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रविवार, 9 जनवरी 2022

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार :-आ कुलभूषण सोनी जी

10 जनवरी , सोमवार
        💥🙏#हिंदी_दिवस🙏💥  
        🙏शीर्षक शब्द : #हिंदी,🙏
           🙏🏵#मुक्तक 🌹🙏
🙏🏵🙏🏵🙏🌹🙏🏵🙏🏵

             🌹#रचना नंबर-एक🌹

अनेकता में जहां एकता , भारत मां के मान की.

सर्वधर्म समभाव भावना , भाषा सुरभित गान की.

सत्य सनातन संस्कृति जिसकी , मर्यादा ही वेद हैं -
व्याप्त वही भाषा रग-रग में ,#हिंदी हिंदुस्तान की.
                         🌹🏵🙏
         रचयिता : कुलभूषण सोनी, दिल्ली

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार :- आ. आर. बी. जी 🏅🏆🏅

नमन मंच

#कलम बोलती है साहित्य समूह
प्रतियोगिता क्रमांक 383
दिनांक 10/01/2022
विषय हिंदी

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
हिंदी भाषा को समर्पित कविता

कितना शुद्ध है हिंदी भाषा का अस्तित्व आओ समझे 
स्वर व्यंजन के मेल से शब्दों का निर्माण हुआ
जो लिखा गया वैसी ही ध्वनि हुई 
वैसा ही संचार हुआ ।

मौन कुछ भी नहीं होता हिंदी में
सभी वर्णों का मोल यहां समान है 
अस्तित्व हीन होना तो दूर की बात है
अक्षर आधा हो तो भी सिर चढ़ कर बोलता है
हमें तो बिंदी पर भी अभिमान है।
 
ऐसी कोई ध्वनी नहीं 
जिसका लोप हिंदी में हो 
संगीत सरल कितना भी हो
स्वर सभी हर भाषा में मिलते नहीं 
चाहे अंग्रेजी हों या अन्य में हों ।

व्याकरण कितना सुन्दर और समृद्ध है 
ये रस , छंद और अलंकार से जानो 
विदेशी भी सीख लेते हैं सहजता से
हिंदी की सरलता और सौम्यता को पहचानो।

कितने भाषाई आघात हुए 
जाने कितने शाब्दिक संक्रमणों को झेला है 
अंग्रेजी माध्यम में अर्थ दंड भी देना पड़ता है
जब भी कोई हिंदी में बोला है ।

पर भाषा हिन्दी हमारी 
हमारे प्राणों में बसती है 
तन का श्रृंगार तो कैसे भी कर लो 
पर आत्मा तो सदैव ईश्वर की ही होती है ।

दिवस हिन्दी एक दिन का नहीं 
ये युगों-युगों की बात है 
अहंकार मिलेगा नहीं यहां 
सब में मिलकर भी अलग अस्तित्व हो जाती है
तभी हिंदी, भाषा प्रेम की कहलाती है ।

                       स्वरचित 🙏
                                        ,,,,,,,,,R.B
©सर्वाधिकार सुरक्षित हैं

विषय 👉🏻हिन्दी । रचनाकार :-आ संध्या सेठ जी 🎖️🏆🏅

#नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
क्रमांक 383
विषय- हिंदी 

शब्द है छोटा लेकिन भाव 
बहुत ही गहरा है,
हिंदुस्तान है पहचान मेरी 
तो हिन्दी मेरा चेहरा है।

सबल अडिग हिन्दी ने ही 
आजादी का प्रचम लहराया,
कश्मीर से कन्याकुमारी 
तक फिर से तिंरगा फहराया।

मेरी हिन्दी भाषा ने ही 
सभ्यताओं को जोड़ा, 
एकजुट करके पूरे भारत 
को अंग्रेजी का भ्रम तोड़ा।

हिन्दी के पीछे सभ्यता चली
सभ्यता चली और फूली फली,
हिन्दी के सामर्थ्य से थी 
आजादी की मशालें जली।

नत मस्तक हूँ हिन्दी को मैं हिन्दी
मेरी शान और मेरा अभिमान है, 
वतन पर मेरी जान न्यौछावर तो
हिन्दी पर दिल कुर्बान हैं।

शब्द है छोटा लेकिन भाव 
बहुत ही गहरा है,
हिंदुस्तान है पहचान मेरी तो 
हिन्दी मेरा चेहरा है।

जय हिंद जय हिंदी

संध्या सेठ

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार :-आ बेलीराम कनस्वाल जी 🏅🏆🎖️

नमन मच
कलम बोलती है साहित्य समूह।  
दिनांक -10/01/2022
विषय -हिंदी 
विधा- कविता 

हिंददेश की शान है हिंदी,
  जन जन का अभिमान है हिंदी।
     हर अंतस में रची बसी इक,      
        गरिमामय पहचान है हिंदी।। 

विराजित जिह्वा में शब्दों की,
  मधुरिम मीठी खान है हिंदी ।
     एकत्व जगाने वाली अतुलित,
         धरती पर वरदान है हिंदी।। 

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
   सबकी इक पहचान है हिंदी। 
      कवि के शब्दों की क्यारी में,
          सुंदर इक उपमान है हिंदी।। 

रत्न जड़ित शब्दों से गूंथी, 
   मणियों की माला है हिंदी।
      बैर भाव हर भेद भुलाकर,
         मधुरस की हाला है हिंदी ।।

सरस सुबोध मीठी अति प्यारी, 
   ये भाषा है सुख देने वाली।
       महिमा अद्भुत है हिंदी की, 
           प्रेम रस बरसाने वाली।।

घनघोर तिमिर में जलती लौ ये,
   पथ आलोकित करती हिंदी।
       मूकों के मुख में भी मधुरिम,
         शब्द सुसज्जित करती हिन्दी।। 

बासंती रुत भीनी खुशबू ,
    मधुकर सी फुलवारी हिंदी।
         अपनत्व भाव जगाने वाली,
              हम सबकी है प्यारी हिंदी।।

हिंद देश का मान है हिंदी ,
    हम सबकी पहचान हिंदी।
        रोम- रोम में रची बसी यह, 
          अपनेपन की खान है हिन्दी।। 

स्वरचित-
बेलीराम कनस्वाल 
घनसाली,टिहरी गढ़वाल, उतराखण्ड।

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार :-आ रूपेश कुमार जी 🎖️🏆🏅

हिंदी मेरी भाषा 
---------------------------------

हिंदी मेरी मातृभाषा ,
हिंदी मेरी जान !

हिंदी के हम कर्मयोगी ,
हिंदी मेरी पहचान ,
हिंदी मेरी जन्मभूमि ,
हिंदी हमारी मान ,
हम हिंदी की सेवा करते है ,
हम जान उसी पे लुटाते है ,

हिंदी हमारी मातृभाषा ,
हिंदी हमारी जान !

है वतन हम हिंदुस्तान के ,
भारत मेरी शान ,
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा ,
हिंदी हमारी एकता ,
हिंदी में हम बस्ते है ,
हिंदी मेरी माता ,

हिंदी है हमारी मातृभाषा ,
हिंदी मेरी जान !

हिंदी मेरी वाणी ,
हिंदी मेरा गीत , ग़ज़ल ,
हिंदी के हम राही ,
हिंदी के हम सूत्रधार ,
हिंदी मेरी विश्व गुरु ,
हिंदी मेरी धरती माता ,

हिंदी है हमारी मातृभाषा ,
हिंदी मेरी जान !

