आम आदमी
---------------
इतनी छोटी सी जिंदगी में
बदहवाश सा दुनिया में
क्यों भागता रहता है आम आदमी?
घर "जमीन" खेत-खलिहान जायदाद के लिए
दिलों को क्यों बाँटता है आदमी?
दुनिया की इस भीड़ में
अपनो को भी बाँटता है आदमी
हर संबंध के बीच
दीवार खड़ी करता हैं इंसान!
नहीं समझता कि जिंदगी
न मिलेगी दुबारा!
सपने पूरे हों या न हों
'खाक' में मिल जाता है आदमी
अहंकार
रूप सौंदर्य गुण दौलत का
इसी दुनिया में
क्यों पालता है आदमी
हार जीत के युद्ध में
उलझा रहता है इंसान!
धूप और छावं की आंख
मिचौली सी
यह भंगुर 'जिंदगानी' सारी
फिर आलीशान इमारतों के आगे
बेघर भूखा क्यों मरता है आदमी
दुनिया प्यार से भरपूर हो
ये क्यों नहीं चाहता आदमी!
अपने पराये के बीच बस
फर्क करता है आदमी
जमीन के लिये एक दूसरे को
क्यों मारता है आदमी?
इस चंदरोज़ा जिंदगी में भी
दुनिया से दिल से दिल मिलाकर
क्यों नही रह पाता है आदमी?
एतबार एक दूसरे पर क्यों
नहीं कर पाता है आदमी?
नफरत सीने में, प्यार 'दीवारों' में
चिन सहेजकर क्यों रखता है आदमी?
-राधा शैलेन्द्र,
भागलपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें