिंचिंत,
रिश्तों का मूल्यांकन हो विदित ।
वाद-- विवाद के बांध हों बंधित,
मेरे मन की ये अभिलाषा ।
बेटी की इज्जत मान हो रक्षित ,
सर्वाधिकार हों भाँति सुरक्षित ।
नारी का कोई ना हो भक्षित ,
मेरे मन की ये अभिलाषा ।
भ्रष्टाचार से लिप्त ना कोई,
नियम कानून में सुप्त ना कोई ।
प्रेम - प्रीत से अतृप्त ना कोई ,
मेरे मन की है अभिलाषा ।
सब जग अविरल प्रेम है बरसे,
मेल मिलाप को मानस तरसे ।
दुःख पीड़ा मिटे सभी के मन से,
मेरे मन की है अभिलाषा ।
स्वरचित।सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 52
**'************
नमन माँ शारदे
#नमन मंच
#कलम बोलती साहित्य समूह
विषय- -अभिलाषा
विधा - गीतिका
विधान - चौपाई छंद
बहर---- 2222--2222
दिनांक--------- 25 :: 09 :: 2021
समीक्षार्थ----
[[[ ग़ज़ल ]]]
शब्दों की परिभाषा हूँ मैं ।
फूलों की अभिलाषा हूँ मैं ।।१
गीत ग़जल का इक इक अक्षर,
परखा और तराशा हूँ मैं।।२
मंदिर - मंदिर मस्जिद - मस्जिद ,
तुमको बहुत तलाशा हूँ मैं।।३
मेरी प्यास बुझाओ आकर ,
इक मुद्दत से प्यासा हूँ मैं ।।४
अक्सर पूछा करते हैं इन
बच्चों की जिज्ञासा हूँ मैं।।५
दुनिया मुझको समझ न पायी ,
ऐसा खेल तमाशा हूँ मैं ।।६
काम नही मैं जिसके आया ,
उसकी घोर निराशा हूँ मैं ।।७
स्वरचित/ मौलिक
जगत भूषण राज
बिहार
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 53
**************
#कलम बोलती है साहित्य समूह
🙏जय माँ शारदे🙏
दो दिवसीय लेखन, विषय- क्रमांक 339
विषय- अभिलाषा
विधा- स्वैच्छिक/कविता
दिनांक - 24/09/2021से 25/09/2021
संचालक- आप और हम
रचना - कविता - स्वरचित/मौलिक
अभिलाषा
मन एक चंचल पंछी हर मन की अलग भाषा
जीवन चक्र में लाते रहता नई-नई अभिलाषा।
नहीं हो पाता एक पूरा, दूसरे में ध्यान लगाता
आकांक्षाओं के सड़क में, नये मोड़ ले आता
जग को देख जग जाते, मन में अनेक प्रत्याशा
पूरा करने में लग जाते, रखते जीवन से आशा
मन एक ....................नई-नई अभिलाषा।
हसरतों का ज़िन्दगी में दिखता बड़ा असर
मन भी मदद करता, दिला देता सुअवसर
अच्छे विचार संगति से, मन जाता है तराशा
अच्छे कर्मों से बदले, जीवन की परिभाषा
मन एक ..................नई-नई अभिलाषा
--------
रचनाकार
शिव शंकर पटेल
कोलकाता
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 54
**************'
नमन मंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
विषय_अभिलाषा
विधा_ काव्य
अभिलाषा
ना चाहती हूँ ,बनना हिंदू ,
ना बनना, मुसलमान.
ना बनना, सिक्ख ही,
ना बनना, क्रिस्तान.
मेरी अभिलाषा है मैं बनूँ,
बस ऐसा एक इंसान.
दिल में धड़कता हो जिसके,
बस हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान.
दिल में हो मेरे हरदम,
तिरंगे का बस मान.
वन्दे मातरम् होंठों पर,
रहता हो हरदम गान.
आँखों में मेरे अब,
बस यही है अरमान.
जान भी हो मेरी,
देश के लिए कुर्बांन
कफन हो देश की मिट्टी का,
देश का ऊपर हो आसमान.
