कलम बोलती है साहित्य समूह..
क्रमांक.. 365 .
# विषय.. आम आदमी.
आम आदमी, खास आदमी.
ये तो जग- रीत से,
नियम- सिद्धांतों में,
उलझी हुई, आम आदमी,
की ज़िन्दगी..
क्यों है? कोई आम आदमी,
क्योंकि उसकी कोई पहचान नहीं..... ??
या उसकी कोई पहुँच नहीं??
ईश्वर ने अपनी कृति में,
भेद ना कोई किया..
इंसान को एक जैसा ही बनाया..
कर्म उनके नाम किया..
क्यों ऐसा है??
कि गुनाह करके भी,
स्वतंत्र है खास आदमी.
और बेगुनाह होने पर भी
सजा पा जातें हैं आम आदमी....
हर काम में, हर क्षेत्र में...
उपेक्षित होता रहा,
आम आदमी..
यही अब मेरी नियति है,...
संतुष्ट होता है, आम आदमी..
मेरी लेखनी... ✍
धन्यवाद🙏💕
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