~ रुपेश कुमार©️
चैनपुर, सीवान, बिहार

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार :-आ निकुंज अमर जानी जी 🏅🏆🎖️

'जय माँ शारदे '
विषय क्रमांक-383
विषय- हिन्दी 
दिनांक-10-01-2022
समीक्षा हेतु सादर प्रेषित है। 
विधा- कविता 

हिन्दी 
--------
सुन्दर मुहावरों व कहावतों से 
अभिमंडित है हमारी भाषा हिन्दी 
गौरवशाली, गौरवप्रदायनी,ज्ञानदायिनी 
भाषा यह----
संस्कृति का नित् नित् सिंचन करती यह 
सरल है, सुबोध है 
अंधकार में आशा की किरण है यह महान ग्रन्थों में संग्रहित 
इसने दिये संदेश अनेक 
अनुभूतियों के बुनती ताने बाने 
भावनाओं से करीब होते अन्जाने 
माध्यमों में चमकती अत्याधिक 
पारस्परिक संवादों को गढ़ती निर्विवाधिक----
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण 
हिन्दी की आन, बान और शान है 
भारतवर्ष की राजभाषा 
उसकी पहचान है-----
यह वह पावन गंगा सी 
जिसमें समाहित प्रादेशिक भाषाऐं भी 
हर एक का करती सत्कार है 
छंद,अंलकार से सुसज्जित 
इसका हर एक शब्द है 
कर्णप्रिय यह बन जाती 
जब मात्राओं में घोली जाती 
संगीत के सात सुरों में जा बसती 
कितने गीत-काव्य सहजता से रच देती----
ज्ञान की ऐसी ज्योत जलाती 
विज्ञान का भी आधार बन जाती 
निज भाषा का मुझे अभिमान है 
हिन्दी है हमसे, हिन्दी से हम है 
हिन्दुस्तान के आभामंडल पर यह 
सूर्य की किरणों पर अंकित 
गौरवगान है----
हिन्दी भाषा महान है 
हिन्दी भाषा महान है---।

---- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित और मौलिक कविता सादर प्रेषित है।

विषय 👉🏻हिन्दी । रचनाकार :- आ. गोविंद प्रसाद गौतम जी 🎖️🏆🏅

नमन मंच
#कलम बोलती है
#विषय  हिंदी
#विधा  पद्य
#दिनांक  10 जनवरी 2022,सोमवार

देववाणी  संस्कृत जननी
हिन्दी भाषा प्रिय प्रणाम।
तुम बिन जीवन है अधूरा
हम सफल करें हर काम।

हिन्दी अभिव्यक्ति माध्यम
हिन्दी अर्चन  ईश्वर पूजन।
हिन्दी से हम कवि करते हैं
हिन्दी साहित्य प्रिय सृजन।

हिन्दी मात्र नहीं यह भाषा
हिन्दी पूर्ण करे अभिलाषा।
हिन्दी गौरव हिन्दी सौरभ
हिन्दी पूर्ण, करे हर आशा।

हिन्दी मुक्तक ,प्रबंध काव्य 
हिन्दी शब्दकोष है व्यापक।
हिन्दी आन मान शान जग
हिन्दी ज्ञान का भव्य दीपक।

हिन्दी छंद अलंकार सौष्ठव
हिन्दी व्याकरण अति सुगम।
हिन्दी विश्वव्याप्त भाषा यह
हिन्दी गौरव जग में सर्वोत्तम।

हिन्दी दिवस पर एक सुझाव
हिन्दी ज्ञान , सागर गम्भीर है।
हिन्दी का नित प्रचार कीजिये
हिन्दी सुरम्य, मलय समीर है।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम 
कोटा,राजस्थान।

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

रचनाकार :- आ टी. के. पांडेय जी 🏆🥇🏆

आम आदमी

___

लेखन द्वारा टी के पांडेय
दिल्ली
___
कलम को समर्पित
___

आम आदमी का क्या कीमत, दर दर ठोकर खाता जाता। 
इधर, चपाता लगा रहा है, उधर चपाता और लगाता। 

शेष हाथ खाली खाली है, मन की वह मुश्कान कहाँ है
आम आदमी हूँ मै साहब, मेरा वह पहचान कहाँ है। 

सड़कों के झोपड़ पट्टी में, सदियों से मैं रहता आया। 
आम आदमी हूँ, मै भाई । 
झूठे वादों से नहलाया। 

दर्द ,व्यथा ,वेदना सहुँ मैं, छल प्रपंच सर नहीं कहीं है। 
दो लत्ति खाता हूँ भाई, कह कर जाता जिसका जी है। 

आम आदमी की ताकत को देखा नहीं, दिखाता हूँ मैं
मैने ही सरकार बनाई, गीत ध्वनि की गाता हूँ मैं। 

आम आदमी, आह सुना क्या, ईश्वर भी आ कर बसते हैं। 
मेरी झोपड़ में आ देखो, आम लीची कितने ससते हैं। 

__
त्रिपुरारी
___

मंगलवार, 30 नवंबर 2021

रचनाकार :-आ. कैलाश चंद साहू जी 🏆🥇🏆

मै आम हूं मै फिर भी काम हूं
सबके दिलो का जरा खास हूं।।

मैं आम हूं इसलिए दास हूं
करता नहीं जी हुजूरी बदनाम हूं।।

मेहनत की कमाई मेहनत की रोटी
इसलिए खास होते हुए भी दूर हूं

पल पल ख्वाब सजाता बस वास हूं
जिंदगी का सफर सुन्दर अहसास हूं।।

रचनाकार :- आ. रंजीत सिंह जी 🏆🥇🏆

आम आदमी को भी अधिकार,मत समझो उसको बेकार !

जीता वो भी अपना जीवन,पाले रखता अपना परिबार !

आम आदमी भी होते महान,जग करता उनको भी प्यार !

उनका वैभव भी गौरब शाली,जग करे नमस्कार !

संन्तोष करे आम आदमी,दुख सुख तो
है उसके यार !

रचनाकार :- आ. प्रबोध मिश्र हितैषी जी 🏆🥇🏆

नमन कलम बोलती है 
मंगलवार/30.11.2021
विषय-आम आदमी
विधा--मुक्तक
1.
आम आदमी के लिए, बने सभी कानून ।
भुजबल धनबल को सदा, हो जाते ये ऊन ।
अगर व्यवस्था चाहिए, रहें नियम के साथ -
नियम अगर तोड़ा नहीं, दंड न होगा दून ।
2.
साधारण दिखता भले, करतब करे अनंत ।
अपने अपने विषय के, ज्ञानी और महंत ।
ज्ञान और सँसाधन जो, बॉटे दिन औ रात -
आम आदमी से अलग, होता असली पंत ।

**********************************
      प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बडवानी (म. प्र.) 451551

रचनाकार :- आ. ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर जी 🏆🥇🏆

क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-30-11-2021
बिषय:- आम आदमी
विधा:- कुंडलियाँ
क्रमांक 366

आम आदमी के लिए, क्या     करती सरकार|
अनुदानों की सूचियाँ, बिल्कुल     हैं    बेकार||
बिल्कुल हैं    बेकार, बड़ी     गहरी है    खाई|
भ्रष्टाचार       पहाड़, कठिन है     बड़ी चढ़ाई||
कहें' मधुर' कविराय, चकित है देख यह जमीं|
लगता   है   लाचार, आजकल  आम आदमी||

               स्वरचित/ मौलिक
              ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. मूरत सिंह यादव जी 🏆🥇🏆

#हे मां सरस्वती 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह को सादर नमन 🙏
दिनांक- 30 /11/2021
दिन- मंगलवार
विषय- आदमी
विधा-दोहा
***************
महंगाई के दौर में,आम आदमी हैरान।
पैसा बचे न जेब में,मंहगाई शैतान।।1
महंगाई बैरन बड़ी,करती खाली जेब।
नेता संसद बैठ के,करते जाल फरेब।।2
भारी अब लाचार है,आम आदमी का वंश।
आम आदमी को ड़स रहा,मंहगाई का दंश।।3
अतिथि का स्वागत भला,महंगा होता एक।
आम आदमी रोने लगा,सुन कड़की की टेक।।4

स्वरचित दोहे/मौलिक
मूरत सिंह यादव
प्राथमिक शिक्षक
दतिया मध्य प्रदेश

रचनाकार :-आ अल्का मीणा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती है
विषय- आम आदमी
विधा- स्वैच्छिक
दिनांक- 30/11/2021
 दिवस-मंगलवार

सादर अभिवादन 🙏🏻

हाय यह महंगाई,हाय यह महंगाई
खर्चे हैं ज्यादा और आधी है कमाई।

कटौती करें तो करें कहां भाई
महंगा हो रहा जीवन यापन,
महंगी होती जा रही
बच्चों की पढ़ाई।

उच्च निम्न आज हर कोई
झेल रहा महंगाई की मार,
महंगाई बढ़ती ही जा रही
होकर घोड़े पर सवार।

महंगाई की मार से
हर कोई है हारा,
लेकिन सबसे ज्यादा पिस रहा
आम आदमी बेचारा।

कोई तो हो जो
करे कुछ उपाय,
आजकल कोई मुद्दा नहीं
महंगाई के सिवाय।

अल्का मीणा
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक रचना

रचनाकार :- आ. मंजु टेकड़ीवाल जी 🏆🥇🏆

#नमन मंच 
#कलम बोलतीं है साहित्य समूह 
#विषय क्रमांक-366
#विषय-आम आदमी 
#विधा-कवि 
#दिनांक-30.11.21
#दिवस-मंगलवार  

आम आदमी इज्जतदार सीधा साधा। 
मेहनत करता भावनाओं को मारता।।
तन व पेट चिन्ता से कभी न उभरता।
विकास की सुविधा से वंचित रहता ।।

 शिक्षित बच्चों को कभी न कर पाता।
 परिवार केवल घुट घुट कर जीता।।
अरमानों से इस का नहीं कोई नाता।
पढ़ाई लिखा रईस इन से कतराता।।

कभी बदलेगा समय आस में जीता।
गरीबी,बीमारी,मौसम मार झेलता।।
केवल कठिनाइयों से इस का नाता। 
थोड़े में जीने की कला हमें सिखाता।।

स्वरचित एवं अप्रकाशित मंजु टेकड़ीवाल कोलकाता।

रचनाकार :- आ. अनुराधा प्रियदर्शिनी जी 🏆🥇🏆

नमन मंच🙏🙏🙏#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
दिनांक:30/11/2021
विषय:आम आदमी
विधा:- कविता

आम आदमी ही तो संघर्षों से जूझता है
जो मुश्किलों से नहीं डरता वहीं मंजिल को पाता है
आम आदमी ही तो एक दिन खास बनता है
इतिहास में अपना नाम अपने जज्बे से लिखता है
दाल रोटी खाकर प्रेम जग में बांटता है
आम आदमी ही मुश्किल हालातों में साथ रहता है
हिमाचल सा खड़ा हर तुफान से लड़ता है
आम आदमी ही वादा तो हरदम निभाता है
कभी आसमां छूता कभी सागर में गोते लगाता है
आम आदमी ही तो चांद पर पहुंचा है
हर दिन नए सपने संजोए उनको पूरा करता है
आम आदमी ही एक दिन खास बनता है

स्वरचित एवं मौलिक रचना

    अनुराधा प्रियदर्शिनी
  प्रयागराज उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. प्रमोद तिवारी जी 🏆🥇🏆

नमन मंच 
#कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-30/11/2021
दिन-मंगलवार
विषय-आम आदमी
विधा-कविता
विषय क्रमांक-365

 मौसम बदला आम आदमी याद आ रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है
तभी आम आदमी जुवां पर नाम आ रहा है
किसी ने सुध ना ली कहाँ मातम मना रहा है

चुनावों में आम आदमी का मुद्दा छा रहा है
हर दल इनको लुभावने सपने दिखा रहा है
आम आदमी के मन में उम्मीद जगा रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है

आम आदमी नाम पर खास बन जा रहा है
आम आदमी बदहाली पर आंंशू बहा रहा है
कैसा संयोग है वह लगातार ठगा जा रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है

हाड तोड़ मेहनत का फल वो कहाँ पा रहा है
उनके दर्द को क्या कोई नेता बाँट पा रहा है
पिता की दवा बच्चों की फीस कहाँ दे रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है

स्वरचित एवं मौलिक रचना
प्रमोद तिवारी
दिबियापुर
औरैया
उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. अनिल मोदी जी 🏆🥇🏆

कलम बोलती है साहित्य मंच
तिथि ३० - ११ - २०२१
विषय आम आदमी
विधा
आम आदमी त्रस्त है।
 महंगाई से पस्त  है।
दिवा स्वप्न दिखाये नेता,
वातानुकुल में मस्त है।
हौसले सबके पस्त है।
जीवन में कितने कष्ट हैं।
भागदौड़ की जिंदगी में,
सब अपने दुख: सै पस्त है।
ना कह सके ना सह सके,
ना हंस सके ना रो सके, 
एकल परिवार में व्यस्त है।
बात-बात में तुनक मिजाज,
तलाक की देहरी छुते है।
फैशन की दौड में ,
हर कोई चाहे अव्वल दिखना,
जेब है सक्षम तो जिन्दगी मस्त है।
 पति पत्नी और बच्चा महंगी पढाई जीना ध्वस्त है।
दोनो करते नौकरी, बच्चा,
शिशुआलय में पलता,
मोबाइल लेपटॉप की जिन्दगी जीता,
मदरस् डे,  फादर्स डे का इंतजार है।
आम आदमी की विरानी जिन्दगी हरियाली कम, पतझड ज्यादा है।
अनिल मोदी, चेन्नई ३

रचनाकार :- आ रजनी कपूर जी 🏆🥇🏆

नमन मंच🙏🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय-आम आदमी
दिनांक-30/11/2021
क्रमांक-365

आम आदमी

घिसटतें ,चलते दौड़तें ,भागतें
क्षण-क्षण समय के साथ
चाहे समय दे ना साथ
जिम्मेदारियों संग रहते सदा गतिमान
क्योंकि मैं ही तो हूँ आम आदमी

खुशी हो या गम
स्वस्थ हो या अस्वस्थ
गाते रहते हरदम
सबका रख ध्यान
मुख में रख मुस्कान
क्योंकि हम ही तो है आम आदमी

विपदाएं आती चली जाती
चट्टान सा हमें पाती
रोज़ का किस्सा यही 
हो जाते अभ्यस्त सभी
क्योंकि हम ही तो है आम आदमी

रजनी कपूर

रचनाकार :-आ रूपेन्द्र गौर जी 🏆🥇🏆

नमन- कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक -30/11/2021
विषय -आम आदमी। 
विधा-गीत।
समीक्षार्थ,

आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।
पर उसी पर होते रहता, जमकर अत्याचार यहाॅं। 

आम आदमी को जरा भी, मिलता नहीं सुकून है। 
भागता रहता साल साल भर, क्या अगस्त क्या जून है।
होती उसके वोट की कीमत, उसकी कीमत शून्य है। 
जिसे जरूरत वही चूसता, उसका मीठा खून है।
पर उसकी कीमत का होता, है ना कुछ सत्कार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं। 

इधर से उधर उधर से इधर, फुटबाल बनाया जाता है। 
चुनावी सीजन में उस पर फिर, दांव लगाया जाता है।
वोट नाचने के लिए उसे फिर, खूब रिझाया जाता है। 
पश्चात चुनावों के उसको फिर से ठुकराया जाता है।
पर उसकी नैया के वास्ते, हरदम है मझधार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।

जितनी बढ़े सैलरी उससे दुगनी महंगाई की मार।
पूछो तो कैसे चलता है आम आदमी का परिवार। 
तेल खरीदे गैस खरीदे या खरीदे मोटर कार। 
आखिर किससे आम आदमी मुश्किलों में करे पुकार।
उसकी तकलीफों का रहता, सदा ही पारावार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं। 

आम आदमी के जीवन में, आता नहीं उछाल है।
वही अचार वही रोटी सब्जी, वही चटनी हुई दाल है। 
कभी खत्म ना होने वाला, हरदम खड़ा सवाल है। 
देखो जाकर उसको जब भी, वही हड्डी वही खाल है।
आम आदमी होते रहता, हर दम ही लाचार यहाॅं। 
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।

रूपेन्द्र गौर, इटारसी, 8871675954
स्वरचित एवं मौलिक

रचनाकार :- आ. बीना नौडियाल खंडूरी जी 🏆🥇🏆

नमन् मंच🙏.
कलम बोलती है साहित्य समूह.. 
क्रमांक.. 365 . 
# विषय.. आम आदमी.