लिखा हो जिसपर नाम,
सिर्फ हिंदुस्तान, हिंदुस्तान.
ये रचना स्वरचित है।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 55
**********'****'
नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय - अभिलाषा
विषय क्रमांक - 339
दिनाँक-25/09/2021
***********************
अभिलाषा
अभिलाषा ही अभिलाषा है प्रकृति के अंतर्मन में ।
इक चाहत कुछ पा लेने की,कुछ कर जाने की जीवन मे ।।
अभिलाषा ही अभिलाषा है ......
इक राग बिखेर देने की मधुवन में,संगीत सुनाने सरिता तट में,
नव पल्लव फिर खिल जाते हैं, पाने धूप सुनहरी तरुवर में।।
अभिलाषा ही अभिलाषा है ..........
दूर कहीं मंजिल है फिर भी राही को पा लेने का संबल है ।
दूर कहीं साहिल में कस्ती पार लगाने की दमख़म है।।
अभिलाषा ही अभिलाषा है......
भवरें की चाहत है नव पुष्प पराग कण को पा लेना ।
पुष्प की अभिलाषा है शहीदों की अर्थी में मिट जाने में।।
अभिलाषा ही अभिलाषा है .........
कुरुक्षेत्र का रण दृष्टान्त , धर्म-अधर्म का खेला था ,पर
अभिलाषा के मोह परख लगी दांव में नारी राजमहल के आँगन में
अभिलाषा ही अभिलाषा है प्रकृति के ....
स्वरचित व मौलिक रचना
सुरेखा बर्मन
जिला डिंडौरी मध्यप्रदेश
रचना नंबर - 56
*****'****'*****
सादर नमन
कलम बोलती है मंच
25.09.2021,शनिवार
विषय क्र.339
विषय--#अभिलाषा
विधा--कविता
अभिलाषा है उडू गगन में,
और धरा पर मैं छा जाऊँ।
चाह यही है शून्य क्षितिज,
के छोर सभी मैं छू जाऊँ।
बहुत सबेरे जागूँ में नित,
करूँ दिवाकर का स्वागत,
अभिलाषा है यह मैं अपने,
उन्मुक्त परों को अजमाऊँ।
चाहों का अंबार लगा है मेरे,
इस व्याकुल छोटे से मन में,
पूरे कैसे होंगे अरमां सारे,
सोच सोच कर मैं घबराऊँ।
जीवन का अबलंब छिना है,
अभिलाषा की बेदी पर है,
अकथ कहानी घायल मन की,
आज किसे में क्या बतलाऊँ।
दफन सभी हैं जो मेरी यादें
आज दर्द के मरघट पर हैं,
बाहों का अबलंब कहाँ पर,
मैं अपने किससे कैसे पाऊँ।
विनोद शर्मा
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 57
***'*******'****
नमन मंच
कलम बोलती है सहित्य समूह
विषय - अभिलाषा
दिनांक -25/9/2021
नही है किसी से उम्मीद, नही है किसी से कोई आशा।
जन्म लिया था जब धरती पर, तभी बदल गई थी जीवन की परिभाषा।।
इस देह में छिपी लड़की को तब यह अहसास भी न था।
नारी से नारी तक के सफर में, कहां बचती है कोई अभिलाषा।।
माँ ने सिखाया लड़की हो, लड़की जैसे रहना सीखो।
आये जो दर्द कभी , उसे अमृत समझ पीना सीखो।।
पिता ने तय किये दायरे, इस चौखट से उस चौखट तक के।
बंधी सात फेरों में जब तब जाना, नही होते है घर परियों के।।
मौलिक एवं स्वरचित
पायल राधा जैन
इटावा उत्तर प्रदेश
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 58
*********'****'
जय मां शारदा
कलम बोलती है साहित्य समूह मंच को नमन
दिनांक 25 सितंबर 2021
विषय क्रमांक 339
विषय अभिलाषा
विधा सायली
अभिलाषा
नैसर्गिक प्रवृत्ति
सदा शाश्वत है
जीवन पथ
में
यह
मेरी अभिलाषा
सरहद पर जाऊं
झंडा फहराऊ
वहां।
कामना
वासना त्यागो
अभिलाषा अध्ययन की
वांछित है
सर्वदा
आगे
बढ़ने की
जीवन में अभिलाषा
सदा अपेक्षित
है ।
जीवन
की एक
प्रवृत्ति अभिलाषा है
अच्छी भावनाएं
अपनाओ
मंजु माथुर अजमेर राजस्थान
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 59
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#अभिलाषा
जीवन की सारी अभिलाषा
आज मुखर हुई है,आज जब शब्द मिलें है
जीने की अभिलाषा भी बसंत हुई है!
