#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 365
#विषय :आम आदमी
#विधा : कविता
#दिनांक :29/11/2021 सोमवार
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जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ ।
नित परिश्रम से रोटी कमाता हूँ
रात दिन पसीना बहाता रहता
खुशियों की फसल उपजाता हूँ
मेहनत की ही फसल काटता हूँ।
जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ।
कामचोरी करना मेरा काम नहीं
किसी का शोषण नहीं करता हूँ
बच्चों के लिए सपने बुनता रहता
मेहनत से पूरा करना चाहता हूँ।
जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ।
स्वाभिमान रही सदा मेरी पूँजी
चरित्र को सँभाल कर रहता हूँ
सभ्यता संस्कार की धरोहर को
मैं अगली पीढ़ी को सौंपता हूँ।
जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ।
रोज सपनों की चादर बुनता हूँ
उसीको ओढ़ता और बिछाता हूँ
सपने पूरे होने की प्रतीक्षा करता
फिर सपनों की चादर बुनता हूँ ।
जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ ।
प्रतिपल देश की चिंता में घुलता
विकास में भागीदारी निभाता हूँ
देश के सम्मान पर आँच न आए
मैं इस कोशिश में हरदम रहता हूँ।
जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ।
भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोरी देख
भीतर ही भीतर रोता रहता हूँ
दगाबाज जयचंदों को देख कर
मैं मन ही मन में घुटता रहता हूँ।
स्वरचित मौलिक रचना
सुमन तिवारी, देहरादून, उत्तराखण्ड
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