नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्यिक समूह
#दिनांक-29/11/21
#विषय-आम आदमी
#विधा-कविता
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आम आदमी ,खुद को एक आम पता है।
कोई चूस खाता है,तो कोई काट खाता है।
पेड़ पर भी , बिचारा यह चेन न पता है।
राह चलता भी,इसमें पत्थर ही लगाता है।
कच्चा होने पर भी,जरा नहीं चेन पाता है।
कोई अचार बनाता है,कोई मुरब्बा बनाता है।
आम आदमी तो,दो पाटों में पिसता जाता है।
कोई ऊपर से दबाता,कोई नीचे से दबाता है।
मुश्किल से निज गृहस्थी का खर्चा चलाता है।
ऊपर से दुनियां भर के रिश्तों को निभाता है।
जीवन आम आदमी,आम जैसा ही पाता है।
जन्म से ले मरण तक,कष्टो को ही उठाता है।
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रचना स्वरचित व मौलिक है।
दिनेश "विकल"
ग्वालियर म.प्र.
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