सोचती हूँ एक बार फिर लौट जाऊं
बचपन की ओर,
अलमस्त फिरूँ
घर की मुंडेर पर,
तितली बन फिरती रहूँ
बागों और बगीचें में!
सच आज मुखर हुईं है
प्यार की अभिलाषा भी
कोई मुझे चाहे मैं किसी की पसंद बनूँ
इतनी की ख़ास हो जाऊं!
आज एक अभिलाषा
इस नारी मन ने भी की है
मेरे होने न होने का फर्क तुम जान जाओ
और मैं बन जाऊं
तुम्हारी अभिलाषा
जिसे पाने की जुस्तजू तुम्हारी हो!
राधा शैलेन्द्र
भागलपुर
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 60
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#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय:-#अभिलाषा
#विधा:-#हाइकु
दिनांक २५/०९/२०२१
*************************
मेरी अभिलाषा
सब स्वस्थ रहे।
खुश संसार।
भेद मिटे
अमीर गरीब का
सब समान।
बेटे बेटी
फर्क नहीं करना
दोनों आधार।
अड़ोसी पड़ोसी
सब सुखी हो
एक परिवार।
अपना देश
विश्व में चमके
खुशियां हजार।
***********************
स्व रचित-छगनलाल मुथा-सान्डेराव (ओस्ट्रेलिया)
रचना नंबर - 61
**************
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय क्रमांक _339
#विषय_अभिलाषा
#दिनाॕक_25_9_21
#विधा_स्वैच्छिक (दोहा)
अभिलाषा मन की यही,सबकी हो पहचान |
चंचल गति सी जिंदगी ,मिटता कभी न मान |_1
थाम लें नन्हें हाथ को,बैरी जग संसार |
कोमल कलियाॕ बचपना,जीने का अधिकार |_2
सच्चे बोलों से सजता,सुखी रहे परिवार |
मानवता के पाठ से,बढ़ना बारंबार |_3
मन के सच को जानिये,रूके न कोई काम |
सोच समझ के बोलिये,वाणी शुभकर धाम |_4
सबको अपना मानकर,करें नेक व्यवहार |
दया धर्म की नीति पर,खुशियाँ मिले अपार |_5
अभिलाषा की चमक से,सजता मन का द्वार |
सत्य धर्म यही मानिये,बैन कटीली धार |_6
स्वरचित एवं मौलिक रचना
स्मृति ठाकुर मंडला मध्य प्रदेश
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 62
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#नमनमंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#बिषय_अभिलाषा
#दिनाँक_25_09_21
न दौलत की न शौहरत की सितारों की न चाहत है,
मिले जीवन में तुम मुझको खुदा की मुझ पे रहमत है,
तुम्हारे दिल के कोने में मिले थोड़ी जगह मुझको ,
यही अभिलाषा है मेरी यही रब से इबादत है।
जुड़े तुमसे जो रिश्ते है संजोया प्यार से मैंने,
हूँ अर्धांगिनी तुम्हारी मैं निभाया फ़र्ज हर मैंने,
दिया है छोड़ अपनों को तुम्हारे घर में आई हूँ,
तुम्हारी इक़ मुस्कराहट पे तजा हर ख्वाब है मैंने।
समर्पित कर दिया जीवन तुम्हे ईस्वर सा पूजा है,
दीवानी हूँ मैं मीरा सी तेरे बिन और न दूजा है,
मेरा विश्वास न टूटे जिसे मुहब्बत में पिरोया है,
