१५/४/२०२२
विषय---पाठशाला
विधा--लघुकथा
सादर समीक्षार्थ
*लघु कथा*
#पाठशाला
राजेश अपने माता-पिता के साथ गाँव में रहता था, जब वह छ: साल का था, वह पाठशाला जाने लगा।
वह पढ़ने में भी बहुत होशियार था, शिक्षक उसे बहुत प्यार करते थे, मगर वह घर से बहुत दुखी था। सब बच्चे उसे चिढ़ाते थे, कारण कि उसके माता-पिता दोनों शराब पीते थे और खूब लड़ते थे। दोनों अनपढ़ थे।
गाँव का सरपंच उन दोनों को रात्रिकालीन पाठशाला में जाने को कहा मगर वो नहीं गये।
राजेश की पढ़ाई घर में हो नहीं पाती, क्योंकि उसके घर में दिन भर किच-किच होती थी।
पड़ोसी आ कर समझाते मगर वो नशे में उन्हें गाली दे के भगा देते।
राजेश ने ये सारी बातें अपने शिक्षक को बताई, वो समझाए कि तुम छात्रावास में आकर रहो।
वहाँ तुम आराम से अध्ययन कर सकते हो।
राजेश घर आकर अपना सामान रखने लगा, उसके पिताजी बोले "बेटा कहाँ जा रहे हो"? राजेश बोला आप लोग आराम से बैठ कर दारु पीजिए मैं इस घर में अब नहीं रहूंगा"।
राजेश की माँ आकर देखती रही, फिर रोने लगी, बोली "हमारा तो एक ही बेटा है और वो भी हमारी बुरी आदतों के कारण घर छोड़ रहा है,"
वह घर मे रखी सभी बोतलें बाहर फेंक दी और बोली--
"आग लगे ऐसी आदत को"
और अपने बेटे को गले से लगा ली।
अब दोनों ने अपनी गलती सुधार कर शराब न पीने की कसमें खाई।
और दोनों साक्षरता अभियान के अन्तर्गत पाठशाला जाने का निर्णय लिए।
शशि मित्तल "अमर"
मौलिक
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