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मंगलवार, 30 नवंबर 2021

रचनाकार :-आ रूपेन्द्र गौर जी 🏆🥇🏆

नमन- कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक -30/11/2021
विषय -आम आदमी। 
विधा-गीत।
समीक्षार्थ,

आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।
पर उसी पर होते रहता, जमकर अत्याचार यहाॅं। 

आम आदमी को जरा भी, मिलता नहीं सुकून है। 
भागता रहता साल साल भर, क्या अगस्त क्या जून है।
होती उसके वोट की कीमत, उसकी कीमत शून्य है। 
जिसे जरूरत वही चूसता, उसका मीठा खून है।
पर उसकी कीमत का होता, है ना कुछ सत्कार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं। 

इधर से उधर उधर से इधर, फुटबाल बनाया जाता है। 
चुनावी सीजन में उस पर फिर, दांव लगाया जाता है।
वोट नाचने के लिए उसे फिर, खूब रिझाया जाता है। 
पश्चात चुनावों के उसको फिर से ठुकराया जाता है।
पर उसकी नैया के वास्ते, हरदम है मझधार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।

जितनी बढ़े सैलरी उससे दुगनी महंगाई की मार।
पूछो तो कैसे चलता है आम आदमी का परिवार। 
तेल खरीदे गैस खरीदे या खरीदे मोटर कार। 
आखिर किससे आम आदमी मुश्किलों में करे पुकार।
उसकी तकलीफों का रहता, सदा ही पारावार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं। 

आम आदमी के जीवन में, आता नहीं उछाल है।
वही अचार वही रोटी सब्जी, वही चटनी हुई दाल है। 
कभी खत्म ना होने वाला, हरदम खड़ा सवाल है। 
देखो जाकर उसको जब भी, वही हड्डी वही खाल है।
आम आदमी होते रहता, हर दम ही लाचार यहाॅं। 
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।

रूपेन्द्र गौर, इटारसी, 8871675954
स्वरचित एवं मौलिक

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