आम आदमी, खास आदमी.
ये तो जग- रीत से, 
नियम- सिद्धांतों में, 
उलझी हुई, आम आदमी, 
   की ज़िन्दगी.. 
क्यों है? कोई आम आदमी, 
क्योंकि उसकी कोई पहचान नहीं..... ??
या उसकी कोई पहुँच नहीं?? 
ईश्वर ने अपनी कृति में, 
भेद ना कोई किया.. 
इंसान को एक जैसा ही बनाया.. 
कर्म उनके नाम किया.. 
क्यों ऐसा है?? 
कि गुनाह करके भी, 
स्वतंत्र है खास आदमी.
और बेगुनाह होने पर भी
सजा पा जातें हैं आम आदमी.... 
हर काम में, हर क्षेत्र में... 
उपेक्षित होता रहा, 
आम आदमी.. 
यही अब मेरी नियति है,... 
संतुष्ट होता है, आम आदमी.. 
  
मेरी लेखनी... ✍
बीना नौडियाल खंडूरी🙏🌹...

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
 कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-30-11-2021
विषय आम आदमी
विधा कविता

हम सब आम आदमी है।
जिंदगी भर बोझ उठाते हैं।
कभी किसी को नहीं सताते हैं।
सदा लक्ष्य प्राप्ति करते हैं।

सेवा धर्म कर्म पर विश्वास करते हैं।
सत्संग में बढ़ते रहते हैं।
सबका कल्याण करने हेतु ही।
अनंत दुख खुशी से सहते हैं।

स्वयं को कष्ट पहुंचा कर।
परिवार के लिए जीते हैं।
मेहनत हक का खाते हैं।
नहीं किसी से छीनते हैं।।

यदि जीवन में दुखा जाए।
यही भाग में ,,खुशी से झेलते हैं।
एक दूजे के दुख में आम आदमी।
परिस्थिति को समझे,रोता है।

रिश्ते नाते को सदा निभाते हैं।
मान सम्मान को करते कराते हैं।
सपनों की मंजिल पाते हैं।
भेदभाव कभी भी नही करते हैं।

स्वरचित मौलिक तथा अप्रकाशित
संगीता चमोली देहरादून उत्तराखंड
ब्लॉग प्रस्तुति हेतु सहमति है।

रचनाकार :- आ. डॉ. अवधेश तिवारी भावुक जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
विषय क्रमांक-366
30/11/2021
विषय-आम आदमी

आम आदमी

मैं कोई कवि नहीं
जिसकी कविता पर वाहवाही हो,
मैं कोई राज नेता नहीं
जिसके भाषण पर गड़गड़ाती तालियाँ हो,

मैं हूँ एक आम आदमी
जिसको कोई पूछता नहीं,
जिसको कोई पूजता नहीं,

जिसे कोई जानता नहीं,
जिसे कोई पहचानता नहीं,

जो रोज कुनबे भर की जरूरतें पूरी करता है,
जो रोज बढ़ती मँहगाई में उलझा रहता है।

बस अपनी मेहनत 
अब छोटी लगने लगी है,
कीमतें आसमान छूने लगी है।

मैं कौन हूँ
ये तो मैं भी नही जानता।

सरकार कहती है
की मैं एक आम आदमी हूँ।

हाँ मैं हूँ आम आदमी

जो खास आदमियो के काम आता है,
सड़को पर आजकल
धरने प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है।

परवाह किसी को नहीं मेरी,
लेकिन हर जगह बात मेरी ही होती है...

डॉ.अवधेश तिवारी "भावुक"

रचनाकार :- आ. छगनलाल मुथा जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
विषय:- आम आदमी
विधा- हाइकु
दिनांक ३०/११/२०२१
**************************
आम आदमी
जीवन में लिखा है
करना श्रम।

बडा भोला है
फंस जाता किसी भी
झूठे वादों में।

परिवार को
कैसे खुश रखना
एक ही ध्येय।

रोजी-रोटी का
कैसे हो बंदोबस्त
आज का दिन।

नहीं सोचता
कभी बुरा किसी का
समय नहीं।
************************"*
स्व रचित- कवि छगनलाल मुथा-सान्डेराव (ओस्ट्रेलीया)

रचनाकार :- आ. दिनेश प्रताप सिंह चौहान जी 🏆🥇🏆

"नमन कलम बोलती है साहित्य समूह"
29/11/2021--सोमवार
दैनिक विषय क्रमांक=365
विषय=आम आदमी
विधा=स्वैच्छिक
प्रतियोगिता एवं समीक्षा हेतु 
===================================
मँहगाई से हलकान है,......ये आम आदमी,
हैरान परेशान है,........... ये आम आदमी।
कुर्सी के खेल में न इसका,कोई पुरसाहाल,
बस वोट का सामान है,...ये आम आदमी।
नीचे से ऊपर जाने में,.... रहता सदा लगा,
उलझाए इसमें जान है,...ये आम आदमी।
बस बनाता रहता है बजट,... पूरी ज़िंदगी,
एक गरीबी पुराण है,.....ये आम आदमी।
दो कमरे के मकान का ही,ख़्वाब उम्र भर,
एक अधूरा अरमान है,...ये आम आदमी।
===================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान" (स्वरचित)
(एटा=यूपी)

रचनाकार :-आ राम गोपाल प्रयास जी 🏆🥇🏆

नमन -मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय-आम आदमी
दिनांक-३०/११/२१
विधा-मुक्तक
समीक्षार्थ

आम आदमी भी ह़ै आदमी भ़ूल क्यों जाता है‌ तू ।
अपनी कारग़ुजाऱियों से क्यों उसको डराता है तू ।
आम आदमी क़ी आहों से मत खेल कल पछताएगा -
क्यों कर के उसके अश्कों को दिन- रात बहाता है तू ।।

आम आदमी जानवर नहीं, आदमी तो ह़ै ।
तेरे जितना पढ़ा नहीं पर, आदमी तो ह़ै ।
करत़ा है बहुत कम ‌बेईम़ानी और गुस्ताखियां -
नहीं है द़ौलतमंद तो क्या ,आदमी त़ो है ।।
स्वरचित
रामगोपाल प्रयास 
गाडरवारा मध्य प्रदेश

रचनाकार :- आ. ज्योति विपुल जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह,
दिनांक-३०/११/२०२१
दिन-मंगलवार
विषय-आम आदमी
विधा-कविता
विषय क्रमांक-365

आम आदमी हूं,पर दिल का राजा हूं,
दिल पर राज करता हूं,सबको जोड़े रखता हूं,
अभिमान से कोसों दूर, सबसे मित्रता निभाता हूं ,
प्यार है मुझे पसंद, नफरत को करता हूं दूर ।
आम आदमी हूं मैं, आम आदमी हूं मैं ।

अतिथियों का स्वागत करता हूं,
बड़े बुजुर्गों का सम्मान करता हूं,
संतोष, समाधान है मेरी पूंजी,
बीवी, बच्चों को देता हूं खुशी ।
आम आदमी हूं मैं, आम आदमी हूं मैं ।

आम आदमी हूं, महंगाई से डरता हूं,
महंगाई भी खर्चों में कटौती कर परिवार को खुशियां देता हूं,
सकारात्मकता है मेरा मित्र, हमेशा मुस्कुराता हूं,
संकटो से नहीं डरता मैं, हिम्मत से काम लेता हूं ।
आम आदमी हूं मैं, आम आदमी हूं मैं ।