यही अभिलाषा है मेरी न तुमसे कुछ और मांगा है।
शीला द्विवेदी "अक्षरा"
उत्तर प्रदेश "उरई"
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 63
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जय मां शारदे
नमन मंच
विषय अभिलाषा
विद्या स्वैच्छिक
दिनांक-25-09-21
मेरे जीवन की यह अभिलाषा
करूं पूरी सबकी आशा
दुख में डूबे लोगों को
दे जाऊं मैं कुछ दिलासा
करूं समाज से दूर बुराई
करूं सारे काम भलाई
दूर करू अज्ञान तिमिर को
लाकर ज्ञान का सवेरा
न हो कोई ऊंच-नीच
न हो कोई अमीर गरीब
मिल कर रहे सभी
वसुधैव कुटुंबकम् की हो भावना
प्रियदर्शिनी आचार्य
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रचना नंबर - 64
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नमन मंच : कलम बोलती है साहित्य समूह
विधा : स्वेछिक
दिनांक :25/09/2021
विषय :अभिलाषा
मेरी अभिलाषा है की मेरा देश विश्व में अग्रणी हो
मेरी अभिलाषा है की की मेरा देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाये
मेरी अभिलाषा है की की मेरा देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाये
मेरी अभिलाषा है की की हर देशवासी के मन में तिरंगा लहराए
मेरी अभिलाषा है की मेरे देश की राजनीती से दलदल साफ़ हो जाये
मेरी अभिलाषा है की मेरे देश की राजनीती में चुनाव लड़ने हेतु न्यूनतम शिक्षा का मापदंड निर्धारित हो जाये
मेरी अभिलाषा है की हर राजनीतिज्ञ कम से कम अपने एक बच्चे को सरकारी विद्यालय में पढाये
मेरी अभिलाषा है की सरकारी डॉक्टरों पर निजी चिकित्सा को लेकर पाबंदी लगाई जाये
मेरी अभिलाषा है की ये मेरा अंतिम जन्म हो
मेरी अभिलाषा है की मैं इस जन्म में आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाऊँ
मेरी अभिलाषा है की मैं अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी कुछ करके जाऊँ
मेरी अभिलाषा है की मैं अपने पंच विकारों से मुक्ति पाऊँ
स्वरचित एवं स्वमौलिक
"🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱
जयपुर-राजस्थान
रचना नंबर - 65
*******'*******
नमन मंच
क्रमांक 339
दिनांक 25/9/2021
विषय अभिलाषा
अभिलाषा का दीप जलाकर
रखा हे निज द्वार ।
सबका मार्ग प्रशस्त हो ,
प्रभु करना उपकार ।
जितने खाली हाथ हैं
हो उनको रोजगार ।
भूखे पेट न कोई सोये
सबको मिले आहार ।
सीमा पर जो डटे हैं उनका
कभी न टूटे साहस ।
खेतों में हलधर किसान को
पहुँचे सम्भव राहत ।
देश विकास की गति पकड़े
हर घर में हो उल्लास ।
घट घट बसने वाले प्रभु
हो पूर्ण मेरी अभिलाष ।।
योगेन्द्र अग्निहोत्री
( मौलिक व स्वरचित)
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रचना नंबर - 66
