नमन मंच
दिनाँक-29-11-2021
विषय-आम आदमी
विधा-मुक्तक
छद्म जालों में फँसा है आम आदमी।
तोड़ता खुद ही घरोंदे आम आदमी।।
खो गई इंसानियत इंसान से।
चढ़ा क्यों हैवानियत पै आम आदमी।।
मिथक लेकर जी रहा है आम आदमी।
धन सृजक ही रह गया है आम आदमी।।
चंद रोजा जिंदगी जीने को ही।
संघर्ष करने को विवश है आम आदमी।।
भूखी प्यासी देह का ये आम आदमी।
रोजी रोटी को बिलखता ये आम आदमी।।
कड़कड़ाती ठंड वाली रात में।
ढ़ाँपने को तन तरसता आम आदमी।।
रवेन्द्र पाल सिंह रसिक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें