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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. सुमन तिवारी जी)

#कलम✍🏻बोलती_है_साहित्य_समूह #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 424
#विषय : पाठशाला
#विधा : लघुकथा
#दिनांक : 15/04/2022 , बुधवार
समीक्षार्थ
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       मेरा बचपन पिथौरागढ की सुंदर पर्वतीय नगरी में बीता। पिताजी की पोस्टिंग तीन-तीन वर्ष में होती रहती थी। उस समय पिथौरागढ में अंग्रेजी स्कूल नहीं थे, बस एक सरस्वती शिशु मंदिर था अंग्रेजी स्कूल के नाम पर। अन्य एक दो सरकारी स्कूल भी थे। मैंने मुनाकोट ब्लॉक के प्राइमरी पाठशाला में प्रवेश लिया। सरकारी पाठशाला एकदम आश्रम पद्धति की होती थी। पेड़ के नीचे जमीन पर दरी बिछाकर बच्चे बैठते और गुरु जी श्यामपट पर लिख कर समझाते थे। छटी कक्षा तक तो हमने पतली सरकंडे की कलम व स्याही से लिखा, लेख अच्छा न होने पर स्केल से उल्टे हाथ पर गुरु जी मारते क्या मजाल कि कोई उफ़ करे, लिखावट मोती सी चमकती थी। कक्षा में आज के पब्लिक स्कूल की तरह भीड़ नहीं होती थी। मेरी पाँचवी कक्षा में तो कुल मिलाकर हम पाँच बच्चे थे, और मैं अकेली लड़की।

            प्रार्थना सभा में ईश्वर प्रार्थना के साथ ही सदाचार की बातें बताई जातीं और 15- 16 मिनट शारीरिक व्यायाम के बाद ही हम अपनी कक्षा में जाते थे। सरकारी स्कूल में आज के पब्लिक स्कूल की तरह बस्तों का बोझ नहीं होता था। मुख्य विषय हिंदी, गणित, इतिहास- भूगोल, और विज्ञान होते थे। हमारे गुरु जी हमें क्लास में ही बहुत अच्छा पढ़ाते थे। ट्यूशन का नाम कोई जानता ही नहीं था। 

        मध्यांतर में नाश्ते में हमें उबले चने, आलू की चाट, मिल्क पावडर आदि आदि मिलता था, जिसका स्वाद मैं आज तक नहीं भूली। आखिरी पीरियड में हमसब प्रार्थना सभा में एकत्रित होते एक बच्चा सामने खड़ा होकर गिनती ,पहाड़े व हिंदी की कविताएँ बोलता हमसब उसे दोहराते थे। आज तक वह सब मुझे याद है। 

          तीन साल बाद पिताजी का तबादला दूसरे ब्लॉक में होगया। G G I C में मुझे छटी कक्षा में प्रवेश मिला, अब दरी की जगह बैंच और मेज में बैठ कर हम स्वयं को राजा समझने लगे। हर वर्ग के बच्चे पढ़ते कोई भेदभाव नहीं था। मुझे आज भी अपने सरकारी स्कूल याद आते हैं जहाँ न कोई दिखावा न कोई टीम टाम, बस पढ़ना, खेल कूद, बागवानी और सिलाई कढ़ाई। छटी कक्षा में आकर ही अंग्रेजी विषय पढ़ा, पर व्याकरण की बुनियाद इतनी अच्छी कि शहर के प्रतिष्ठित अंग्रेजी स्कूल में शिक्षण का अवसर मिला जहाँ लगभग 30-32 वर्ष विभागाध्याक्षा रही। यह आत्मविश्वास और हुनर सरकारी स्कूल की ही देन है। मुझे गर्व है कि मैं सरकारी स्कूल में पढ़ी हूँ और अंग्रेजी स्कूल के बच्चों को पढ़ाया। 

                    स्वरचित मौलिक रचना
              सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड

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रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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