विषय क्रमांक-365
विषय- आम आदमी
दिनांक-29-11-2021
समीक्षा हेतु सादर प्रस्तुत।
आम आदमी
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राह आसान नहीं
लेकिन सपन- स्पन्दन!
दूरदर्शी!
अलौकिक सृष्टि!
कुछ कर गुजरेगा
आभासित!
चकित लोग
अचम्भित!
आम आदमी!
माद्दा रखता है
इसकी मालगुजारी से
ऊपरी भी डरता है
किस करवट ऊँट बैठ जाए
कोई ना बता पाए!
इसके मस्तक की रेखाएँ
इसे ही आजमाए!
हर सोच से परे
प्रतिबिंबित होता है
अनुपस्थिति में भी
उपस्थिति दर्ज है जिसकी
आम आदमी है
इसलिए!
सबके लिए खास होता है!
टोह ली जाती इसकी
इसकी राह वह भी चलता है
जिसके हाथ होती जलती मशाल!
यह तो वह दीप है जो
आँधी- तूफ़ान से भी
लड़ गुजरता है---!
बहुत मुश्किल हो फिर भी
राह अपनी निकाल ही लेता है
आडम्बर-रहित है
आम आदमी!
इसलिए तो जीवन- संग्राम में
अंत तक अडिग रहता है----!
----- निकुंज शरद जानी
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