विषय क्रमांक-424
विषय- पाठशाला
लघुकथा
दिनांक-15-04-2022
पाठशाला
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शुभी की रोज सुबह घुटनों तक लम्बे बालों की रिबिन वाली दो चोटियाँ बनाकर माँ पाठशाला के लिए तैयार करती हुई उस समय का उपयोग उससे कभी पहाड़े मुखाग्र कराते हुए तो कभी
कविता पाठ कराते हुए एक पंथ दो काज करती।
नई कोरी काॅपी- किताबें आते ही शाम के समय उन पर खाखी रंग के नये पृष्ठ चढ़ाये जाते--- पाठशाला की नई युनिफार्म, नया लंच बॉक्स और कम्पास बाॅक्स जैसे एक ऐसा उत्सव जो हर साल दिवाली के त्यौहार की तरह मनाने की धुनक रहती।
शुभी की जीवन रीत सीखने की शुरुआत यहीं से हुई होगी----
पाठशाला विद्या के साथ कितने सलीके
सीखाती रही। माँ ने एक बार युनिफार्म के मायने समझाते हुए कहा था देखो शुभी तुम और रधिया की बिटिया बिल्कुल एक सी लगती हो--- कौन कहेगा कि रागी नौकरानी की बेटी है---!
वहीं से शायद शुभी ने पोशाक को कभी लोगों को मापने का पैमाना बनाना और भेदभाव करना नहीं सीखा
रागी को उसकी अगले साल की पुस्तकें मिलती और नये खाखी कवर भी----
रागी के लिए पुस्तकों की नएपन की खुश्बू से बढ़कर पुस्तकों की उपलब्धता
मायने रखती---
शुभी को याद है रागी नये पृष्ठों पर अपना नाम बड़े जतन से लिखकर अपनेपन का एक एहसास पा लेती फिर पुस्तक उसकी अपनी हो जाती।
रधिया तो पुरानी युनिफार्म का भी कहती लेकिन माँ नई बनवाकर देती---
माँ कहती शिक्षा पाठशाला में तब ना मिलेगी जब स्वाभिमान घर से ले कर जायेगी-----!
माँ छोटी से छोटी पेंसिल भी बचाकर रखती और यही सब उसे पाठशाला में सिखाया जाता । एक दिन घर आकर शुभी ने माँ से कहा- माँ तुम और मेरी पाठशाला बिल्कुल एक समान हो।
मेरी शिक्षिका भी कहती है कि घर का भोजन ही स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है और तुम भी सुबह जल्दी उठकर मेरा लंच बनाती हो----
हम सब पाठशाला में वही प्रार्थना और प्रतीज्ञा गाते- दोहराते हैं जो तुम मुझे लोरी की तरह रोज रात सुनाती हो ।
शुभी पाठशाला में घर और घर में पाठशाला को एकाकार देख रही थी।
पाठशाला में अध्यापिका को माँ और घर में माँ को अध्यापिका के रूप में देखते हुए उसका कोमल मन एक कोंपल को विकसित करने की प्रक्रिया में गतिशील हो चुका था जिसे आगे जाकर एक पुष्पित वृक्ष बनना था----
इस विकास की आधारशिला तो 'पाठशाला 'ही थी ----जहाँ से निकलकर वह दुनियाँ की वृहत् पाठशाला में कदम रखने वाली थी जहाँ त्रैमासिक, छःमासिक या वार्षिक परीक्षा नहीं होती--- वहाँ प्रतिदिन परीक्षा देना होता है-----।
----- निकुंज शरद जानी
स्वरचित और मौलिक लघुकथा सादर प्रस्तुत है।
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