***********'***
नमन मंच कलम बोलती हैं
क्रमाक_३३९/
दिनांक_२५/९/२०२१
विषय_अभिलाषा
मै बेटी हूँ ,आधार सृष्टी सृजन की।
बिन नारी सृष्टी कैसी ,शक्ति हूँ मै ।
मेरी एक मात्र अभिलाषा हे यही ।
न करो कैद उडने दो खुले आकाश में
मैने वेद की ऋचाऐ रची,हूँ ज्ञानी नही अज्ञानी ।
पूज्या थी सदैव कुछ अपवादो छोड ।
इस कलिकाल मे विदेशियो की नजरोबचने को किया स्वंय को कैद ।
अब हूँ स्वतन्त्र मै मुझे लोहा लेने दो
दुश्मनो के छक्के को नष्ट कर ने दो।
कमजोर नही मै महाकाली बनने दो ।
अभिलाषा बस यही देशको छल कपट,रिश्वत खोरी भ्रष्टाचार से बचाऊ।
परिवार समाज देश मे बिगुल बजाऊ ।
हो देवभूमि पावन ,राम राज्य जैसा
अभिलाषा यही दुश्मनों को करू मजबूर ऐसा।
शीश स्वतः झुके नारीके समक्ष ।
घर घर हो पावन मंदिर पूज्य हो बुजुर्ग ।
दमयंती मिश्रा
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रचना नंबर - 67
*******'******'
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
क्रमांक -339
विषय -अभिलाषा
दिन -शनिवार
दिनांक -25/9 /2021
मेरी छोटी सी अभिलाषा
ईश्वर उसे पूर्ण कर देना
मेरे ह्रदय में प्रभु रहे बस
मानवता का बल भर देना
देना सद्बुद्धि कुछ ऐसी
सही राह पर सदा चलू मै
निर्मलऔर दीन दुखियों के
चेहरे की मुस्कान बनू मै
देना शक्ति मुझको इतनी
हर निर्धन का बनू सहारा
कर्म करु जग में कुछ ऐसे
रहे चमकती जीवन धारा
मरनें पर कुछ ऐसा हो जाए
काम किसी के मैं आ जाऊं
कोई देखे आंख से मेरी
हाथ किसी के काम आ जाए
मेरे तन का एक एक हिस्सा
किसीअसहाय के काम आ जाए
रक्त की एक-एक बूंद से
किसी का जीवन बचा सकूं मै
यूं तो नहीं हूं किसी भी लायक
किसी के तो लाइक बन जाऊं
बस इतनी सी अभिलाषा
मेरे ईश्वर पूरी कर देना।।
स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा
कालापीपल मध्यप्रदेश
ब्लॉग हेतु
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रचना नंबर - 68
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नमन मंच कलम बोलती है 🙏🏻
विषय-अभिलाषा
विधा-स्वैच्छिक
दिनांक-25/09/21
दिवस-शनिवार
सादर अभिवादन 🙏🏻
अब ना ही कोई चाह है
और ना किसी से कोई आशा,
मिले कोई जो समझे खामोशी मेरी
बस इतनी सी है अभिलाषा।
जब तब बनता रहा
सच्ची भावनाओं का तमाशा,
कोहीनूर ही बन गए होते अब तक
जो कभी होता खुद को इतना तराशा।
नहीं चाहिए सैकड़ों की भीड़
जिसमें गुम हो जाए वजूद ही मेरा,
चाहिए बस कोई ऐसा
बिन बोले... बिन सुने
समझे जो नैनों की भाषा।
भोले से दिल की बस इतनी सी अभिलाषा...
जब रुखसत हों इस जहां से
पीछे छोड़ जाएं कुछ ऐसे निशां,
कि जाने के बाद भी
ज़माना करे याद और कहे...
