#विषय क्रमांक - 424
#विषय - पाठशाला
पाठशाला - -लघु कथा
राजीव रावत
रमुआ के पिता एक छोटे किसान थे, दो बर्षों से बारिश न होने कारण मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। वह चाहते थे कि उनका बेटा कुछ पढ़ लिख जाये तो इस फटे आल जिंदगी से छुटकारा मिले। वैसे रमुआ पढ़ने तीव्र बुद्धि का था लेकिन नयी किताबें खरीदने के लिए और नदी पार करके दूसरे गांव में स्कूल जाने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए वह रोज सुबह सुबह जल्दी जाकर नाव बुजुर्ग नाविक का नाव खैने में सहायता करता और उसके एवज में वह फ्री में नाव से स्कूल जाता।
स्कूल में उसके गांव के जमीदार का लड़का भी पढ़ता था। रमुआ रास्ते में नावं चलाते चलाते जमीदार के लड़के की किताबों से पढ़ भी लिया करता था। स्कूल मे इम्तिहान के बाद जब रजिल्ट की घोषणा हुई तो अध्यापक ने जमीदार के लड़के को प्रथम घोषित किया और रमुआ फेल हो गया था।
उस दिन रमुआ बहुत उदास था क्योंकि उसने अपने सारे पेपरों में सही जबाव लिखे थे। वह चुपचाप नांव पर आ कर बैठ गया। जब नांव भर गयी तो जमींदार का लड़का और उसके दोस्त नांव पर मस्ती कर रहे थे और रमुआ उदास बैठा नांव चला रहा था, घर पर बाबू जी को क्या जबाव देगा?
अचानक तेजी से हवायें चलनें लगी और नांव डोलने लगी, लाख कोशिशों के बाद भी नांव पलट गयी। सभी पानी में डूबने लगे। अब रमुआ तेजी से तैर कर डूबते जमीदार के बच्चे सहित बारी बारी से कई लोगों को बचा लाया और अंत में स्वयं बेहोश होकर किनारे पर गिर गया।
उस दिन शाम जमीदार ने अपने यहां गांव की मीटिंग बुलाई और अध्यापक जी सर झुकाये खड़े थे क्योंकि जमीदार जी के लड़के ने सच बता दिया था कि रमुआ की परीक्षा कापियों से अदला-बदली कर दी गयी थी। तब जमीदार ने रमुआ को गांव के सामने न केवल पास घोषित किया बल्कि कहा कि पढा़ई की पाठशाला में बेईमानी से फेल हो सकता है लेकिन जो जीवन की पाठशाला में सफलता प्राप्त करता है, वह कभी फेल नहीं हो सकता है क्योंकि जीवन की पाठशाला ही श्रेष्ठ पाठशाला होती है।पढा़ई की पाठशाला ज्ञान तो दे सकती है लेकिन जीवन की पाठशाला कैसे और कहां उपयोग करना है सिखाती है।
राजीव रावत
भोपाल (म0प्र0)
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