स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित मेरी रचना ।
ज्योति विपुल जैन
वलसाड (गुजरात)

रचनाकार :- आ. देवेश्वरी खण्डूरी जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#मंच_को_प्रणाम 
दिनांक:30/11/2021
विषय:आम आदमी
_________________________________________
आम आदमी को परेशानियों का सामना करना पड़ता, परिश्रम बहुत करता ,
फल बहुत कम मिलता ,
दो वक्त की रोटी का गुजारा मुश्किल से होता ,
आम आदमी बेबस होता ,
आम आदमी का दर्द हर कोई नहीं समझता ,
कभी किसी का शोषण नहीं करता ,
दूसरों के दुख को अपना समझता ,
अपने गम को भूल कर ,
ओरों को हंसाता रहता,
आम आदमी साधारण रहता ,
सपने अच्छे सजाता।
__________________________________________
देवेश्वरी खंडूरी
 देहरादून उत्तराखंड
स्वरचित रचना।

रचनाकार :-- आ. भगवती सक्सेना गौड़ जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय आम आदमी
30 नवम्बर
क्रमांक 365

आम आदमी 

एक चौराहे पर आम आदमी बैठे बतिया रहे थे, पहले घर, बडी कार, महंगे ब्रांडेड कपडे और सोना नही खरीद पाता था तो क्या हुआ ? हम लोग सब्ज़ी तो झोले भर भरकर लाते थे, पर अभी कई दिनों से टमाटर खरीदना भी दुर्लभ हो रहा।

स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर

रचनाकार :- आ मंजू लोढा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
शीर्षक – आम आदमी
दिनांक – 30 नवम्बर 2021

अक्सर जब भी कोई किसी से पूछता है,
कि कौन हो तुम ?
तब वह कहता हैं कि आम आदमी हूं। भीड़ का एक अंश होकर भी भीड़ में अकेला हूं।
नित्य सुबह उठता हूँ,
जीवन की भट्ठी में तपता हूँ,
रूखा-सुखा जो मिला,
उसी में जीवन काटता हूँ।
न महलों की ख्वाइश है,
न हीरे-मोती की चाह है,
दो जून रोटी मिले सकून से,
प्रभु से बस यही आस है।
आम आदमी कि विवशता है,
ना वह भीख मांग सकता है,
ना अपनों को भूखा सुला सकता है,
परिवार के दायित्वों तले,
वह नित्य पीसता है,
इमारत, सड़क, बाजार,
मिल, कल-कारखानों में वह, 
मशीनों जैसा पीसता है,
सोचता है क्या वाकई वह इंसान है? 
कभी-कभी तो वह,
आंसूओं के संग-संग, 
खून के घूंट भी पीकर रह जाता है,
प्रेम के दो शब्दों पर,
आम आदमी बिना मूल्य बिक जाता है।
- मंजू लोढ़ा, स्वरचित

रचनाकार :- आ. नंदिनी लहेजा जी 🏆🥇🏆

नमन कलम बोलती है
मंगलवार/30.11.2021
विषय-आम आदमी

हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
मन में कई सपने परन्तु, यथार्थ में संघर्षों का मारा हूँ मैं। 
कहते सुबह के सपने होते सच है,पर तड़के जल्दी उठ जाता हूँ मैं। 
उठो! अब पानी आने का टाइम हो गया,
श्रीमतीजी की आवाज़ को अलार्म जो समझता हूँ मैं। 
हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
बेटे को समय से स्कूल छोड़कर आना, 
चाय के साथ अख़बार के पन्ने पलटना, 
अरे! थोड़ा सब्जी कटवा दो मुझे, न कहना देर हो गई। 
 मधुर वाणी से हड़बड़ा जाता हूँ मैं। 
 हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
नित पेट्रोल के दामों ने, जेब काट दी है। 
रसोई गैस,और बिजली बिल के बढ़ते भाव ने,
ज़िन्दगी दुश्वार कर दी है। 
ऊपर से ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल रिचार्ज,
तो दूजे तरफ स्कूल में फीस भी भरनी हैं। 
क्या खाऊंगा और क्या मैं बचाहूँ, कश्मकश में सदा रहता हूँ मैं। 
 हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
ऑफिस किसी दिन जो, देर से पहुँचता। 
बॉस की तीखी नज़रों से,स्वयं को बचता। 
 पैसे ना काट जाएँ,गर छुट्टी करी तो, 
प्रमोशन के लिए, कड़ी मेहनत करता हूँ मैं। 
हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
मुझे देश के उच्च वर्ग से, कोई बैर नहीं। 
मैं ठहरा आम आदमी, क्या टिपण्णी करूँ, वर्ना खैर नहीं। 
निर्धन तबके के लिए फिर भी, राशन मुफ्त है। 
यहाँ तो प्याज़ टमाटर के बिना सब्जी से स्वाद लुप्त हैं। 
emi पटाऊँ ,या lic भरूँ,
मैं आम आदमी, बेचारा क्या क्या करूँ। 
फिर भी समाज में अपने परिवार के, मान को ना झुकता हूँ मैं। 
हां इस भारत देश का एक आम आदमी हूँ मैं। 

नंदिनी लहेजा 
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

रचनाकार :- आ. सत्या पांडे जी 🏆🥇🏆

नमन मंच 
विषय आम आदमी

इस महगाई के दोर से
परेशान है आम आदमी
कभी महगाई ,कभी महामारी
चारो तरफ मची अफरातफरी
सब का जीवन तबाह हो रहा है
इस मुसीबत से परेशान हर आदमी
सबसे अच्छा ऐशो आराम मे
मिलता नेता अभिनेता मे
गरीब की पुकार कोन सुनता
जयकार होती जो है खास आदमी ।।

सत्या पांडेय 
वाराणसी

रचनाकार :- आ. अल्का गुप्ता "प्रियदर्शिनी " जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय+- आम आदमी
दिनांक-30/11/2021
विधा-स्वैच्छिक
विषय क्रमांक-365

आम आदमी
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आज परेशान बड़ा  आम आदमी
मंहगाई का मारा है आम आदमी
कुरीतियों से जूझता आम आदमी
सुविधा से अंजान है आम आदमी

सुख है कोसों दूर दुख है सम्मुख 
सबसे ज्यादा कष्ट में आम आदमी
गरीब जनों को सरकार भी देती
अमीर जिए खुश हाल सदा ही

आम आदमी मध्यम वर्ग का
मरता रहता मध्य में पिसकर
मांग न पाए हाथ फैला कर
शर्म में डूबा है आम आदमी

प्यार दिलों में बनाए रखता
नफ़रत नहीं किसी से करता
मदद सभी की है वह करता
फिर भी पिसता आम आदमी

मिलकर समाज संग रहता
सुख दुख में साथ निभाता
अच्छा बुरा वक्त है बिताता
कभी न हारा आम आदमी

करें कटौती घर के खर्चों में
कम खाए कम खर्च है करता
देखें अलका इस दुनिया में
अधिक कष्ट में आम आदमी।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

समीक्षार्थ 🙏

सोमवार, 29 नवंबर 2021

रचनाकार :- आ. कवि देवदास गढपाल कटंगी जी 🏆🥇🏆

नंमन मंच
कलम बोलती हैं
#विषय क्र.365
दि.29/11/21
विषय. आम आदमी
 मंहगाई बढ़े या रेल भाड़ा
प्रभावित होता आम आदमी।
खराब हो सडक़ या फिर चौड़ी
प्रभावित होता आम आदमी।
वृक्ष कटे या फिर जंगल जले
प्रभावित होता आम आदमी ।
अतिक्रमण हो या झोपड़ी गिरे।
प्रभावित होता आम आदमी।
प्रदूषण हो या आक्सीजन बहे
प्रभावित होता आम आदमी।

स्वरचित मौलिक रचना है।
कवि देवदास गढपाल कटंगी बालाघाट मध्यप्रदेश।

रचनाकार :-आ वंदना खंण्डूड़ी जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#मंच_को_प्रणाम 
#विषय_क्रमांक_365
#विषय_आम_आदमी
#दिनांक_29_11_2021
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आम आदमी से बने खास, 
जब कर जाऐ कुछ खास,
बना दे धरा को हरा-भरा, 
जब बन जाऐ वो खास।

आम आदमी सीमा पर, 
प्राण न्यौछावर करते,
कसम फर्ज निभाने के लिए, 
जीवन को अर्पण करते।

आम आदमी ने खास बनकर किये बहुत से काम,
कभी हिमालय के शिखरों मे अपना बिगुल बजाए,
कभी अंतरिक्ष में तो कभी ,
विश्व पटल पर अपना झंडा फहराये।

देखा है मैंने बस्ती मे भी उन फूलों को खिलते हुए,
जिन्होंने आम बनकर दुनिया मे परचम लहराया है,
अपने जीवन के साथ-साथ,
 सबके जीवन को महकाया है।

आम आदमी से ही बने सरकार, 
आम आदमी से ही गिरे सरकार,
जब हो कहीं अत्याचार,
तब आम आदमी मांगे अपना अधिकार।

आम आदमी बनना नहीं आसान,
जो अर्पण करें धरा को वो बन जाए खास,
जग मे रहकर करें जो सबका उद्धार,
वो ही खास आदमी को बनाया एक आम आदमी ने।

आम आदमी की शक्ति को पहचानो,
खास नहीं पर आम आदमी बनकर जग को रोशन कर जाओ।

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डा.वन्दना खण्डूडी
देहरादून, उत्तराखंड
स्वरचित रचना।

रचनाकार :-आ मनोज कुमार तिवारी मनसिज जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दिनांक-29/11/2021
#विषय-आमा आदमी
#विधा-गद्य

नमन मंच-

वर्तमान समय में आम आदमी एक सामान्य जन है । जो अनेकों समस्याओं को सहता हुआ अपना जीवन जी रहा है। वह कम राशि में अपने परिवार का भरण पोषण बड़ी कठिनाई से कर पाता है। वह अच्छे निजी विद्यालयों की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता ।बेरोजगार रहता है। महंगाई की मार झेलता है फिर भी मन ही मन अपने को समझाता है। इसी आम आदमी की ना अधिकारी ही बात सुनते हैं और ना ही हमारे राजनेता। बुरा हाल है आम आदमी का।सरकारे कहती तो बहुत कुछ है लेकिन आम आदमी का भला नहीं हो पा रहा स्वतंत्रता के 74 साल बीत जाने के बाद भी आज व्यक्ति लगता है वही का वही है वह निरंतर श्रम करता है लेकिन उसके श्रम का उचित मुल्य उसे नहीं मिलता जिसका आधार लेकिन आज भी वह निराधार है।
स्वरचित, मौलिक-
मनोज कुमार तिवारी'मनसिज'
बड़ामलहरा(छतरपुर)मध्यप्रदेश

रचनाकार :-आ गोपाल सिन्हा जी 🏆🥇🏆

आम आदमी
--------------

आदमी तो आदमी है। यह आम आदमी क्या होता है ?

क्या हम किसी अन्य प्राणी मे, ऐसे विभेद करते हैं ?

जैसे एक हथेली की पाँचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, वैसे ही एक समाज के सभी सदस्य बराबर नहीं होते हैं। शारीरिक बनावट, मानसिक विकास, रंग-रूप की दृष्टि से, वे भिन्न होते हैं।

इतना तक तो ठीक है, पर जब हम उनका आर्थिक आधार पर वर्गीकरण करते हैं, तो उच्च आय-वर्ग, मध्यम आय-वर्ग, निम्न आय-वर्ग आदि के रूप में विभाजित करते हैं और यहीं से आम आदमी की बात उठती है, जो प्रायः मध्यम आय-वर्ग अथवा मध्यम एवं निम्न आय-वर्गों के संयुक्त रूप से जाने जाते हैं।

इस वर्ग की या दोनों वर्गों की अपनी परिस्थितियां हैं, आकांक्षाएं हैं, आवश्यकताएं हैं, विशेषताएं हैं। यह वर्ग श्रमजीवी होता है। इसके पास पूंजी का अभाव होता है। यह उत्पादन से जुड़ा होने पर भी बड़ा उद्यमी-व्यवसायी नहीं होता, किंतु सामूहिक उपभोक्ता होता है।

आम आदमी साहित्य एवं राजनीति में अधिक चर्चित रहता है। वहाँ इसे सीमित आय, सीमित साधन, सादी जीवन-शैली, शाँत, छोटी-मोटी जरूरतों, छोटे सपने देखनेवालों के रूप में चित्रित किया जाता है। कोई सरकारी योजना बनाते समय यह ध्यान दिया जाता है कि इससे आम आदमी को क्या लाभ मिलेगा और तब आम आदमी भी खास दिखने लगता है।

--- गोपाल सिन्हा,
      बंगलुरू, कर्णाटक,
      ३०-११-२०२१

रचनाकार :- आ. राधा शैलेन्द्र जी 🏆🥇🏆

आम आदमी
---------------
इतनी छोटी सी जिंदगी में
बदहवाश सा दुनिया में 
क्यों भागता रहता है आम आदमी?
घर "जमीन" खेत-खलिहान जायदाद के लिए
दिलों को क्यों बाँटता है आदमी?
दुनिया की इस भीड़ में
अपनो को भी बाँटता है आदमी
हर संबंध के बीच 
दीवार खड़ी करता हैं इंसान!
नहीं समझता कि जिंदगी 
न मिलेगी दुबारा!

सपने पूरे हों या न हों
'खाक' में मिल जाता है आदमी
अहंकार
रूप सौंदर्य गुण दौलत का
इसी दुनिया में
क्यों पालता है आदमी
हार जीत के युद्ध में
उलझा रहता है इंसान!

धूप और छावं की आंख 
मिचौली सी
यह भंगुर 'जिंदगानी' सारी
फिर आलीशान इमारतों के आगे
बेघर भूखा क्यों मरता है आदमी
दुनिया प्यार से भरपूर हो
ये क्यों नहीं चाहता आदमी!

अपने पराये के बीच बस 
फर्क करता है आदमी
जमीन के लिये एक दूसरे को
क्यों मारता है आदमी?

इस चंदरोज़ा जिंदगी में भी
दुनिया से दिल से दिल मिलाकर
क्यों नही रह पाता है आदमी?
एतबार एक दूसरे पर क्यों 
नहीं कर पाता है आदमी?
नफरत सीने में, प्यार 'दीवारों' में
चिन सहेजकर क्यों रखता है आदमी?

-राधा शैलेन्द्र,
भागलपुर

रचनाकार :- आ. सुनीता चमोली जी 🏆🥇🏆

"कलम ✍🏻 बोलती है साहित्य समूह" मंच को नमन।                                   विषय क्रमांक-: 365
विषय-:आम आदमी                                                      विधा -:कविता
रचना-: मौलिक स्वरचित
दिनांक -:29/11/2021
समीक्षा हेतु।
★आम आदमी★                                                           पथ जीवन का जटिल भी है
दुरुह भी,दुष्कर भी 
कई रुपों में स्वयं खोजता
आम भी खास भी 
रंग वैसा रुप वैसा                                                             सब कुछ उसमें है वही 
नयन नक्श सब कुछ वैसा
फिर भी अंतर भेद नही
ये भेद किसने किये ?                                                        कोई खास,कोई आम आदमी
किसने दिये इसे विशेषण
बिल्कुल वैसा ही है
जैसे अन्य मनुज तन
क्या ? कोई शरीर देखकर 
अंतर कर सकता है इनमें
ये खास है ये आम आदमी
रक्त का रंग वही                                                               शरीर का रंग वही                                            
ईशवर के बनाये हम सभी 
मनुष्य,जीव,जंतु-जड़ चेतन
वृक्ष-वनस्पति सब कुछ                                                      जो इस चराचर जगत में स्थित 
परिस्थितियां भिन्न भी हों
तब भी आम और खास 
का भेद मन का 
तन से तो सब अभेद 
ये मन का मैल कब धुलेगा
ये खास आदमी  
ये आम आदमी 
यह तो ईशवर की बनाई 
श्रृष्टि का अनादर 
जब इसमें लेकर जन्म
वास इसमें सब करते
सभी प्राणमय जीव 
जड़़तत्व अनगिनत
दुःख शोक रोग व्याधि
जन्म मृत्यु निशचित सब
वह स्वयं सूर्य सम                                                           फिर कैसा अनर्थ।