क्या कमाल का था इंसां।
अल्का मीणा
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक रचना
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रचना नंबर - 69
***********'****
#नमन मंच कलम बोलती है साहित्य परिवार
विषय#अभिलाषा
विधा#कविता
दि.25/9/21
क्रमांक#339
अनमना सा सुमन इक डाल पे मुरझा गया।
अन्कही मन टीस को बन बेजुबाँ सुना गया।
सूलों मे घिर कर सदा रंग महक बिखेरता।
पँखुडी का दर्द रंज सब जिगर मे समेटता।
हौले से मुस्का रहा वो अपनी ही तकदीर पर,
जख्मों से बिधँता रहे ज्यूँ पलता पैने तीर पर।
कभी सुरों के कदमों में या जनाजों पे चढता,
कभी पिरो कर हार मे वर वधु मिलन करता।
कभी गूँथ के गजरों मे बालों का सिगांर बने,
सजे कभी गुलदान मे प्यार का उपहार बने।
सुमन की ख्वाहिश से यूँ सरोकार नही कोई,
पूछे रजा न उसकी है दिल में अरमान कोई।
उसकी ये अभिलाषा वीरों का हार बनूँ कभी।
रणभूमि में ढोल बजे सीमा पे मर मिटूँ कभी।
स्वरचित
🌹सुशील शर्मा🌹
रचना नंबर - 70
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नमन मंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
विषय क्रमांकः339
विषयः अभिलाषा
विधाः पद्म(छंदमुक्त)
दि-25/09/2021
***************
अभिलाषाओं की अतृप्ति,
अस्त -व्यस्त जीवनक्रम
सुख चैन स्वप्न हो जाना
मानसपट चिन्तित रहना।
जीवन के कुटिल मोड़ पर,
अभिलाषा की अभिवृद्धि,
जर्जर तन का हो जाना,
मन में दुख पलते रहना।
जन्म पलों से मानव की,
आवश्यकताऐं मृत्यु -पर्यन्त,
माँग पूर्ति का कुटिल चक्र,
आजीवन चलता सतत नित्य।
पलभर में होता मन अधीर
अपरिहार्य मन का निग्रह अति,
क्षोभयुक्त उन्माद मनस का,
कारक निश्चित अतृप्ति का।
--मौलिक एवं स्वरचित--
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ(उ.प्र.)
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 71
************
🙏नमन मंच🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय--अभिलाषा
#विषयक्रमांक 339
#विधा स्वैच्छिक
नहीं है अभिलाषा गगन मे उड़ू मैं
नहीं कभी अभिलाषा बातें करूँ सितारों से
बस इंसानियत जिंदा रहे जीवन में
प्यार करूँ अपने किरदारों से।।
ना दुख पहुँचाऊँ अपनी बातों से किसी को
ना चोट लगे किसी को मेरे धर्म से
बस इतनी कृपा करना मेरे कान्हा।
इंसान हूँ ,इंसान बनी रहूँ मन,वचन,कर्म से।।
स्वरचित मौलिक
✍सीमा आचार्य
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 72
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नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-339
विषय- अभिलाषा
25/09/21
शनिवार
कविता
जीवन की अभिलाषा लेकर प्रतिपल पुलकित रहती हूँ ,
आशाओं से दीप्त दिशाओं में ही आगे बढ़ती हूँ।
कितनी भी बदली छा जाये मेरे जीवन के पथ में,
पर मैं अपने लक्ष्य- मार्ग से कभी न विचलित होती हूँ।
मेरा जीवन - लक्ष्य राष्ट्र की सच्ची सेवा करना है,
इसीलिए मानवता का मैं बीज हृदय में बोती हूँ ।
सब मिलकर समाज के हित में निज कर्तव्य निभा पाएँ,
नया जोश नित युवावर्ग में कविताओं से भरती हूँ ।
विश्व-पटल पर भारत की सुंदरतम छवि फिर से उभरे ,
इसी स्वप्न में विविध रंग के चित्र सजाने लगती हूँ ।
स्वरचित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 73
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मेरी अभिलाषा
चाह नहीं थी मेरी कभी
मैं गगन मैं उड़ जाऊँ
जब सें होश संभाला
बस अरमा था इतना की
सफलता को पाऊ
एक़ नन्हे कछुए की भांति
अपनी मंज़िल की और बढ़ती गयी
ना थी फिकर रेस की
ना था भावना हार जीत की
बस एक़ मुसाफिर की भांति
चले जा रही थी
ना था आभास ठोकरों का
ना था अंदाजा मुश्किलों का
करवा चलता गया
और हम साथ बढ़ते गए
कुछ रही मिले
कुछ अलग होते गए
हम मस्त पंछी की भांति
अपनी उड़ान भरते रहे
एक़ रही अभिलाषा ज़िन्दगी में
कि पिता का नाम रोशन करेंगे
दिया जीवन जीने का मकसद
सर उस का ना झुकने देंगे
किया जो प्रयास थोड़ा सा
मंज़िल को पालेंगे
क़र्ज़ उसके किये का दें सकते नहीं
बस उसकी बेटी होने का फर्ज़ अवश्य निभा देंगे.....
