"कलम ✍️ बोलती है" साहित्य समूह
विषय क्रमांक: 424
विषय: पाठशाला
विधा: *"लघुकथा"*
15 04,22
पाठ शाला
(लघु कथा)
शिवानी अपनी सहेलियों को पाठशाला जाते हुए देख रही थी।गरीब बस्ती की छोटी सी टूटी हुई झोपड़ी में वह और उसकी मां दोनो ही रहती थी।पिता का कोरो ना के चलते स्वर्गवास हो गया था।मां दूसरो के घरों में काम करके गुजारा कर रही थी।वह डरती थी कि यदि उसे भी कुछ हो गया तो बेटी को कौन देखेगा? मां शिवानी को नजर से दूर नहीं रखती थी।शिवानी का मन पाठशाला जाने को होता था।
तभी बस्ती में एक बड़ी गाड़ी आ कर रुकी।उसमे से दो महिलाएं और दो पुरुष उतर कर झोपड़ियों में जाने लगे।श्याद सरकारी कर्मचारी थे।बस्ती वाले यहां वहां छिपने लगे।एक महिला शिवानी के घर भी आई।मां से घर के विषय में जानकारी ली।फिर शिवानी के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा....? पाठशाला जाओगी??
शिवानी ने खुशी के मारे हां में सिर हिला दिया।मां.....!नहीं..नहीं।यह मेरा एक ही सहारा है।इसे मैं नहीं छोड़ सकती।
महिला ने मां को सरकारी योजनाएं और बालिका अधिकार समझाए।मां को कुछ समझ आ रहा था।तभी पुरुष कर्मचारी बोला।पास के सरकारी पाठशाला में दोपहर भोजन हेतु सेविका की आवश्यकता है।क्या आप राजी हो।मां ..की खुशी का ठिकाना न रहा।..."अब मां और शिवानी दोनो पाठशाला जाएंगी""।
अनिता शर्मा**त्रिवेणी**
देवास(मध्य प्रदेश)
पूर्णतः मौलिक 🙏🏼
अप्रकाशित 🙏🏼🌹
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें