कलम बोलती है साहित्य मंच
तिथि ३० - ११ - २०२१
विषय आम आदमी
विधा
आम आदमी त्रस्त है।
महंगाई से पस्त है।
दिवा स्वप्न दिखाये नेता,
वातानुकुल में मस्त है।
हौसले सबके पस्त है।
जीवन में कितने कष्ट हैं।
भागदौड़ की जिंदगी में,
सब अपने दुख: सै पस्त है।
ना कह सके ना सह सके,
ना हंस सके ना रो सके,
एकल परिवार में व्यस्त है।
बात-बात में तुनक मिजाज,
तलाक की देहरी छुते है।
फैशन की दौड में ,
हर कोई चाहे अव्वल दिखना,
जेब है सक्षम तो जिन्दगी मस्त है।
पति पत्नी और बच्चा महंगी पढाई जीना ध्वस्त है।
दोनो करते नौकरी, बच्चा,
शिशुआलय में पलता,
मोबाइल लेपटॉप की जिन्दगी जीता,
मदरस् डे, फादर्स डे का इंतजार है।
आम आदमी की विरानी जिन्दगी हरियाली कम, पतझड ज्यादा है।
अनिल मोदी, चेन्नई ३
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