रचनाकार :- आ. रवींद्र पाल सिंह रसिक जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
दिनाँक-29-11-2021
विषय-आम आदमी
विधा-मुक्तक

छद्म जालों में फँसा है आम आदमी।
तोड़ता खुद ही घरोंदे आम आदमी।।
खो गई  इंसानियत इंसान से।
चढ़ा क्यों हैवानियत पै आम आदमी।।

मिथक लेकर जी रहा है आम आदमी।
धन सृजक ही रह गया है आम आदमी।।
चंद रोजा जिंदगी जीने को ही।
संघर्ष करने को विवश है आम आदमी।।

भूखी प्यासी देह का ये आम आदमी।
रोजी रोटी को बिलखता ये आम आदमी।।
कड़कड़ाती ठंड वाली रात में।
ढ़ाँपने को तन तरसता आम आदमी।।
रवेन्द्र पाल सिंह रसिक

रचनाकार :- आ. शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय जी 🏆🥇🏆

कलम बोलती है
 विषय क्रमांक -365
29/11/2021/सोमवार
-----
*आम आदमी*
काव्य
-----
हर आदमी नहीं होता आम आदमी
कुछ होते हैं विशेष
उनके अपने खास आदमी
जिन्हें मिलते रहते हैं उपहार घर परिवार 
द्वार पर आकर।
देखिए आप
घर आंगन में मिले नंगा नृत्य करने का अधिकार
यही तो हैं हमारे अपने।
आम आदमी रोता रहता कोई श्रोता बनकर रहता
कहीं अपना पड़ोसी
हमारा सिर हाथ पैर तोडता अपने ही देश में
ऐसा आम आदमी के साथ होता रहता।
मौत का तांडव होता यही है हमारे देश के हालात
बनाए सभी विशेष वर्ग के
लोगों को कुछ महान नेताओं ने दिए
मुफ्त उपहार उपलब्ध कराएं विदेशी मेहमानों को बसाए हमारे आम आदमी के अधिकार बिसराए।
हमें अपनी अपनी औकात बताए।
------
    शंभू सिंह रघुवंशी अजेय
   गुना म प्र
------
*आम आदमी*
काव्य

29/11/2021/सोमवार

रचनाकार :- आ.सुमन तिवारी जी 🏆🥇🏆

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह  #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 365
#विषय :आम आदमी
#विधा : कविता 
#दिनांक  :29/11/2021  सोमवार
समीक्षा के लिए
________________________
जी हाँ  मैं एक आम आदमी हूँ । 

नित परिश्रम से रोटी कमाता हूँ
रात  दिन पसीना बहाता रहता
खुशियों की फसल उपजाता हूँ
मेहनत की ही फसल काटता हूँ। 

जी हाँ मैं एक  आम आदमी हूँ। 

कामचोरी करना मेरा काम नहीं
किसी का शोषण नहीं करता हूँ
बच्चों के लिए सपने बुनता रहता
मेहनत से पूरा करना चाहता हूँ। 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ। 

स्वाभिमान रही सदा मेरी पूँजी
चरित्र को सँभाल कर रहता हूँ
सभ्यता संस्कार की धरोहर को
मैं अगली पीढ़ी को सौंपता हूँ। 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ। 

रोज  सपनों की चादर बुनता हूँ
उसीको ओढ़ता और बिछाता हूँ
सपने पूरे होने की प्रतीक्षा करता
फिर सपनों की चादर बुनता हूँ । 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ । 

प्रतिपल  देश की चिंता में घुलता
विकास में भागीदारी निभाता हूँ
देश के सम्मान पर आँच न आए
मैं इस कोशिश में हरदम रहता हूँ। 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ। 

भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोरी देख
 भीतर ही भीतर रोता रहता हूँ
दगाबाज  जयचंदों को देख कर
मैं मन ही मन में घुटता रहता हूँ। 
   
              स्वरचित मौलिक रचना
        सुमन तिवारी, देहरादून, उत्तराखण्ड

रचनाकार :-आ. राकेश तिवारी राही जी 🏆🥇🏆

जय माँ शारदे
आम आदमी
--------------

आम आदमी कौन कहाँ है, सोचो, समझो, जानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

                      -1-
जो जीवन के खतिर सबको, अन्न उगाया करता है ।
खुद भूखा भी रहके सबको, सदा खिलाया करता है ।।
साधारण घर मे रहता पर, महल बनाया करता है ।
और थोडे पैसों खातिर, जिंदगी गँवाया करता है ।।
उसका खून चूसकर ही तो, भरते दिखें खजानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

                       -2-
प्रहरी बनकर सीमा पे, प्राणों की बाजी लगा रहा ।
आम आदमी सच मे ही, खुद्दारी दिल से निभा रहा ।।
चाह नही अपनी किस्मत की, दूजे की जो सजा रहा ।
दुनियां भर के गम सहकर भी, वो दुनियां को हँसा रहा ।।
गन्दी बस्ती, फुटपाथों पे, दिखते ठौर ठिकानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

                       -3-
जिसके बल पर सरकारें भी, बनती और बिगडती है ।
फिर भी उसके भाग्य पटल की, रेखा नही बदलती है ।।
सीढी आम आदमी की बन, जिसके संग मे लगती है ।
विश्व पटल पे उसकी ही छबि, उच्च शिखर पे सजती है ।।
पारस बटिया आम आदमी, हर युग मे था मानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

राकेश तिवारी "राही"
-----------------------

रचनाकार :- आ. कैलाश चंद साहू जी 🏆🥇🏆

में एक आम आदमी हूं
सारी श्रष्टि का बोझ उठाता हूं
किसी को नहीं सताता हूं
सबको हमेशा हंसाता हूं।।

सबकी सेवा करता हूं
सबका कल्याण करता हूं
सबका भला करता हूं
सपने ख्वाब सजाता हूं।।

अपने सपने भुल सबका
जीवन सुखी बनाता हूं
इसलिए खास नहीं
आम आदमी कहलाता हूं।।

अपने लिए नहीं दूसरो के लिए
हमेशा जीता मरता हूं।।
अपने हक की खाता हूं
नहीं किसी से डरता हूं।।

कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान

रचनाकार :- आ. नरेंद्र श्रीवात्री स्नेह जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 365
विषय आम आदमी
विधा कविता
दिनाँक 29/11/2021
दिन सोमवार
संचालक आप औऱ हम

आम आदमी होता नहीं खास,
जन साधारण होता आम आदमी।
झेलता महँगाई की मार ।
बेरोजगारी करती उस पर वार।
मूलभूत सुबिधाओं से रहता वंचित।
 श्रम कर परिवार का करता पालन।
नहीं दिला पाता बच्चों को उच्च शिक्षा।
न रहने को अच्छा मकान।
एक साधारण होता आम आदमी।
नहीं रहती उसकी कोई अहमियत।
बस चुनाव के वक़्त नेताओं को ,
समझ आती है अहमियत।
तब नेताओं के लिये ,
आम आदमी हो जाता खास।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.