निभा देंगे
मोना चोपड़ा
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 74
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नमन मंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय;-अभिलाषा
#विषय क्रमाक-339
#दिनांक;-24/09/2021
विधा:-कविता
जीवन-पथ के हम सब गामी
अनन्त अभिलाषाओं के प्राणी
हो न कोई मानव-मानव में अन्तर
प्रगति पथ पर रहें सदा अग्रसर
बनकर बादल गगन से बरसूं
अवनी को सिंचित कर दूं
विश्व बन्धुत्व की भाव जगा कर
, करूं समभाव सतत् उजागर
लाकर शशि की शीतल किरणें
स्फूरित करूं नई उर्जा सबमें
नफरत की दीवार गिरा दूं
प्रेम की सरिता बहा दूं
शिक्षा की बहे अविरल गंगा
न हो कोई भूखा नंगा
सबको भोजन,वस्त्र,आवास मिले
जीवन यापन हेतु रोजगार मिले
जाति भेद न करें स्वीकार
मिले सबको समता का अधिकार
हो न कहीं जग में व्यभिचार
जीने का मूल मंत्र हो सदाचार।।
कल्पना सिन्हा
स्वरचित व मौलिक
मुम्बई ।
रचना नंबर - 75
***************
नमन मंच- कलम बोलती है
विषय क्रमांक- 339
दिनांक-25/09/21
दिवस- शनिवार
विषय- अभिलाषा
विधा-स्वैच्छिक (गीत)
तन मनुज का मिला जिसमें अभिलाषाएं अनेक हैं
कभी नील गगन में उन्मुक्त उड़ान भरने की चाहत
तो धरा पर खुबसूरत आशियां बनाने की अभिलाषा
और कभी एवरेस्ट फतह करने की अभिलाषा
कभी मन चाहता एकांत में खुद को ढूंढ लूं मैं
और कभी भीड़ का कोलाहल संगीतमय लगता
परिस्थिति के अनुरूप बदलती अभिलाषाएं हैं
दिल में पल पल बदलती अभिलाषाएं अनेक हैं
ईश्वर को पाने की अभिलाषा जब प्रबल होती
तब खुद की पहचान आसान सी हो जाती है
उस वक्त ठहर जाती हैं सारी अभिलाषाएं
जब साथ मिल जाता परमपिता परमेश्वर का
स्वरचित एवं मौलिक रचना, ब्लॉग के लिए प्रस्तुत है
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
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रचना नंबर - 76
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#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
मंच को प्रणाम
#विषय: अभिलाषा
*मेरे मन की अभिलाषा.*
#विषय क्रमांक:339
#दिनांक : 25/09/2021
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मेरे मन की यह अभिलाषा
न जान सका - ना पहचान सका
पत्थर–सा जान मुझे
शिला का आधार बना ।
पत्थर की अभिलाषा बनकर
शिवलिंग का आकार लिया
जल की शीतल धारा छूकर
गंगा–सा पवित्र बना ।
भांग–धतूरा अर्पण करके
भस्म लगाए महाकाल बने
विष को घटक नीलकंठ कहलाते
देवों के देव बने।
वे जों कपाल का हार पहनते
कैलाश पर्वत के स्वामी कहलाते
कहते कैलाश नाथ उन्हें
पापों का निवारण करते ।
गुणों को स्वीकारके
अवगुणों को हरते
हैं गंगाधर – है गिरजापति
बस मोक्ष प्राप्ति की है अभिलाषा।
न है कुछ पाने की अभिलाषा
बस मन में स्मरण तुम्हारा लिए
हृदय तुम्हारा हो जाता है
हे शिव शंभू - हे शिव शंकर, मेरे मन की यह अभिलाषा।
डा. वंदना खंडूरी
देहरादून उत्तराखंड
स्वरचित रचना
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रचना नंबर - 77
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नमन मंच
दिनाक.24.9.2021
बिषय.अभिलाषा !
