जय मां शारदे
विषय क्रमांक - - 365
दिनांक - - 29/11/2021
विषय--आम आदमी
विधा - कविता
हर पहुँच से दूर है आम आदमी।
टूट जाता सुबह से शाम आदमी।
हर रोज महंगाई की मार पड़ रही,
जीने को मजबूर है आम आदमी।
समाज में गरीब की है कदर कोई न,
हर शह बदनाम होता आम आदमी।
हाथ जोड़ खड़ा है लाचार बन के,
मजबूरी का नाम होता आम आदमी।
पहुँच वाले हाथ में सरकार होती है,
कौड़ियों के दाम होता आम आदमी।
धाक होती उन की जो पैसे वाले हैं,
गरीब के इल्ज़ाम होता आम आदमी।
कर के दंगे हाथ लम्बे छूट जाते हैं,
निर्दोष कत्लेआम होता आम आदमी।
रचना मौलिक स्वरचित है।
शिव सन्याल
ज्वाली कांगड़ा हि. प्र
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