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आदमी तो आदमी है। यह आम आदमी क्या होता है ?
क्या हम किसी अन्य प्राणी मे, ऐसे विभेद करते हैं ?
जैसे एक हथेली की पाँचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, वैसे ही एक समाज के सभी सदस्य बराबर नहीं होते हैं। शारीरिक बनावट, मानसिक विकास, रंग-रूप की दृष्टि से, वे भिन्न होते हैं।
इतना तक तो ठीक है, पर जब हम उनका आर्थिक आधार पर वर्गीकरण करते हैं, तो उच्च आय-वर्ग, मध्यम आय-वर्ग, निम्न आय-वर्ग आदि के रूप में विभाजित करते हैं और यहीं से आम आदमी की बात उठती है, जो प्रायः मध्यम आय-वर्ग अथवा मध्यम एवं निम्न आय-वर्गों के संयुक्त रूप से जाने जाते हैं।
इस वर्ग की या दोनों वर्गों की अपनी परिस्थितियां हैं, आकांक्षाएं हैं, आवश्यकताएं हैं, विशेषताएं हैं। यह वर्ग श्रमजीवी होता है। इसके पास पूंजी का अभाव होता है। यह उत्पादन से जुड़ा होने पर भी बड़ा उद्यमी-व्यवसायी नहीं होता, किंतु सामूहिक उपभोक्ता होता है।
आम आदमी साहित्य एवं राजनीति में अधिक चर्चित रहता है। वहाँ इसे सीमित आय, सीमित साधन, सादी जीवन-शैली, शाँत, छोटी-मोटी जरूरतों, छोटे सपने देखनेवालों के रूप में चित्रित किया जाता है। कोई सरकारी योजना बनाते समय यह ध्यान दिया जाता है कि इससे आम आदमी को क्या लाभ मिलेगा और तब आम आदमी भी खास दिखने लगता है।
--- गोपाल सिन्हा,
बंगलुरू, कर्णाटक,
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