मेरी है यारो अभिलाषा ,सब सबका
सम्मान करें !
कोई न यहाँ छोट बड़ा,सबसे अपनी पहचान करें !
धन दौलत हाथो का मैला,मत उस पर अभिमान करें !
मानब धर्म तुम अपना निभाओं,हर
मानब का ध्यान करे !
मानबता है ऐसा दर्पण,उसका ही ईमान करे !
मेरी है यारो अभिलाषा,सब सबका सम्मान करे !
मौलिक
रंजीत सिंह !
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रचना नंबर - 78
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जय शारदे माँ 🙏🙏
नमनमंच संचालक।
कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - अभिलाषा।
विधा - मुक्तक।
स्वरचित ।समीक्षार्थ
आज इच्छा पूरी हुई सबके मन की।
पूरी आकांक्षा हो गई जन-जन की।
अब तो भव्य मंदिर बन जाय अभिलाषा
अभिलाषा श्री रामलला के दर्शन की।।
*****
दुनिया बस एक तमाशा है।
सुख की क्या ही परिभाषा है।
तन ये मिल जाना माटी में
पुण्य कर्म करूं अभिलाषा है।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 79
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नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय अभिलाषा
विधा काव्य
नादान अभिलाषाएं
अनंत असीमित होती है अभिलाषाएं।
नहीं जाने कोई इनकी मूक भाषाएं।
तृप्ति-अतृप्ति की गढ़ती परिभाषाएं।
सखी संगी इनकी होती आशाएं।
अनेक संवेग हृदय मे हलचल मचाते।
शब्द कानों में इनकी भाषा बुदबुदाते।
नव आसमां छूने की राह दिखाते।
अभिलाषा तार हर पल धुन सुनाते।
प्रदीप्त करने अभिलाषाओं के दीप।
नोचना मत दूसरे उड़ते पंछी के पर।
मत बनाना दूजा जीवन दर्द का घर।
नादान अभिलाषाओं को तु परे कर।
वीनस जैन
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश
रचना नंबर :-80
**************
नमन,,,,सभी मंच वासियो को।
विषय अभिलाषा,
पुष्प की अभिलाषा है कि
किसी माला में गुथा जाऊ
मन की ये अभिलाषा है कि,
मर जाऊ,या किसी पर मर मितू।
हदय कहता है ,बन पंछी
नील गगन में उड़ जाऊ
रोम रोम कह उठता है कि
जाऊ सजना से लिपट जाऊ।
तन की चाह,आकांशा कामना,बस इतनी सी अभिलाषा
हो जाऊं किसी का या किसी को में दिल से अपना लू।
पर सम्पूर्ण जीवन के अंतिम क्षण तक मेरी यही अभिलाषा है
निकलू जब भी अंतिम सफर पर,सबकी आँखे नम कर जाऊ।
ये बस मेरी अभिलाषा है
की में खुद को पा जाऊ।
रचना नंबर :-81
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य
विषय क्रमांक 339
विषय अभिलाषा
मेरे मन की यह अभिलाषा
विषय- अभिलाषा
विधा- कविता
स्वरचित व मौलिक रचना.
कुछ पाने की हर पग जगत् से
ऐसी पनपी मन में अभिलाषा !!
हर मानव में रक्ताणु जब एक-से
हैं जीवंतता के परमाणु भी एक-से
फिर जाति-पाति का भेदभाव है क्यों
यहीं अंतर्मन में उठती बोली-भाषा !
भेदभाव अमीर गरीब मिट जाए
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
पुरस्कृत जीवन-मूल्यों से संसृति
‘मानव’ प्रकृति की अनमोल कृति
हो ध्येयसूत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम्’
समरसता जीवन की हो परिभाषा!
भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
न छोटे –बड़ी की छाई मनमानी हो
न ही बैर-विरोध की परिपाटी हो
जानते सब संस्कृतियाँ पुनर्सर्जित हों
दया-ममत्व स्पन्दित हों बारहमासा !
भेदभाव मेरा तेरा मिट जाए जगत् से
मानवता लिए सबकी अभिलाषा !!