रचनाकार :- आ संजीव कुमार भटनागर जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 366
विषय आम आदमी
विधा कविता
दिनाँक 29/11/2021
दिन सोमवार
संचालक आप औऱ हम

खूबसूरती वो मन में छुपाये
मैल दिखाता कुछ बाहर से,
आम आदमी है ख़ास नहीं
दिल का वो बहुत साफ है|

कीमती खिलौने बच्चे चाहें
पैसों की कमी न रोकें राहें,
बच्चों को वो बहला लेता
टूटे खिलौने से उन्हें हर्षाये|

रिश्तों को निभाना आता है
दूसरों के घर मिठाई ले जाता है,
चेहरे पे खुशी झलकती सदा
चाहें थैला पुराना ले चलता है|

गम में कोसता कभी भाग्य को
दुख में पुकारे कभी भगवान को,
बात बात में रोता हँसता बहुत है
जब देखे अपने बिखरते सपने को|

बेकार हो गयी हैं सारी अटकल
आम आदमी है बेबस औ बेकल,
मन मे लेता है सपनों की उड़ान
परिस्थिति भाग्य का ओड़े आँचल|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उ. प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है।

रचनाकार :- आ अशोक शर्मा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
विषय क्रमाँकः-365
दिनाँकः-29-11-21
विषयः-आम आदमी
विधाः-कविता
जिंदगी 
आम आदमी की क्या होता है
जान नही पायेगा हर इंसान।1
दर्द नही
समझ क्या पायेगा ओ महलों 
के वाशिंदे।2
जिनके 
हिस्से की चिलचिलाती धुप
कड़कड़ाती सर्दी।2
सब कुछ
सहते.है पथरीली सड़क में
तपते मरूस्थल में।3
क्योकि
वह होता है इस दुनिया का
एक अदद आदमी।3,


रचनाकार :- आ. शिव सान्याल जी 🏆🥇🏆

जय मां शारदे
विषय क्रमांक - - 365
दिनांक - - 29/11/2021
विषय--आम आदमी
विधा -  कविता

हर  पहुँच  से  दूर  है  आम आदमी।
टूट  जाता  सुबह  से  शाम आदमी। 
हर  रोज महंगाई की  मार पड़ रही,
जीने को  मजबूर  है  आम आदमी।
समाज में गरीब की है कदर कोई न, 
हर शह बदनाम होता आम आदमी। 
हाथ जोड़  खड़ा है  लाचार  बन के,
मजबूरी का नाम होता आम आदमी। 
पहुँच वाले  हाथ में  सरकार होती है, 
कौड़ियों के दाम होता आम आदमी। 
धाक  होती उन  की जो पैसे वाले हैं, 
गरीब के इल्ज़ाम होता आम आदमी। 
कर के  दंगे हाथ  लम्बे  छूट  जाते हैं, 
निर्दोष कत्लेआम होता आम आदमी। 

रचना मौलिक स्वरचित है। 
शिव सन्याल
ज्वाली कांगड़ा हि. प्र

रचनाकार :- आ. योगेन्द्र अग्निहोत्री जी 🏆🥇🏆

विषय क्रमांक 365
विषय   आम आदमी 
दिनांक  29/11/2021  

अपने जीवन में बहुत 
आम आदमी तंग ।
आमदनी और खर्च में 
हर दिन छिड़ती जंग ।
बहुत कठिनता से उसका 
बीत रहा है माह ।
हरदम बाट निहार रहा है 
पहिली की तनख्वाह ।
आम आदमी व्यथित है, 
आह भर रहा आज ।
कभी टमाटर रूला रहे हैं 
कभी रूलाता प्याज ।
वोट माँग ले जाते नेता 
देते झूठी आस ।
आप तो गद्दी पर चढ़ जाएँ 
जनता खड़े उदास ।।
योगेन्द्र अग्निहोत्री 
स्वरचित

रचनाकार :- आ. अंजू भूटानी जी 🏆🥇🏆

शुभ मध्यान्ह
कलम बोलती है
नमन मंच
विषय क्रमांक:365
विषय:आम आदमी
दिनांक: 29/11/21

मैं एक आम आदमी हूँ
हर कोई मुझको सुने
ऐसी कोई बात नही
हर कोई मुझे जाने
ऐसी मेरी फितरत नही।

कर का बोझ उठाता हूँ
महंगाई मार खाता हूँ
संघर्ष करता जाता हूँ
सब कुछ सहता जाता हूँ।

खास की सेवा करता हूँ
खास बातें सुनता हूँ
खास का कर्जदार हूँ
फिर भी आम कहलाता हूँ।

सपने खूब सजाता हूँ
ख्वाहिशें खूब पालता हूँ
दो जून की रोटी कमाने
चक्करघिन्नी बन जाता हूँ।

राशन की लाइन सजाता है
मूंगफली को बादाम समझता
डालडा से तृप्त हो जाता हूँ
कम में भी निभा लेता हूँ।

हर कोई करे मेरी चर्चा
चर्चा का हिस्सा बन जाता हूँ
बातें सुन चुप रह जाता हूँ
लाचार ही रह जाता हूँ।

सियासत का मोहरा हूँ
गेंद से बन जाता हूँ
भुखमरी सहता हूँ
सब्र हमेशा रखता हूँ

सुनो मेरा आव्हान
और नही सहूँगा
अपनी आवाज़ बुलंद करूँगा
अपना हिसाब माँगूंगा।

अंजू भूटानी
नागपुर

रचनाकार :- आ. गोविंद प्रसाद गौतम जी 🏆🥇🏆

नमन मंच  
विषय क्रमांक 365
विषय आम आदमी
विधा हाइकु
29 नवम्बर 2021,सोमवार

आम आदमी
मुसीबत का मारा
करे गुलामी।

होता शोषण
मेहनत करता
आम आदमी।

पथ विकास
निरंतर चलता
आम आदमी।

होता शोषण
कदम कदम पे
करे पोषण।

हिम्मत वाला
होता आम आदमी
है रखवाला।

स्वरचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

रचनाकार :- आ. दमयन्ती मिश्रा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती हैं
क्रमांक_३६५
दिनांक_२९/११/२०२१
विषय_आम आदमी
हम आम आदमी,राहे नही आसान|
करो का बोझ ढोते ,अपने परिश्रम से ही |
कर्म कर्तव्यों का करते निर्वह ,ईमानदारी सत्यता से |
माध्यम वर्गीय हम बचे दिखावे से,
यह लोगो नही  भाता |
जीवन एक युद्श्रेत्र,मन बुद्धि शस्त्र | दीप प्रज्वलित हॄदय मे राम नाम |
हर पल भरता ऊर्जा हमे, कर्तव्य पथ पर चले |
आये चाहे कितने सघर्ष ,तैयार रहते देश के लिए |
आम से खास बनने की नही तमन्ना ,देश की उन्नति लक्ष्य हमारा |
हम आम आदमी असली सितारे देश के |
हो किसान सैनिक नोकरपेशा  ,रहते सजग पहरी बन |
अपनी मुश्किल राहे सुगम बनाते हम,अपने करमो से |
दमयंती मिश्रा 
स्वरचित

रचनाकार :- आ. दिनेश विकल जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्यिक समूह
#दिनांक-29/11/21
#विषय-आम आदमी
#विधा-कविता
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आम आदमी  ,खुद को एक आम पता है।
कोई चूस खाता है,तो कोई काट खाता है।

पेड़ पर भी , बिचारा यह चेन न पता है।
राह चलता भी,इसमें पत्थर ही लगाता है।

कच्चा होने पर भी,जरा नहीं चेन पाता है।
कोई अचार बनाता है,कोई मुरब्बा बनाता है।

आम आदमी तो,दो पाटों में पिसता जाता है।
कोई ऊपर से दबाता,कोई नीचे से दबाता है।

मुश्किल से निज गृहस्थी का खर्चा चलाता है।
ऊपर से दुनियां भर के रिश्तों को निभाता है।

जीवन आम आदमी,आम जैसा ही पाता है।
जन्म से ले मरण तक,कष्टो को ही उठाता है।
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रचना स्वरचित व मौलिक है। 
दिनेश "विकल" 
ग्वालियर म.प्र.

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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