💐नमन कलम बोलती है साहित्य समूह💐
#विषय-पाठशाला
#विधा-लघुकथा
#विषय क्रमांक-४२४
#दिनांक-१५-०४-२०२२
💐💐💐💐💐💐💐💐
#पाठशाला
*******
काश! बचपन में ही पाठशाला का सही अर्थ समझ पाता कि पाठशाला पढ़ने का घर होता है। समझने में बहुत देर हो गई। वाकई रोमांचित हो उठता हूं बचपन के दिनों की पाठशाला को याद कर।रोम -रोम खुशी से झूम उठता है बचपन की पाठशाला को याद कर।
बचपन में मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी थी। घरेलू काम के लिए भी कई लोग थे। मिश्रित परिवार था।मेरे दादा जी अच्छे किसान थे। पिताजी सहायक शिक्षक, चाचा जी सहायक शिक्षक थे। समय की मांग के अनुरूप मेरा नामांकन अंचल के एकमात्र अंग्रेजी माध्यम स्कूल बाल भारती में करा दी गई।बाल भारती विद्यालय पांचवीं कक्षा तक था और जिसने भी पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई सही ढंग से की आज वो सभी अधिकांश अच्छे पद पर आसीन हैं।
पुनः राजकीय मध्य एवं उच्च विद्यालय सारवां में नामांकन हुआ। पुनः देवघर महाविद्यालय देवघर से पढ़ाई करने का अवसर मिला।
शुरुआती दिनों में विद्यालय जाना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि घर से तीन किलोमीटर दूर दादा जी के कंधे पर एवं साइकिल पर विद्यालय जाना होता था। फिर विद्यालय में खेलकूद के दौरान कई साथी बन गए। पाठशाला जाने में इतना मन लगने लगा कि अवकाश होने पर दुःख होता था। फिर गांव के सारे बच्चे एक साथ एक दुसरे को बुलाते हुए, खेलते-कूदते हुए विद्यालय जाते थे। दादा जी भले ही किसान थे मगर पढ़ाई के मामले में काफी सख्त थे। लम्बी कदकाठी बड़ी-बड़ी आंखें, गठीला शरीर भारी-भरकम आवाज की एक आवाज से मिलों भर से लोग दौड़े चले आते थे।
मुझे याद है मैं पहली कक्षा में था। जनवरी का महिना था मुझे हिन्दी की नई पुस्तक मिली। बिना उठे सभी कविताएं एवं कहानियों को पढ़ डाला। एवं एक सप्ताह में सभी कंठस्थ हो गया। गांव में रहने के बावजूद भी अनावश्यक रूप से इधर उधर घुमने की आजादी नहीं थी। खेल- कूद के लिए शाम का समय निर्धारित था।शाम के समय कबड्डी, गिल्ली डंडा,आदि खेला करते थे।
बीते दो दशकों से सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए गर्वान्वित हूॅं कि जिन-जिन शिक्षण संस्थानों से पठन -पाठन किया वहां-वहां अध्ययन-अध्यापन, परीक्षण, पर्यवेक्षण करने का अवसर मिलता रहा है।आज विद्यालय के बच्चों में अपना बचपन ढूंढने का प्रयास करता हूं। उनके साथ सभी तुतलाकर बोलता हूं, साथ -साथ खेलता हूं, गाता-बजाता हूॅं, शैक्षणिक भ्रमण करता हूॅं एवं शिक्षण के साथ- साथ अन्य सभी गतिविधियों को करता हूं और अपने बचपन को याद करता हूॅं।आज शिक्षा का स्वरूप भी बदल गया है। पहले विद्यालय का मतलब होता था केवल पढ़ाई करने जाना किन्तु आज शिक्षा बहुत व्यापक रूप ले चुकी है बच्चों के अंदर की सभी प्रतिभावों को उजागर किया जाता है एवं अपने रुचि के अनुसार आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
और अधिक विस्तृत न करते हुए अंत में इतना ही कहना चाहता हूॅं कि"बचपन का वो सफर था सुहाना दोस्तों,अब तो वो भी लगने लगे बचकाना दोस्तों।
दीपनारायण झा'दीपक'